एक तरफा हमलों में केवल मुसलमान मारे गए

 

   सच्चाई:  बेशक नरोड़ा पाटिया, गुलबर्ग सोसायटी, नरोड़ा गाँव, सदरपुरा, पांडरवाड़ा, ओड़ और अन्य ठिकानों पर एकतरफ़ा हमलों में मुस्लिम मारे गए, परंतु सारे दंगे एकतरफ़ा नहीं थे। जैसा कि हमने पहले के कुछ अध्यायों में देखा है- ख़ास कर पहले तीन दिनों के बाद मुस्लिम भी हिंदुओं की तरह ही आक्रामक थे। मुस्लिमों ने हिम्मतनगर, मोदासा, भरूच, और अहमदाबाद के दानीलिमड़ा, सिंधी मार्केट, और अन्य भागों में हिंदुओं पर भीषण हमले किए गए। ‘इंडियन एक्स्प्रेस’ व ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की रिपोर्टों के अनुसार मुस्लिमों ने कई स्थानों पर दंगे शुरू किए और अनेक हिंदुओं को उनके घरों से निकाल कर बेघर कर दिया। ‘इंडिया टुडे’ के १५ अप्रैल २००२ के अंक में भी इसी प्रकार की जानकारी दी गई है। 

 

   कोई चालीस हज़ार हिंदुओं को दंगा-पीड़ित शिविरों में शरण लेनी पड़ी। मुस्लिमों के हाथों दंगों में दलित समुदाय का सबसे अधिक नुकसान हुआ। २१ मार्च २००२ को अहमदाबाद के रेवड़ी बाज़ार में हिंदुओं की ५० दुकानें जला दी गईं, और इस घटना में १५ करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ। ३ मार्च २००२ के बाद मुस्लिमों द्वारा १५७ दंगे शुरू करने की घटनाओं को पुलिसने अधिकारिक तौर पर दर्ज किया है। उनके क्षेत्र में अपराधियों की खोज के लिए आई हुई न सिर्फ़ पुलिस, बल्कि भारतीय सेना पर भी मुस्लिमोंने पथराव भी किया और गोलियाँ भी चलाईं। मुस्लिम निवासियों ने दंगाइयों के फ़रार होने और छुपाए हुए हथियारों को लेकर भागने के लिए मानव शृंखलाएँ बनाई और बिजली के तार काट दिए।

 

   विभिन्न न्यायालयों ने ‘गोधरा’ के बाद दंगे भड़काने के आरोप में कुछ मुसलमानों को दोषी क़रार दिया। कुल ८० मुस्लिम दोषी घोषित हुए। इसके विवरण हम आगे देखेंगे। मुस्लिमों के दोषी पाए जाने से यह साबित होता है कि मुस्लिम भी उतने ही आक्रामक थे।

मनगढ़ंत कथा

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