नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘प्रत्येक क्रिया की समान और विरुद्ध प्रतिक्रिया होती है’ 

सच्चाई: श्री बलबीर पुंज ने ‘आउटलुक’ में अपने लेख में मई २००२ में लिखा– “ज़बरदस्त मनगढ़ंत कहानियों के कारण गुजरात का सत्य पूरी तरह पंगु हो गया है। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने ३ मार्च के अंक की ख़बर में मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने न्यूटन के तीसरे नियम ‘प्रत्येक क्रिया की समान और विरुद्ध प्रतिक्रिया होती है’ का उल्लेख किया। वास्तव में मुख्यमंत्री (मोदी) ने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया था। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ को छोड़कर अन्य किसी भी अख़बार ने अपनी मूल ख़बरों में इस तरह की ख़बर प्रकाशित नहीं की थी (३ मार्च को)। लेकिन इसके बाद लिखे गए कई संपादकीयों और लेखों में इस आधार पर विषवमन किया गया। श्री मोदी के सभी खंडनों को कूड़े के ढेर में फेंक दिया गया।…”

 

   ‘सायबरनून’ के १९ मार्च २००२ के अंक में श्री वीरेंद्र कपूर ने लिखा:

   “उनके मुँह में ‘उस’ वाक्य को रखने वाले अंग्रेज़ी अख़बार को श्री मोदी ने अपनी संतप्त प्रतिक्रिया और निषेध दर्ज करने वाला पत्र भेजा जिसमें उन्होंने कहा कि वे (मोदी) कभी ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के उस संवाददाता से नहीं मिले, और न ही कहीं भी उस तरह का वाक्य बोलने का उन्हें कोई अवसर मिला। इसीलिए उस ‘खोजी वार्तांकन’ में की गई ग़लती तत्काल ठीक की जाए। लेकिन अख़बार के संपादकों ने ग़लती को ठीक करने से इनकार कर दिया और श्री मोदी की चिट्ठी पर दो हफ़्ते तक बैठे रहे। इस अंग्रेज़ी अख़बार में यदि सबसे वरिष्ठ संपादक की मर्ज़ी चलती तो शायद वे श्री मोदी का पत्र छापते, परंतु वरिष्ठ संपादक की अकेले की वहाँ कुछ चलती नहीं। ‘संघ परिवार से संबंधित सभी ख़बरों को दबाकर रखने’ की खुले तौर पर बात करने वाले नव संपादकों से वह पूरा अख़बार भरा है, और अख़बार के प्रबंधन को तो विज्ञापन से होने वाले राजस्व के अलावा कुछ दिखता ही नहीं है, इसीलिए श्री मोदी का पत्र अब तक प्रकाशित नहीं हुआ है। अतः श्री मोदी का यह कहना कि, मीडिया उनके बारे में पूर्वाग्रह-दूषित भावना रखता है और उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास करता है, संपूर्णतः ग़लत नहीं है। क्योंकि श्री मोदी का बताया वाक्य उस अख़बार में प्रकाशित होते ही अन्य सभी प्रसार-माध्यमों ने उसे बार-बार प्रकाशित किया। 

   अब जाँच के बाद बाहर आ गया हैं कि अहमदाबाद और राज्य के अन्य ठिकानों पर अल्पसंख्यकों से प्रतिशोध लेने के लिए किए गए जानलेवा हमलों को सही बताने के लिए मुख्यमंत्री ने जिस दिन न्यूटन के तीसरे सिद्धांत को बताने का दावा किया गया, उस दिन ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ अख़बार का कोई भी प्रतिनिधि मुख्यमंत्री से मिला ही नहीं था। उस अख़बार के संपादकों ने भी यह निष्कर्ष निकाला है कि ‘मोदी सरकार की मानसिकता को दर्शाने के लिए उनके पत्रकार ने ‘उस’ वाक्य को अपनी मर्ज़ी से आविष्कृत किया था’। दिल्ली में धर्मनिरपेक्षतावादी रिपोर्टरों के सम्मेलन में इस अख़बार के दिल्ली के डेप्युटी ब्यूरो चीफ़ ने कहा “फ़ासिस्ट ताक़तों से संघर्ष करें और उन्हें ‘अपने’ अख़बारों में कोई जगह न दें।” यह सब करने के लिए यह ख़बर पूरी तरह मनगढ़ंत थी और उसके बाद ग़लती सुधारी नहीं गई। 

   अपना ख़ुद का फ़ासीवादी ब्रांड चलाने वाले इस तरह के लोगों के व्यवहार के संबंध में अब अख़बारों के मालिकों का जाग्रत होना अति आवश्यक है। इस बीच श्री मोदी इस संदर्भ में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया में अपनी शिकायत ले जाने का विचार कर रहे हैं।”

 

   नरेंद्र मोदी ने ‘इंडिया टुडे’ को दिए ८ अप्रैल २००२ के अंक में प्रकाशित इंटरव्यू में कहा, “दंगों की शुरूआत होने के बाद मैंने ‘प्रत्येक क्रिया की उतनी ही और विरोधी प्रतिक्रिया होती है’ कहे जाने की ख़बर प्रकाशित हुई। वास्तव में मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा था। फिर भी एक अख़बार ने मेरे इस तथाकथित वाक्य को हेडलाइन बनाकर प्रकाशित किया गया। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा, ऐसा कहने वाला एक पत्र भी मैंने उस अख़बार को लिखा। मेरी उस पत्रकार परिषद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी उपस्थित था। आप इसके वीडियो टेप्स पूरी तरह से चेक कर सकते है [हमारी टिप्पणी– कही भी वैसा वाक्य ‘‘प्रत्येक क्रिया के लिए विरोधी प्रतिक्रिया होती हैं” नहीं दिखेगा उन पूरे टेप्स में]।” 

(संदर्भ: https://www.indiatoday.in/magazine/interview/story/20020408-what-happened-in-godhra-and-afterwards-is-numbing-narendra-modi-795436-2002-04-08)

 

   नरेंद्र मोदी ने ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’ को दिया इंटरव्यू १० मार्च २००२ के अंक में प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा, “मैंने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया। एक बड़े अख़बार ने ‘प्रत्येक क्रिया की समान और विरुद्ध प्रतिक्रिया होती है’, न्यूटन के इस सिद्धांत को मेरे मुँह में रख दिया। स्कूल छोड़ने के बाद मैंने कभी न्यूटन का नाम नहीं लिया है। यदि किसी को अपनी कल्पना और ख़ुद की इच्छा के अनुसार कुछ करना हो तो मैं कुछ नहीं कर सकता। अगर इसका उपयोग समाज के भले के लिए हो रहा हो तो मैं दुःख सहन करने के लिए भी तैयार हूँ। मेरा सभी विरोधियों से अनुरोध है कि गुजरात में स्थिति सामान्य होने तक कृपया इंतज़ार करें।…”

   

   दिनांक १२ मई २००२ के ‘द वीक’ में मोदी के साथ एक साक्षात्कार था। उसके कुछ अंश थे:

“प्रश्न: गुजरात के घटनाक्रम के दौरान आपके द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों ने काफी विवाद खड़ा कर दिया है। क्या अब आपको उन पर पछतावा है ?

उत्तर: मेरे द्वारा कथित तौर पर दिए गए बयानों पर कई लेख लिखे गए हैं। लेकिन न तो मैंने कभी ‘न्यूटन’ के नाम का उल्लेख किया है और न ही ‘एक्शन-रियाक्शन’ शब्दों का उच्चारण किया है। इस संबंध में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के मुख्य संपादक को कई पत्र भेजने के बावजूद, उन्होंने इस बारे में जनता को जागरूक नहीं किया है।”

 http://www.hvk.org/2002/0502/23.html 

   आधिकारिक रिकॉर्ड से यह दिखता है कि उस दिन ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के किसी भी रिपोर्टर की नरेंद्र मोदी के साथ कोई अपॉइंटमेंट नहीं थी। आज तक कोई भी यह साबित नहीं कर सका है कि श्री मोदी ने ऐसा कुछ कहा। इस बारे में झूठ फैलाने के लिए माफ़ी माँगना तो दूर रहा, उन्होंने श्री मोदी का स्पष्टीकरण भी सही ढंग से प्रकाशित नहीं किया। 

 

   सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एस.आई.टी. ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि ‘प्रत्येक क्रिया की समान और विरुद्ध प्रतिक्रिया होती है’, इस तरह का कोई भी बयान श्री मोदी ने देने का कोई सबूत नहीं है, और उनके वाक्य को ‘संदर्भ-से-बाहर’ उद्धृत किया गया लगता हैं। 

मनगढ़ंत कथा

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