ज़किया जाफ़री की नरेंद्र मोदी के विरुद्ध की गई शिकायत असली है

 सच्चाई: सबसे पहले ध्यान देने वाली बात है कि वर्ष २००६ तक अर्थात् दंगों के चार सालों तक ज़किया जाफ़री ने मोदी के ख़िलाफ़ कोई शिकायत की ही नहीं थी! उन्होंने केवल वर्ष २००६ से श्री मोदी के विरुद्ध बोलना शुरू किया, शायद कुछ ‘सामाजिक’ कार्यकर्ताओं के पढ़ाने, सिखाने पर, जब उनको लगा कि सबसे बड़ी मछली को जाल में फँसाने का यह अवसर है। दंगों में मारे गए एहसान जाफ़री की विधवा पत्नी श्रीमती ज़किया जाफ़री ने श्री मोदी, कुछ मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों सहित कुल ६२ लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में कई त्रुटियाँ व क़ानूनी ख़ामियाँ थीं, और कई जंगली आरोप थे, और यह शिकायत किसी छोटे बच्चे को सिखा-पढ़ाकर लिखाई गई शिकायत की तरह थी।

 

सच्चाई के बारे में तथ्यात्मक गलतियाँ 

   

   ज़किया के शिकायत में आरोप था कि गोधरा हत्याकांड के तत्काल बाद ओड़ गाँव में हुए भीषण हत्याकांड में आणंद ज़िला पुलिस प्रमुख श्री बी.एस. जेबालिया न केवल प्रत्यक्षदर्शी थे, बल्कि इस दंगे के लिए उनका समर्थन था और वे इसमें शामिल थे। वास्तव में, आणंद ज़िले के तत्कालीन पुलिस प्रमुख श्री जेबालिया नहीं थे बल्कि दूसरे अधिकारी श्री बी.डी. वाघेला थे; यह सच्चाई शिकायतकर्ता को मालूम नहीं थी! 

 

   श्रीमती ज़किया के शिकायत में आरोप लगाया गया हैं कि २७ फरवरी २००२ कि बैठक में मुख्यमंत्री श्री मोदी ने ‘हिंदुओं को गोधरा हत्याकांड का प्रतिशोध लेने की छूट दो’ का आदेश दिया और उस बैठक में मुख्य सचिव श्री सुब्बाराव मौजूद थे। लेकिन जैसा कि हमने देखा, उस समय श्री सुब्बाराव छुट्टी पर विदेश में थे और उनके स्थान पर प्रभारी मुख्य सचिव एस.के. वर्मा की उपस्थिति थी। 

 

   केवल इतना ही नहीं! अनेक लोग, जिनका २००२ के दंगों से कोई संबंध नहीं था, या जिन्होंने दंगों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की, उनके नाम भी ‘षड्यंत्रकारी’ के रूप में शिकायत में लिए गए। उदाहरण के लिए अहमदाबाद के भूतपूर्व पुलिस आयुक्त श्री के.आर. कौशिक को दंगों पर नियंत्रण के लिए ही इस पद पर लाया गया था, उनका ही नाम आरोपी के रूप में लिया गया। अहमदाबाद के दंगों को रोकने के लिए १० मई २००२ को श्री कौशिक की नियुक्ति की गई थी और उनके आते ही अहमदाबाद में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार आया, इतना की मात्र १० दिनों में २१ मे २००२ से सेना अहमदाबाद से वापिस लौटना शुरू हुआ। वे षड्यंत्रकारी कैसे हो सकते हैं? उस समय तत्कालीन पुलिस आयुक्त श्री पी.सी. पांडे को हटाने की माँग की गई थी (उन्होंने प्रशंसनीय कार्य करने के बावजूद)। उन्हें हटाने की माँग के कारण विवाद की स्थिति उत्पन्न होने पर श्री कौशिक को तैनात किया गया। श्री कौशिक की तैनाती क्यों और कैसे हुई, इस बात का जिन्हें पता नहीं था उनके द्वारा ही यह शिकायत की गई है

 

   श्रीमती ज़किया ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि हिंदुओं को मुस्लिमों के विरुद्ध भड़काने के लिए ही गोधरा हत्याकांड में जले हुए कारसेवकों के शव २७ फरवरी को गोधरा से अहमदाबाद तक एक जुलूस में लाए गए। यह झूठ है। गोधरा के शवों को २७ फरवरी को मध्यरात्रि में जुलूस के साथ नहीं बल्कि गंभीर माहौल में अहमदाबाद लाया गया था। हमने पहले ही देखा है कि इन शवों को पश्चिम अहमदाबाद के दूर स्थित एक अस्पताल में प्रातः ३:३० बजे लाया गया था, जिस समय ज़्यादातर लोग सो रहे थे, और लोगों को दंगों के लिए भड़काना लगभग असंभव था।

सनसनीख़ेज आरोप

   

   ज़ाकिया जाफ़री ने मोदी के विरुद्ध किया एक आरोप तो कल्पनाशक्ति से बाहर का है। उन्होंने अपनी शिकायत में कहा कि २७ फरवरी की रात को हुई बैठक में ‘हिंदू दंगाइयों को खुली छूट दी जाए’ का आदेश देने के साथ-साथ श्री मोदी ने एक और आदेश दिया कि ‘मुस्लिम महिलाओं पर यौन हिंसाचार के लिए हिंदुओं को प्रोत्साहित किया जाए’। मुस्लिम महिलाओं पर बलात्कार किए जाने का दावा करने वाले तथाकथित मुस्लिम गवाहों ने इस संबंध में वर्ष २००३ में सर्वोच्च न्यायालय में शपथ-पत्र दाख़िल किया था। लेकिन वर्ष २००९ में एस.आई.टी. के समक्ष बयान देते समय उन्होंने बताया कि ‘इस तरह के झूठे आरोप लगाने के लिए हमें मजबूर किया गया था’ (मनगढ़ंत कहानी १५, और उस बैठक के लिए मनगढ़ंत कहानी १८ देखिए)। श्रीमती ज़किया जाफ़री के इन बेतुके और बनावटी आरोपों को इसी पृष्ठभूमि और संदर्भों में देखना पड़ेगा। २७ फरवरी की बैठक में श्री मोदी ने सचमुच ऐसे आदेश दिए (‘हिंदुओं को खुली छूट दी जाए’) इसे पलभर के लिए मान भी लें, तो भी वे पुलिस और अन्य अधिकारियों को आदेश दे सकते हैं कि ‘हिंदुओं को मुस्लिम महिलाओं पर यौन हिंसाचार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए’, यह विश्वसनीय है क्या? यह आरोप पूरी तरह से अविश्वसनीय और अतिशयोक्तिपूर्ण है।

 

क़ानूनी ख़ामियाँ

  

    इस शिकायत में श्रीमती ज़किया जाफ़री ने क़ानून की विभिन्न धाराओं का उल्लेख किया है। लेकिन वास्तव में इस शिकायत के उन विषयों पर ये धाराएँ लागू ही नहीं होती हैं। जैसे श्रीमती ज़किया ने आई.पी.सी. की धारा १९३ लगाने के लिए कहा है। इस धारा के तहत न्यायालय में मुक़दमे के दौरान जब झूठा सबूत दिया जाता है, तब वह अपराध माना जाता है। यह धारा किसी व्यक्ति द्वारा नहीं, केवल न्यायालय के आदेश पर लगाई जा सकती है। श्रीमती जाफ़री ने आरोपी लोगों पर जाँच आयोग क़ानून की धारा ६ को लगाने के लिए कहा है। इसका अधिकार भी केवल जाँच आयोग को ही है, कोई व्यक्ति इसे नहीं लगा सकता। इस शिकायत में ‘मानवाधिकार सुरक्षा संबंधी क़ानून’ की धाराओं को भी ग़लत ढंग से घुसाया गया है। शिकायतकर्ता का कहना है कि ‘वर्ष २००२ के दंगों का षड्यंत्र रचने और उसमें शामिल होने के आरोप में श्री मोदी और अन्य लोगों पर अपराध दर्ज करने के लिए मेरी शिकायत का रूपांतर एफ़.आई.आर. के रूप में किया जाए’। 

   

   मीडिया, जिसपर गुजरात का जुनून सवार था (‘Gujarat obsessed media’), को उपर्युक्त सच्चाई का पता नहीं था, यह असंभव है। लेकिन फिर भी इस सच्चाई को सामने लाने का कष्ट एक भी अख़बार ने नहीं लिया। मीडिया को इतना निश्चित तौर पर पता था कि श्रीमती ज़किया जाफ़री ने की शिकायत की सच्चाई यदि बाहर आई तो सबसे पूर्वाग्रह-दूषित न्यायमूर्ति भी मोदी को दोषी नहीं ठहरा पाएँगे और इस शिकायत को सच नहीं समझेंगे, और इसीलिए मीडिया ने सच्चाई को हमेशा दबाकर रखा। 

 

   ज़किया जाफ़री की शिकायत और एस.आई.टी. की रिपोर्ट से संबंधित और कई मुद्दे हैं, जिन्हें हम अगले एक अध्याय में देखेंगे।

मनगढ़ंत कथा

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