२७ फरवरी की रात को अधिकारियों की बैठक में नरेंद्र मोदी ने पुलिस अधिकारियों से हिंदुओं को हिंसा करने की अनुमति देने के लिए कहा 

  सच्चाई: जिस बैठक में अनेक अधिकारी उपस्थित हों उसमें खुलेआम ऐसे आदेश देने के लिए क्या नरेंद्र मोदी मूर्ख हैं, जहाँ कोई भी व्यक्ति उन आदेशों को गोपनीय ढंग से रिकॉर्ड कर सकता था या जिससे श्री मोदी के ख़िलाफ़ ८ गवाह तैयार होते? अगर ये मान भी लें कि मोदी को इस तरह के आदेश देने होते तो ऐसी बैठक में खुले तौर पर कभी नहीं देते, किसी मध्यस्थी या संदेश देने वाले अन्य व्यक्तियों के माध्यम से आदेश देते (जैसे वैयक्तिक सचिव), ख़ुद आगे न आने कि सावधानी बरत कर। 

   

   ‘इंडिया टुडे’ के लेख ‘क्रोनोलॉजी ऑफ़ ए क्रायसिस’ (१८ मार्च २००२ के अंक में) में कहा गया:

   “२७ फरवरी २००२ 

   …रात को १०:३० बजे– मुख्यमंत्री ने गांधीनगर में वरिष्ठ आधिकारियों की बैठक बुलाई, और बाद में संवेदनशील भागों में कर्फ़्यू लागू करने और प्रतिबंधात्मक तौर पर गिरफ़्तारी के आदेश दिए।”

 

   इससे हमें समझता हैं कि यह बैठक सचमुच २७ फरवरी २००२ को देर रात में हुई थी। (‘आउटलुक’ जैसे नरेंद्र मोदी के विरोधियों ने एक बार दावा किया था कि यह बैठक आधी रात को हुई थी जो ग़लत है।) दूसरी बात यह है कि सरकार ने इस बैठक के बारे में किसी प्रकार की गोपनीयता नहीं बरती या इसके आयोजन से इनकार भी नहीं किया। परंतु यह बैठक दूसरे दिन भड़क सकने वाले संभावित हिंसाचार को कैसे रोका जाए इस विषय पर चर्चा करने के लिए थी।

  

  पहले हम २७ फरवरी की इस महत्त्वपूर्ण बैठक की पृष्ठभूमि को देखते हैं। २७ फरवरी को सुबह ८ बजे हुए गोधरा हत्याकांड के बाद नरेन्द्र मोदी ने तुरंत (सबह ९:४५ को) गोधरा में कर्फ्यू लगा कर ‘देखते-ही-गोली मारने’ के आदेश दिए। उनके आदेश पर  उस रात ८२७ प्रतिबंधात्मक गिरफ्तारियाँ की गई। हमने सरकार ने हिंसाचार को रोकने के लिए किए उपायों को देखा हैं। २७ फरवरी को रेडिफ़ डॉट कॉम ने भी ख़बर दी थी कि, राज्य सरकार ने दंगों को रोकने के लिए सभी प्रतिबंधात्मक उपाय किए और सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी। ७० हज़ार सुरक्षाकर्मियों, शीघ्र कृति दल (RAF), और केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) को तैनात किया गया। २७ फरवरी की शाम को गोधरा में टी.वी. चैनलों से बात करते हुए नरेंद्र मोदी ने लोगों से शांति बनाए रखने और जवाबी हमले न करने की अपील की। 

 

  इन सब तथ्यों से ही स्पष्ट होता है कि २७ फरवरी की बैठक में ‘हिंदुओं को खुली छूट दे दो’ ऐसा प्रशासन से कहना तो दूर, दूसरे दिन होने वाले संभावित हिंसाचार को न होने देने और नियंत्रित करने के लिए किए जाने वाले उपायों पर चर्चा हुई होगी। और दूसरे दिन पुलिस और प्रशासन ने वास्तव में की गई कार्यवाही को देखकर भी यह स्पष्ट होता है कि ऐसा ही हुआ, जिन्होंने अगले दिन हिंदुओं को किसी प्रकार की छूट नहीं दी और हिंसा रोकने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास किया।

 

मोदी ने ‘हिंदुओं को अपना गुस्सा ज़ाहिर करने दो’ का उस बैठक में आदेश देने का आरोप किसने लगाया है?

   

   ‘आउटलुक’ साप्ताहिक (जो नरेंद्र मोदी का कट्टर विरोधी हैं) ने ३ जून २००२ के अपने अंक में सबसे पहले यह आरोप लगाया कि २७ फरवरी की रात को हुई उस बैठक में मोदी ने अधिकारियों को आदेश दिए कि ‘हिंदुओं को प्रतिशोध लेने की छूट दो’। (लिंक: https://web.archive.org/web/20160920161542/http://www.outlookindia.com/magazine/story/a-plot-from-the-devils-lair/215889)

  

    इसके बाद नरेंद्र मोदी ने ‘आउटलुक’ को एक अवमानना नोटिस भेजी, जिसकी ८ जून २००२ को विभिन्न समाचार आउटलेट्स (जैसे रेडिफ़.कॉम, टाइम्स ऑफ इंडिया आदि) ने खबर दी।

   

   सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति व्ही. कृष्ण अय्यर की अध्यक्षता में [जो केवल नाममात्र अध्यक्ष थे] स्वगठित ‘कंसर्ण्ड सिटिज़न्स ट्रिब्यूनल’ (‘Concerned Citizens Tribunal’)– सी.सी.टी. समिति ने गुजरात दंगों का ‘अध्ययन’ किया और अपेक्षानुरूप सरकार को इन दंगों के लिए दोषी ठहराया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि गोधरा हत्याकांड में ट्रेन को ‘अंदर से’ आग लगी थी, किसी भी भीड़ ने उस ट्रेन को नहीं जलाया था; इस तरह गोधरा के मुसलमानों का भीषण पाप धोने की कोशिश करने के हद तक जाकर सी.सी.टी. ने ख़ुद को हँसी का पात्र बनाया। ‘आउटलुक’ के ३ जून २००२ के अंक की ख़बर में कहा गया कि इस ट्रिब्यूनल ने गुजरात सरकार के एक मंत्री से लिए इंटरव्यू में इस मंत्री ने बताया कि नरेंद्र मोदी ने २७ फरवरी की बैठक में अधिकारियों से कहा कि ‘हिंदुओं को खुली छूट दो’। (‘आउटलुक’ ने उस समय उस मंत्री का नाम नहीं था। लेकिन मार्च २००३ में उनकी हत्या होने के बाद ‘आउटलुक’ ने कहा कि वे मंत्री हरेन पंड्या थे।) 

 

   ‘आउटलुक’ ने दिनांक ३ जून २००२ के लेख में कहा:

 

   “मंत्री महोदय ने ‘आउटलुक’ को बताया कि, उन्होंने उनकी गवाही में (सी.सी.टी. समिति को दी गई गवाही में) कहा था कि २७ फरवरी की रात को मोदी ने जिन अधिकारियों को बैठक में बुलाया था उनमें डी.जी.पी. (गुजरात राज्य के तत्कालीन पुलिस प्रमुख) श्री के. चक्रवर्ती, अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर श्री पी.सी. पांडे, मुख्य सचिव श्री जी. सुब्बाराव, गृह सचिव श्री अशोक नारायण, गृह विभाग के सचिव श्री के. नित्यानंद (यह आई.जी. स्तर के पुलिस अधिकारी थे और इस पद पर डेप्युटेशन पर आए थे) और डी.जी.पी. (आई.बी. अर्थात् इंटेलिजेंस ब्यूरो) श्री जी.एस.रायगर थे। इस बैठक में मुख्यमंत्री कार्यालय के श्री पी.के. मिश्रा, अनिल मुखीम और ए.के. शर्मा भी उपस्थित थे। मंत्री महोदय ने ‘आउटलुक’ को यह भी बताया कि यह बैठक मुख्यमंत्री के निवास-स्थान पर हुई थी। (यहाँ इस बात पर ध्यान दें कि इसमें श्री संजीव भट्ट के नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं होता है!!)

   मंत्री महोदय ने ट्रिब्यूनल को बताया कि, उस दो घंटे की बैठक में मोदी ने यह स्पष्ट किया कि दूसरे दिन के विहिंप के बंद के दौरान गोधरा के लिए न्याय होगा। उन्होंने यह आदेश दिया कि ‘हिंदुओं के जवाबी हमले में पुलिस बीच में न आए’। मंत्री की गवाही के अनुसार बैठक में एक समय  डी.जी.पी. चक्रवर्ती ने इसका जमकर विरोध किया, लेकिन मोदी ने उन्हें कठोरता से डाँटकर चुप रहने और आदेशानुसार काम करने के लिए कहा। मंत्री महोदय के अनुसार अहमदाबाद के पुलिस आयुक्त (पी.सी. पांडे) ने बाद में इस बारे में निजी तौर पर पछतावा व्यक्त किया, लेकिन बैठक में आपत्ति उठाने का साहस वे नहीं दिखा सके।

   मंत्री महोदय की गवाही के अनुसार यह बैठक ख़ास मोदी स्टाइल बैठक थी, जिसमें चर्चा कम और आदेश ही ज़्यादा थे। बैठक के अंत तक मोदी यह सुनिश्चित कर सके कि उनके बड़े अधिकारी, ख़ासकर पुलिस, संघ परिवार के लोगों के बीच नहीं आएंगे। इस संदेश को लोगों की भीड़ के समूहों तक पहुँचाया गया। (एक बड़े आई.बी. अधिकारी के अनुसार २८ फरवरी की सुबह पहले विहिंप और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अहमदाबाद के कुछ भागों में जाकर थोड़ी-बहुत गड़बड़ की, सिर्फ़ यह देखने के लिए कि क्या वाक़ई में पुलिस इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। पुलिस ध्यान नहीं देने पर श्री मोदी के शब्द सच होने का लोगों के बीच विश्वास होने के बाद हत्याकांड की शुरूआत हुई।)”

 

   इस ख़बर में स्पष्ट तथ्यात्मक ग़लतियाँ हैं। ‘आउटलुक’ की ख़बर के अनुसार इस बैठक में मुख्य सचिव श्री जी. सुब्बाराव और मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी श्री ए.के. शर्मा उपस्थित थे। जबकि इन दोनों में से कोई भी उस बैठक में उपस्थित नहीं था। उस दिन श्री सुब्बाराव विदेश में छुट्टी पर थे और उनकी जगह कार्यकारी मुख्य सचिव श्रीमती एस.के. वर्मा इस बैठक में शामिल हुई थीं। एस.आय.टी. रिपोर्ट पृष्ठ ५८ पर कहती हैं कि ए.के.शर्मा १९ फरवरी २००२ से ५ मार्च २००२ तक उनके बहन की शादी के संबंध में छुट्टी पर थे और वे भी उपस्थित नहीं थेयह एकमात्र ग़लती ‘आउटलुक’ और स्व. श्री हरेन पंड्या [अगर उन्होंने ऐसा दावा किया था तो] का दावा गलत साबित करने के लिए पर्याप्त है। ‘आउटलुक’ को यह एहसास हुआ कि उसने एक बड़ी ग़लती की हैं, और उसने १९ अगस्त २००२ के अंक में श्री पंड्या का एक और इंटरव्यू लिया [पंड्या का नाम लिए बगैर], जिसमें उसने ३ जून २००२ के अंक में की इस गलती को स्वीकार किया।

 

   थोड़ी देर के लिए हम मानकर चलते हैं कि, स्व. श्री हरेन पंड्या ने ‘आउटलुक’ को बताया कि “२७ फरवरी की बैठक में मोदी ने अधिकारियों से कहा कि ‘हिंदुओं को अपना गुस्सा प्रकट करने दो’”। जब श्री पंड्या ख़ुद बैठक में उपस्थित नहीं थे, तो उनकी विश्वसनीयता क्या है? जब वे बैठक में उपस्थित लोगों के नाम भी सही बता नहीं सकता, तो उस बैठक के अंदर क्या हुआ यह उन्हें कैसे पता चलेगा? श्री पंड्या ने यह भी कहा कि बैठक दो घंटे तक चली थी, जबकि बैठक केवल ३० से ४५ मिनट तक चली थी (एस.आई.टी. की रिपोर्ट के अनुसार)। 

 

   नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद श्री हरेन पंड्या को गृहमंत्री पद से राजस्व मंत्री बना कर कैबिनेट में उनकी पदावनति हो गई थी। ख़बरें थी कि वे मुख्यमंत्री से नाराज़ थे। यह भी कहा जाता है कि अक्तूबर २००१ में मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी एलिसब्रिज निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा उपचुनाव लड़ कर विधानसभा में जाना चाहते थे, जिसका प्रतिनिधित्व श्री हरेन पंड्या कर रहे थे (भाजपा के लिए गुजरात और देश में यह सबसे सुरक्षित चुनाव क्षेत्रों में से एक था)। कहते हैं कि मोदी के लिए अपने चुनाव क्षेत्र के विधायक पद से इस्तीफ़ा देने से हरेन पंड्या ने इनकार किया, जिस कारण मोदी को राजकोट-२ से चुनाव लड़ना पड़ा, जो चुनाव वो जीत गए।

      

   ‘आउटलुक’ को किसी भी तरीक़े से नरेंद्र मोदी को सूली पर चढ़ाना था, और उसने मंत्री ने दी जानकारी की छानबीन किए बिना ३ जून २००२ के अंक में नरेंद्र मोदी को दोषी कह दिया, अगर पंड्या उनसे बोले तो। एक मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ इस तरह का गंभीर आरोप करने से पहले सच्चाई की जाँच करना ‘आउटलुक’ की ज़िम्मेदारी थी। 

 

   यदि केवल तर्क के लिए कहा जाए कि मोदी ‘गोधरा के लिए न्याय’ चाहते थे, जैसा कि कथित तौर पर यहां पंडया ने यहां दावा किया, तो उन्होंने २७ फरवरी २००२ को गोधरा में देखते ही गोली मारने के आदेश नहीं दिए होते और कर्फ़्यू भी नहीं लगाया होता। सड़क पर न्याय के हिसाब से कानून को हाथ में लेना जमावों को गोधरा के सिग्नल फालिया इलाके के मुसलमानों पर, जहां से हत्यारे आए थे, हमला करने की अनुमति देना होता, नरोडा पाटिया, चमनपुरा और गुजरात के अन्य क्षेत्रों के मुसलमानों पर हमला करने के बजाय, जिनका गोधरा हत्याकांड से कोई लेनादेना नहीं था।

 

   इस सब में ‘आउटलुक’ का पूरा आधार हरेन पंड्या के बयान पर था और उस समय उन्होंने उनका नाम भी नहीं लिया था। लेकिन ट्रिब्यूनल (सी.सी.टी.) या ‘आउटलुक’ दोनों में से किसी ने भी श्री पंड्या के उनसे मिलने, या बयान अथवा साक्षात्कार देने का कोई भी सबूत कभी भी पेश नहीं किया। ‘आउटलुक’ ने बाद में यह दावा किया था कि उसके साथ श्री हरेन पंड्या के अगस्त २००२ के बातचीत की रिकॉर्डिंग उपलब्ध है। लेकिन ३ जून २००२ के अंक में छपे साक्षात्कार की रिकॉर्डिंग होने का दावा भी ‘आउटलुक’ ने कभी नहीं किया। ‘आउटलुक’ ने १९ अगस्त २००२ के अंक में दी ख़बर इसप्रकार है:

 

   “श्री मोदी को लग रहा था कि जो मंत्री ट्रिब्यूनल में गए, वे उनके तत्कालीन राजस्व मंत्री हरेन पंड्या थे। उन्होंने अपने खुफ़िया अधिकारियों को पंड्या के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा करने के निर्देश तक दिए। लेकिन, ‘आउटलुक’ को मिली जानकारी के अनुसार खुफ़िया विभाग मोदी को कोई भी निर्णायक सबूत नहीं दे सका। इसके बावजूद मोदी ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के माध्यम से पंड्या को ‘कारण बताओ’ नोटिस दिया और उनसे पूछा कि ‘क्या आप ट्रिब्यूनल में गए थे, यदि गए थे तो क्यों और किसकी अनुमति से आपने ट्रिब्यूनल के समक्ष बयान दिया?’ श्री पंड्या ने नरेंद्र मोदी की खिल्ली उड़ाते हुए अपने कड़े जवाब में ट्रिब्यूनल में जाने से साफ़ इनकार कर दिया।”

 

   ‘आउटलुक’ या ट्रिब्यूनल के पास श्री पंड्या ने बयान देने का कोई सबूत नहीं है और ख़ुद श्री पंड्या ने इस आरोप से इनकार किया। तो २७ फरवरी की बैठक के संबंध में श्री हरेन पंड्या ने नरेंद्र मोदी पर किसी भी प्रकार का आरोप करने का कोई भी सबूत सार्वजनिक मंच पर उपलब्ध नहीं है। 

 

   लेकिन इस लेखक को लगता है कि श्री हरेन पंड्या ने ट्रिब्यूनल के समक्ष बयान दिया होगा, और ३ जून २००२ के अंक के लिए ‘आउटलुक’ से बात भी की होगी। हमें सिर्फ़ इतना ही कहना है कि इसका कोई भी सबूत नहीं दिया गया है, और बगैर सबूत के किए हुए दावों की कोई कीमत नहीं होती।     

  

   ‘आउटलुक’ के १९ अगस्त २००२ के अंक में दिया हुआ इंटरव्यू था (यह मानते हुए कि यह इंटरव्यू रिकॉर्ड करने का ‘आउटलुक’ का दावा सही है):

   “मंत्री महोदय– (अपनी बात आगे बढ़ाते हुए) देखिए, मैंने जो कुछ बताया, वह किसी असंतुष्ट व्यक्ति का बयान नहीं है। मैंने ये सब इसलिए नहीं कहा क्योंकि मैं नाराज़ हूँ। (हमारा कहना: यही वास्तविक कारण था; कि वे नाराज़ थे! गृहमंत्रालय का पद गया था!) मेरी जगह पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति उनसे लड़ नहीं सकता। अतः मेरा अंतरंगी रहना, मंत्रिमंडल में, पद पर रहना, सत्ता में रहना महत्त्वपूर्ण है और इसीलिए मेरी पहचान सुरक्षित रहनी चाहिए। 

   आउटलुकआपने श्री सुब्बाराव का नाम लिया था, उससे गड़बड़ हो गई। (‘आउटलुक’ ने अपनी ख़बर में कहा था कि इस बैठक में मुख्य सचिव श्री जी. सुब्बाराव और मुख्यमंत्री कार्यालय के श्री ए.के. शर्मा उपस्थित थे। लेकिन बैठक में दोनों में से कोई भी उपस्थित नहीं था।) [कोष्ठक में के शब्द ‘आउटलुक’ के हैं, हमारे नहीं]

   मंत्री महोदय – वास्तव में यह हुआ कि उस समय प्रभारी मुख्य सचिव कार्यरत थे। मेरी जानकारी में कुछ गड़बड़ हो गई। लेकिन सुनिए, उनका इनकार एकदम कमज़ोर है, है ना? यदि वे इस बात को मुद्दा बना रहे हैं, तो उन्हें कहिए कि आपको (‘आउटलुक’ को) उस ख़बर में प्रकाशित सभी लोगों का अधिकृत इनकार कागज़ पर हस्ताक्षर समेत चाहिए। उनके अनुसार जो दो लोग बैठक में उपस्थित नहीं थे उन्हें छोड़ दीजिए, बाक़ी जो लोग बैठक में शामिल थे उन्हें कागज़ पर हस्ताक्षर सहित यह कहने के लिए बोलिए कि ऐसी कोई भी बैठक नहीं हुई, कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आदेश भी नहीं मिले। उन्हें कागज़ पर हस्ताक्षर सहित यह कहने दीजिए।…

   मंत्री महोदय (अपनी बात जारी रखते हुए)– मुख्य सचिव के नाम में मैंने ग़लती कर दी। परंतु बाक़ी सभी बातें सही हैं। बैठक का स्थान, समय सब सही है। यदि वे दबाव बनाते हैं, तो अधिकारियों से (बैठक में उपस्थित अधिकारी) अधिकृत इनकार पत्र की माँग कीजिए। 

   मंत्री महोदय (अपनी बात जारी रखते हुए)– श्री विजय रूपाणी आपको गौरव रथ-यात्रा की जानकारी देंगे (गुजरात गौरव यात्रा का संयोजन श्री रूपाणी करने वाले थे)। लेकिन इन लोगों से बात करते समय सावधान रहें। ये लोग ऐसे हैं कि आपसे बात करते समय वे मेरा नाम उगलवाने की कोशिश करेंगे। अतः सावधान रहें।”

https://web.archive.org/web/20120812102044/http://outlookindia.com/article.aspx?216905

 

   सरासर झूठ साबित होने के बाद भी ‘आउटलुक’ अपने आरोप पर अड़ा रहा। उस बैठक में उपस्थित दो अधिकारियों के नाम गलत लेने की बात ‘आउटलुक’ ने स्वीकार की। यही इस आरोप को ख़ारिज करने के लिए काफ़ी था, जब ‘आउटलुक’ और एक आरोपित मंत्री बैठक में उपस्थित रहने वाले अधिकारियों के नाम भी सही ढंग से नहीं बता सके। तो फिर बैठक में क्या हुआ, इस संबंध में उन्हें और ‘आउटलुक’ को कैसे पता चलेगा? इसलिए ‘आउटलुक’ के कहने का अर्थ था: “हालाँकि बैठक में कौन उपस्थित थे यह भी हम सही नहीं बता सके, फिर भी मोदी ने इस बैठक में ‘हिंदुओं को अपना गुस्सा व्यक्त करने दो’ का आदेश पुलिस को दिया था, यह हमारा आरोप १०० प्रतिशत सच है!” थोड़ी भी ईमानदारी वाला कोई साप्ताहिक कहता, “हमने ऐसे व्यक्ति पर भरोसा किया, जिसने दी जानकारी ग़लत थी और जिसको व्यक्तिगत नाराज़गी थी। हम अपनी रिपोर्ट और आरोप वापिस लेते हैं।”

 

   लेकिन इतना ही नहीं! आउटलुक’ के १९ अगस्त के अंक के लेख में भी ग़लतियाँ हैं! श्री हरेन पंड्या ने कहा (‘आउटलुक’ के अनुसार) कि ‘मैंने एक ग़लती की- मुख्य सचिव का नाम ग़लत लिया, लेकिन बाक़ी की जानकारी एकदम सही है।’

 

   परंतु बाक़ी का सब भी सही नहीं है। बैठक में केवल मुख्य सचिव ही अनुपस्थित नहीं थे, बल्कि श्री ए.के. शर्मा भी अनुपस्थित थे। ‘आउटलुक’ ने इस बात को स्वीकार किया, मंत्री ने नहीं। ‘आउटलुक’ के लिए दुःखद बात यह है कि १९ अगस्त के अंक में भी एक तीसरी बड़ी ग़लती भी है; डी.जी.पी. (आई.बी.) श्री जी.सी. रायगर भी इस बैठक में उपस्थित नहीं थे! न श्री पंड्या और न ‘आउटलुक’ को इस बात का पता था! 

 

   वास्तव में एक ग़लती भी इन हास्यास्पद दावों को ख़ारिज करने के लिए पर्याप्त है। पर तीन लोगों के नाम ग़लत थे। रायगर का नाम भी इस साप्ताहिक ने ग़लत छापा। उनका नाम जी.सी. रायगर है न कि जी.एस. रायगर! और यह बैठक दो घंटे तक भी नहीं चली थी।

 

   यहाँ एक और बात पर ध्यान दीजिए कि ‘आउटलुक’ ने बैठक में उपस्थित लोगों के नामों का उल्लेख किया, उसमें श्री संजीव भट्ट का नाम कहीं भी नहीं था! वे कहीं भी तस्वीर में भी नहीं हैं। इस बैठक के विषय में श्री मोदी को जबरन दोषी कहने वाले ‘आउटलुक’ जैसे साप्ताहिक ने भी श्री संजीव भट्ट का कभी नाम भी नहीं लिया। 

 

   संजीव भट्ट के अलावा मोदी पर आरोप करने वाले दूसरे एकमात्र पुलिस अधिकारी हैं श्री आर. श्रीकुमार। गुजरात के पूर्व पुलिस अधिकारी श्रीकुमार ने नानावटी आयोग के समक्ष प्रस्तुत किए शपथ-पत्र में और बाद में एस.आई.टी. को बताया कि ‘हिंदुओं को मुस्लिमों पर अपना गुस्सा निकालने दो’ का आदेश मोदी ने उस २७ फरवरी के महत्त्वपूर्ण बैठक में दिया, ऐसा उस बैठक में उपस्थित डी.जी.पी. श्री वी.के. चक्रवर्ती ने उनसे (श्रीकुमार से) कहा था। श्रीकुमार ख़ुद इस बैठक में उपस्थित होने का, या श्री मोदी ने उनके सामने ऐसे आदेश देने का दावा भी नहीं कर रहे हैं। उनका आरोप है कि डी.जी.पी. श्री चक्रवर्ती ने उन्हें यह बताया। श्रीकुमार को श्री चक्रवर्ती ने ऐसा कुछ बताने का कोई भी सबूत नहीं है। अगर श्री चक्रवर्ती ने श्रीकुमार को ऐसा कुछ बताया होता, तो चक्रवर्ती ‘आउटलुक’ जैसे साप्ताहिक, या मीडिया में, या अन्यत्र कहीं, अथवा नानावटी आयोग के समक्ष निजी तौर पर या सार्वजनिक रूप से यही बात निश्चय ही कह सकते थे।

 

   लेकिन नानावटी आयोग के समक्ष बयान देते समय श्री चक्रवर्ती, और अन्य अधिकारियों ने इसके बिलकुल विपरीत बात कही थी। उन्होंने बताया कि इस बैठक में मोदी ने कहा था ‘दंगों को रोकिए’। इसके अलावा, गुजरात सरकार ने श्रीकुमार की पदोन्नति को ठोस कारणों से नकार कर उनसे कनिष्ठ अधिकारी को डी.जी.पी. के पद पर पदोन्नति देने के बाद ही श्रीकुमार ने मोदी के विरुद्ध आरोप लगाना शुरू किया। उन्हें पदोन्नति देने से इनकार करने से पहले श्रीकुमार ने नानावटी आयोग को दो शपथ-पत्र प्रस्तुत किए थे, जिसमें उन्होंने कहीं भी यह आरोप नहीं लगाया था। श्री चक्रवर्ती ने श्रीकुमार के दावे को पूरी तरह से ख़ारिज किया, और स्पष्ट रूप से इनकार किया कि उन्होंने श्रीकुमार को उस बैठक के बारे में ऐसा कुछ भी बताया। 

 

   श्रीकुमार का ‘सबूत’ किसी कीमत का नहीं हैं, क्योंकि वो उस बैठक में उपस्थित नहीं थे, और श्री चक्रवर्ती ने उन्हें ऐसा कुछ बताया, इसका भी कोई सबूत उन्होंने नहीं दिया। और अगर श्री चक्रवर्ती ने उन्हें ऐसा कुछ बताया भी होता तो भी यह कोई ‘सबूत’ नहीं है, क्योंकि श्री चक्रवर्ती को यह नानावटी आयोग या एस.आई.टी. के समक्ष, अथवा न्यायालय में बताना पड़ेगा। एस.आई.टी. की रिपोर्ट पृष्ठ ५८ पर कहती हैं: श्री आर.बी.श्रीकुमार द्वारा दिया गया बयान अफवाह है, जिसकी पुष्टि के. चक्रवर्ती ने नहीं की है। श्री आर.बी.श्रीकुमार को व्यक्तिगत तौर पर कोई जानकारी नहीं है क्योंकि वे उक्त बैठक में शामिल नहीं हुए थे।  

 

    नानावटी आयोग के समक्ष अपने पहले हलफनामे में जो उन्होंने १५ जुलाई २००२ को दायर किया था, श्रीकुमार ने कहा था: “यह प्रशंसनीय है कि दंगाई पुलिस से भारी संख्या में अधिक होने के बावजूद, पुलिस ने प्रभावी और निर्णायक कार्रवाई की, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि पहले कुछ दिनों में २२०० लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें से हिंदुओं की संख्या १८०० थी। पहले कुछ दिनों में पुलिस फाइरिंग में लगभग १०० लोग मारे गए थे, जिनमें ६० हिंदु थे। अतः स्पष्ट है कि पुलिस ने सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए बल प्रयोग करने में कोई संकोच नहीं किया” । हलफनामे में यह भी कहा गया था: “जो भी हो गोधरा घटना पर राज्य सरकार की प्रतिक्रिया तत्काल और त्वरित थी। बचाव और पुनर्वसन के प्रयास तत्काल शुरू किए गए। मुख्यमंत्री, वरिष्ठ मंत्रियों और अन्य अधिकारियों ने घटना स्थल का दौरा किया”। उन्होंने ६ अक्तूबर २००४ को दायर किए अपने दूसरे हलफनामे में भी इसी प्रकार का ही कहा था।

 

   लेकिन, अपने तीसरे हलफनामे में जो ९ अप्रैल २००५ में दायर किया गया था, उन्होंने अपने बयान को पूरी तरह बदल दिया। इसके पहले उनको फरवरी २००५ में उन पर चल रहें जे.एम.एफ.सी., भुज ने शुरू किए हुए एक अपराधिक मुकदमे के कारण पदोन्नति नहीं मिली, और उनके कनिष्ठ के.आर. कौशिक को गुजरात राज्य का डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस बनाया गया। इस तीसरे हलफनामे में उन्होंने राज्य सरकार, राजनीतिक नेताओं और गुजरात पुलिस को सांप्रदायिक दंगों के लिए और यहां तक कि अपने उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया। उन्हें पदोन्नति से वंचित कर देने के बाद ही उन्होंने ऐसा किया।

 

   अब संक्षेप में २७ फरवरी की बैठक में मोदी ने ‘हिंदुओं को अपना गुस्सा निकालने की छूट दो’ का आदेश अधिकारियों को देने का आरोप लगाने वाले कौन-कौन थे, यह देखते हैं – 

 

  1. श्री संजीव भट्ट– २७ फरवरी की बैठक में वे मौजूद नहीं थे, उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है। मोदी को जबरन दोषी ठहराने के इच्छुक तहलका और आउटलुक जैसे मोदी के सबसे बड़े दुश्मनों सहित किसी ने भी उस बैठक के ९ साल बाद तक यह दावा नहीं किया था कि श्री संजीव भट्ट इस बैठक में मौजूद थे। उनकी पृष्ठभूमि अत्यंत भीषण है, उनके विरुद्ध अनेक मामले लंबित हैं। वे २०११ में बिना किसी कारण के कई दिनों तक ड्यूटी पर अनुपस्थित थे, और जब वे आखिर निलंबित हुए, तब उन्होंने शहीद बनने का प्रयास किया। बाद में एस.आई.टी. की रिपोर्ट के अध्याय में संजीव भट्ट के २७ फरवरी के बैठक में उपस्थित रहने के दावे को विस्तार से देखेंगे। 
  2. श्री आर. श्रीकुमार– २७ फरवरी की बैठक में वे भी मौजूद नहीं थे और उन्होंने मौजूद रहने का दावा भी नहीं किया। 
  3. श्री हरेन पंड्या– उन्होंने ऐसा कोई आरोप लगाने का ही कोई भी सार्वजनिक सबूत नहीं है। ‘आउटलुक’ से बात करते समय उन्होंने यह दावा भी नहीं किया कि वे ख़ुद उस बैठक में उपस्थित थे, और उपस्थित लोगों के नाम लेने में की गलती को स्वीकारा। मोदी और हरेन पंड्या के बीच आरोपित मतभेद थे। पहले मंत्रिमंडल में उनकी पदावनति हो गई थी (तथा बाद में दिसंबर २००२ के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया गया)। इन सब कारणों से अगस्त २००२ में उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था। इससे स्पष्ट है कि मोदी के साथ व्यक्तिगत विवादों और अन्य दूसरे कारणों से श्री हरेन पंड्या मोदी के ख़िलाफ़ बोलने के लिए प्रेरित हो सकते थे। एस.आई.टी. रिपोर्ट के पृष्ठ २४० पर कहती है: “यहां उनके (हरेन पंडया) और श्री नरेंद्र मोदी के तनावपूर्ण संबंध (‘strained relations’) भी प्रासंगिक (‘relevant’) हैं, एक तथ्य जो स्वर्गीय पंडया के स्वर्गीय पिता विठ्ठलभाई पंडया ने प्रकट किया था”। 

   साथ ही, ध्यान दें कि अनेक कार्यकर्ताओं/पंथनिरपेक्षतावादियों ने यह आरोप लगाया था कि २००२ के दंगों में एक दरगाह पर हुए हमले में श्री पंड्या ख़ुद ही शामिल थे। लेकिन जबसे श्री पंड्या ने २००२ में मोदी के ख़िलाफ़ बोलना शुरू किया, और ख़ासकर मार्च २००३ में उनकी हत्या किए जाने के बाद (जिसके लिए मुस्लिमों को न्यायालयों ने दोषी घोषित किया), मीडिया ने उनपर लगाए गए दंगों के आरोप भूलकर उन्हें हीरो बना दिया। पंड्या आरोपानुसार १ मार्च २००२ को एक दरगाह को ढहाने का नेतृत्व कर रहे थे। यह दरगाह भाट्ठा (पालड़ी) में उनके मकान के पास मुख्य सड़क पर अवैध तौर पर थी [और शायद वैसे भी नगरपालिका द्वारा गिराई जाती]। बाद में उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ बोलना शुरू कर दिया कि सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं कर रहीं (डबल-टॉक)। उनपर दरगाह ढहाने का आरोप होने के कारण वे मतांध मुस्लिमों की हिटलिस्ट पर थे, और इसलिए उनकी हत्या कर दी गई।

  लेकिन मोदी को निशाना बनाने की उनकी नीति उनके लिए चमत्कार कर गई। दरगाह को नष्ट करने के आरोप को भूल कर मीडिया ने उन्हें हीरो बना दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने वाले किसी भी व्यक्ति को मीडिया का पूर्वाग्रह-दूषित गुट हीरो बनाने के लिए तत्पर रहता है, और घटना की गुणवत्ता की अनदेखी कर देता हैं।

 

   इसप्रकार मोदी पर वैसे आदेश उस बैठक में अधिकारियों को देने का आरोप लगाने वालों में से एक भी व्यक्ति (श्री संजीव भट्ट, श्री आर. श्रीकुमार, और न ही स्व. हरेन पंड्या-यदि उन्होंने यह आरोप लगाया था तो) उस बैठक में मौजूद ही नहीं था। सभी लोग जो वास्तव में उपस्थित थे, जैसे डी.जी.पी. चक्रवर्ती, ने बताया कि मोदी ने उन्हें दंगों पर नियंत्रण रखने के लिए कहा। 

 

   २७ फरवरी की बैठक में मोदी ने ‘हिंदुओं को अपना गुस्सा व्यक्त करने दो’ का आदेश दिया, इसे पलभर के लिए मान भी ले, तो क्या दूसरे दिन अधिकारियों ने ऐसा किया? बिलकुल नहीं। पुलिस ने वास्तव में की कार्यवाही का ब्यौरा हम देख चुके हैं। पुलिस यदि हिंदू समुदाय को वाक़ई में २८ फरवरी को खुली छूट देती, तो १ मार्च के अंकों में तमाम मीडिया वाले इस पर कड़ी आलोचना करते।

मनगढ़ंत कथा

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