‘गोधरा’ के बाद के दंगों पर नरेंद्र मोदी ने कभी भी खेद व्यक्त नहीं किया

 सच्चाई: यह दावा कि गुजरात दंगों के बारे में नरेंद्र मोदी ने दिसंबर २०१३ तक कभी भी खेद व्यक्त नहीं किया, तथ्यों पर पूरी तरह ग़लत है।

 

   नरेंद्र मोदी ने इन दंगों के बारे में दुःख व्यक्त किया था और इन दंगों को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ कहा था। ‘आज तक’ चैनल से नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू के कुछ अंश ‘इंडिया टुडे’ के ४ नवंबर २००२ के अंक में प्रकाशित हुए थे। इस में मोदी से पूछा गया था कि “प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और गृहमंत्री श्री आडवाणी जी ने कहा है कि गुजरात में जो कुछ हुआ, वह ग़लत है” इस पर श्री मोदी ने उत्तर दिया, मैं भी यही कहता हूँ; गुजरात के सांप्रदायिक दंगे दुर्भाग्यपूर्ण थे, और ये दंगे हुए इसका हमें दुःख है।” (संदर्भ: http://indiatoday.intoday.in/story/communal-riots-in-gujarat-were-unfortunate-narendra-modi/1/218781.html)

 

   गुजरात में २००२ के दंगों के बाद नरेंद्र मोदी ने मार्च २००२ में गुजरात विधानसभा में एक वक्तव्य दिया था, उसमें एक पैराग्राफ़ था– “क्या इस पर आत्मचिंतन करना अपेक्षित नहीं है? गोधरा की घटना हो या ‘गोधरा’ के बाद के दंगे, इनसे किसी भी सभ्य समाज की प्रतिष्ठा में इजाफ़ा नहीं होता है। दंगे मानवता पर कलंक हैं, और ऐसे दंगों से किसी का भी सर ऊँचा होने में मदद नहीं हो सकती। फिर किसी भी व्यक्ति की राय में अंतर किसलिए होना चाहिए?”

 

   नरेंद्र मोदी ने सितंबर २०११ में सद्भावना उपवास किया था, उस समय कुछ अख़बारों ने ख़बर दी: “गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (१६ सितंबर २०११) को कहा कि ‘राज्य में किसी भी व्यक्ति का दर्द उनका दर्द है, और हर एक व्यक्ति को न्याय दिलाना उनकी ज़िम्मेदारी है’। श्री मोदी के इस वाक्य का यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि वर्ष २००२ के ‘गोधरा’ के बाद के दंगों के बारे में खेद व्यक्त करने वाला यह उनका पहला बयान है। श्री मोदी ने तीन दिनों के उपवास पर बैठने से पहले की शाम को कहा कि, ‘हमारे लिए भारत का संविधान सर्वोपरि है। राज्य के मुख्यमंत्री की हैसियत से किसी भी व्यक्ति का दर्द मेरा दर्द है और प्रत्येक को न्याय दिलाना राज्य की (मेरे सरकार की) ज़िम्मेदारी है’।”

(संदर्भ: https://www.dnaindia.com/india/report-narendra-modi-s-first-sign-of-regret-says-pain-of-anybody-in-state-is-my-pain-1588032)

 

   केवल ‘डी.एन.ए.’ अख़बार ही नहीं, लगभग सारे मीडिया ने यही कहा, कि मोदी के सितंबर २०११ का यह बयान ‘खेद व्यक्त करने वाला पहला अवसर’ (जैसे मोदी ने इससे पहले दंगों का निषेध किया ही नहीं) था। ऐसा निष्कर्ष निकालना तथ्यों पर गलत है। वर्ष २०११ के इस उपवास से पहले मोदी ने कई बार इन दंगों का सीधा निषेध किया था। 

 

   यह सच है कि गुजरात दंगों के लिए मोदी ने कभी भी माफ़ी नहीं माँगी और यह उचित भी है। कोई व्यक्ति यदि ग़लती करता है तो वह ग़लती के लिए माफ़ी माँगता है। इस मामले में नरेंद्र मोदी ने कौन सी ग़लती की? वास्तव में २००२ के दंगों पर नियंत्रण लाने के लिए उन्होंने उत्कृष्ट भूमिका निभाई। एक तर्क किया जाता हैं कि “वर्ष १९८४ के दंगों के लिए कांग्रेस ने माफ़ी माँगी है। २००२ के दंगों के लिए क्या भाजपा माफ़ी माँगेगी?” 

 

    वर्ष १९८४ के दंगों के लिए कांग्रेस का माफ़ी माँगना कोई प्रशंसा वाली बात नहीं है। माफ़ी माँगने का सीधा अर्थ यह है कि वर्ष १९८४ के दंगों में जो तीन हज़ार सिक्ख मारे गए, उसकी ज़िम्मेदारी को स्वीकार करना। क्या केवल माफ़ी माँग लेने से क्या तीन हज़ार लोगों की हत्या का पाप धुल जाएगा? दोषियों को कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दंगाइयों के विरुद्ध किसी बडे प्रकार की कार्यवाही नहीं की, और बहुत ही कम लोगों को गिरफ़्तार किया। 

 

   कांग्रेस के नेता और भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने वर्ष १९९९ में दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ते समय आरोप लगाया था कि वर्ष १९८४ के दंगे रा.स्व.संघ ने कराए। इस हास्यास्पद आरोप के लिए अभी तक उन्होंने संघ या अन्य किसी से माफ़ी नहीं माँगी है। इस विचित्र आरोप के कारण उन्हें दक्षिण दिल्ली चुनाव क्षेत्र से भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा के हाथों हार का मुँह देखना पड़ा।

(संदर्भ: https://www.rediff.com/election/1999/sep/02man.htm

Myth

Tags: No tags

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *