कुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीर असली है 

 सच्चाई: देश और विदेश में इस फ़ोटो को बार-बार दिखाया गया है। कहा है कि पीड़ित कुतुबुद्दीन अंसारी इस फ़ोटो में दंगाइयों के सामने दया की भीख माँग रहे हैं। इससे अनेक सवाल खड़े होते हैं। (रा.स्व.संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री के.एस. सुदर्शन [१९३१-२०१२] ने नागपुर में अपने ४ अक्तुबर २००३ के भाषण में इनमें से कुछ प्रश्न पूछे थे।) वे प्रश्न इसप्रकार हैं: 

 

१. यह फ़ोटो नकली होने का, मतलब अंसारी वास्तव में इस स्थिति में थे, परंतु घटना के बाद भीड़ के निकल जाने पर यह फ़ोटो लिया गया हो [या इस बात की भी संभावना है कि घटना के बाद फ़ोटोग्राफ़र ने श्री अंसारी को उस पोज़ में फ़ोटो देने के लिए कहा होगा, लेकिन यह संभावना हमें नगण्य लगती है] एक बड़ा सुराग मिलता है इस फ़ोटो में अंसारी के चेहरे पर बंधे हुए बैंडेज सेघटना के बाद बैंडेज लगाकर फ़ोटो निकाला गया होगा यह स्पष्ट है। ख़ून की प्यासी संतप्त भीड़ यदि वास्तव में श्री अंसारी की ओर बढ़ रही होती और उसके द्वारा दया की भीख माँगते समय यह तस्वीर ली गई होती तो उन्हें बैंडेज बाँधने के लिए समय कैसे मिला?

२. इस बात पर विश्वास रखना मुश्किल हैं कि इस तस्वीर में श्री अंसारी इमारत की पहली मंज़िल पर दंगाइयों से दया की भीख माँग रहे हैं ऐसा कहते हैं, लेकिन तस्वीर में एक भी दंगाई नज़र नहीं आ रहा है, और फ़ोटोग्राफ़र आर्को दत्त उसी समय तस्वीर लेने के लिए वहाँ उपस्थित थे। 

३. दंगाइयों ने उनपर हमला किए बिना उन्हें कैसे छोड़ दिया?

४. दंगाइयों ने फ़ोटोग्राफ़र को इस तरह की तस्वीर कैसे खींचने दी? उनपर हमला क्यों नहीं किया?

५. कम-से-कम फ़ोटोग्राफ़र का कैमरा नष्ट क्यों नहीं किया?

६. क्या रॉयटर के फ़ोटोग्राफ़र श्री आर्को दत्त इनमें से एक भी सवाल का जवाब दे सकते हैं?

७. क्या इन सभी प्रश्नों का या इस घटनाक्रम से उत्पन्न होने वाले अन्य प्रश्नों के जवाब श्री अंसारी दे सकते हैं?

 

   इस मामलें पर समझा जाता हैं कि पीड़ित कुतुबुद्दीन अंसारी ने कहा, “लोगों की भीड़ मेरे मकान से चले जाने के बाद यह तस्वीर ली गई है, उस समय पुलिस वहाँ मौजूद थी और मैं बहुत डरा हुआ था, मैंने पुलिस से कहा कि मुझे बचा लो, इसी समय यह तस्वीर ली गई है”। यही जानकारी गुजरात के एक वरिष्ठ पत्रकार ने भी प्रस्तुत लेखक को [गुमनामी की शर्त पर] दी। हालाँकि इस लेखक को इंटरनेट पर इसप्रकार की कोई अखबार की ख़बर का पता नहीं चला। यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि ‘दंगाइयों से मैं दया की भीख माँग रहा था’, इस तरह का कोई बयान भी अंसारीने देने की कोई भी ख़बर किसी वेबसाइट पर प्रस्तुत लेखक को नहीं दिखी। इसलिए शायद यह भी हो सकता है कि स्वयं अंसारी ने ही इस बात को ख़ारिज कर दिया हो कि उन्होंने ख़ून की प्यासी भीड़ के सामने इस तरह की भीख माँगी। नीचे दिए हुई लिंक वाली रिपोर्ट में एक मुस्लिम वेबसाइट ही कहती है कि वे भीड़ के जाने के बाद सुरक्षाकर्मियों से विनती कर रहे थे, और न कि किसी भीड़ से।

http://www.indianmuslimobserver.com/2013/02/face-of-gujarat-riots-qutubuddin-ansari.html

 

  यदि श्री अंसारी यह दावा करते हैं कि उन्होंने भीड़ के सामने दया की भीख माँगी तो उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि उनके चहरे पर बैंडेज कैसे आया। अपनी तस्वीर के बार-बार उपयोग किए जाने से हुई परेशानियों के कारण श्री अंसारी वर्ष २००३ से मीडिया से लगातार कह रहे थे कि ‘मुझे परेशान न करें और मुझे छोड़ दें’। (संदर्भ: https://web.archive.org/web/20130516050029/http://www.hindu.com/2003/08/08/stories/2003080806871100.htm

 

   श्री कुतुबुद्दीन अंसारी के प्रति हमें पूरी सहानुभूति है क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे दंगा-पीड़ित हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि झूठी तस्वीरें दुनिया भर में प्रसारित करते हुए निर्दोष लोगों को आतंकी गतिविधियों के लिए उकसाने का लाइसेंस किसी को मिलता हैं

 

   दूसरे अध्याय में हमने गोधरा हत्याकांड की दिल दहला देने वाली तस्वीरों का लिंक देखा। हालाँकि ये तस्वीरें शतप्रतिशत असली हैं, फिर भी एन.डी.टी.वी. जैसे टी.व्ही. चेनेल इन तस्वीरों को दिखाने का सपनों में भी नहीं सोचेंगे। लेकिन लोगों की भावनाओं को भड़काने वाली श्री कुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीर सारी दुनिया में प्रचारित करेंगे। गोधरा में हिंदुओं को ज़िंदा जलाकर मार डालने के बाद मुस्लिमों के मन में निर्माण हुई अपराधबोध की भावना, उस हत्याकांड की तस्वीरें देखकर दूसरे मुस्लिमों तक यदि पहुँचती, तो गोधरा के बाद हुए दंगों पर वो (और शायद अपने तथाकथित उदारमतवादी भी) इतने बड़े पैमाने पर रुष्ट नहीं होते। (ये दंगे भी एकतरफ़ा नहीं थे।) 

मनगढ़ंत कथा

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