दंगा-पीड़ितों की मदद के लिए गुजरात सरकार ने कुछ भी नहीं किया 

सच्चाई: गुजरात सरकार ने दंगा-पीड़ितों की सहायता के लिए बड़े पैमाने पर पैसा ख़र्च किया। ११ मई २००५ को राज्यसभा में यू.पी.ए. सरकार के केंद्रीय गृहराज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा, वो भी एक लिखित उत्तर में, कि गुजरात सरकार ने मृतकों के रिश्तेदारों को डेढ़ लाख रूपए जबकि १०, ३०, ४०, और ५० प्रतिशत तक घायल व्यक्तियों को क्रमशः ५ हज़ार, १५ हज़ार, २५ हज़ार, और ५० हज़ार रूपए दिए। 

 

   श्री जायसवाल ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि इसके अलावा राज्य सरकार ने दंगा-पीड़ितों को अलग से नकद आर्थिक सहायता के साथ-साथ घरेलू उपयोग की वस्तुएँ, दंगा प्रभावित भागों में ग़रीबी रेखा से नीचे के परिवारों को अनाज, मकान निर्माण के लिए मदद, व्यावसायिक सम्पत्तियों के पुनर्वास के लिए सहायता, छोटे उद्योगों का पुनर्वसन, उद्योग, दुकानों, और होटलों इत्यादि को सहायता दी। श्री जायसवाल ने बताया कि गुजरात सरकार ने जानकारी दी है कि राहत और पुनर्वास पर उसने २०४.६२ करोड़ रूपए ख़र्च किए हैं और साथ ही एन.एच.आर.सी. (ह्यूमन राइट्स कमीशन- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) की अनुशंसा पर की गई सहायता के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रकाशित की है।

(संदर्भ:https://web.archive.org/web/20120814014336/http://www.expressindia.com/news/fullstory.php?newsid=46538)

 

   गुजरात सरकार ने ‘इंडिया टुडे’ के ६ मई २००२ के अंक में दिए हुए विज्ञापन में कहा:

 

   “राज्य के ९९ राहत शिविरों, जिनमें से ४७ अहमदाबाद में हैं, में शरण लेने वाले १ लाख १० हज़ार दंगा-पीड़ितों को अनाज की आपूर्ति के लिए हर एक व्यक्ति के ३० रूपए प्रतिदिन के हिसाब से सरकार प्रतिदिन ३५ लाख रूपए ख़र्च कर रही है। 

    राज्य सरकार के सचिव स्तर के आई.ए.एस. अधिकारी इन राहत शिविरों की सीधे निगरानी कर रहे हैं। 

    अहमदाबाद के राहत शिविरों को छह समूहों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक समूह का नियंत्रण सचिव स्तर का अधिकारी कर रहा है। दंगा-पीड़ितों की छोटी से छोटी समस्याओं पर भी सचिव ध्यान दे रहे हैं। शिविर में रहने वाले बच्चों की परीक्षाओं की तैयारी के लिए शिक्षकों की तैनाती हर एक शिविर में की गई है, और दंगा-पीड़ितों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए स्वास्थ्य विभाग विशेष क़दम उठा रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दंगा-पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के निर्देशानुसार राज्य सरकार ने ‘संत कबीर आवास योजना’ शुरू की है। इस योजना के माध्यम से शिविरार्थी मकान बना सकेंगे।”

 

   एस.आई.टी. ने अपनी अंतिम रिपोर्ट के पृष्ठ सं ३२० पर अहमदाबाद के तत्कालीन जिलाधीश (कलेक्टर) श्री के. श्रीनिवास का हवाला देते हुए कहा कि १ मार्च २००२ से ३१ दिसंबर २००२ के दौरान अहमदाबाद के दंगा-पीड़ितों के राहत शिविरों में ७१,७४४ लोगों को रखा गया था, और उन्हें दैनिक इस्तेमाल के लिए ज़रूरी वस्तुओं, जैसे गेहूँ, चावल, दाल, तेल, मिल्क पाउडर, शक्कर, आलू-प्याज, चाय, आदि के रूप में सरकारी मदद मिली, जिसकी आपूर्ति के लिए कुल ६,८९,५७,५४,७५० रूपए ख़र्च किए गए (६८९.५७ करोड़ रूपए)। इसके अलावा विविध फुटकर ख़र्चों के लिए सरकार ने ४.१० करोड़ की सहायता प्रदान की, ऐसा उन्होंने कहा।

 

   इसप्रकार से मदद करने वाली गुजरात सरकार की बराबरी हिटलर से करना हास्यास्पद है। हिटलर ने यहूदी समुदाय के लोगों की हत्या के आदेश दिए थे, उनकी सहायता के लिए पैसे ख़र्च करने के नहीं। वर्ष १९७१ में पूर्वी पाकिस्तान में हुए हत्याकांड में पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिकों ने आरोप और खबरों अनुसार २४ लाख हिंदुओं का क़त्लेआम किया, तथा २.५ लाख बंगाली महिलाओं के साथ बलात्कार किया। (पाकिस्तान के मुस्लिम मज़हबी नेताओं ने बांग्लादेशियों को ग़ैर मुस्लिम घोषित करने के कारण अन्य ६ लाख बंगाली मुस्लिमों का भी क़त्लेआम किया गया, कुल ३० लाख लोग मारे गए)। 

 

   पाकिस्तान और बांगलादेश में नियमित तौर पर हिंदुओं की हत्याएँ होती हैं, महिलाओं का अपहरण करके जबरन धर्म परिवर्तन कर मुसलमान करवाया जाता है, मंदिरों पर हमले होते हैं। भारत के शासन वाले कश्मीर में जनवरी १९९० में स्थानीय मुस्लिम नेताओं ने वहाँ के हिंदुओं को को तीन विकल्प दिए थे– ‘इस्लाम स्वीकार करो, मरो, या कश्मीर छोड़ दो (महिलाओं को पीछे रखकर)’। 

 

   गुजरात पुलिस ने २८ अप्रैल २००२ तक प्रतिबंधात्मक उपाय के रूप में बीस हज़ार लोगों को गिरफ़्तार किया गया। पीड़ितों को बचाने के लिए स्टालिन, हिटलर जैसे हत्यारों ने कभी भी प्रतिबंधात्मक गिरफ्तारियाँ नहीं कीं। अब तक गुजरात में हिंसा के आरोप में ४८८ लोगों को न्यायालयों ने दोषी क़रार दिया है, जो कि देश में अब तक हुई किसी हिंसा की सबसे बड़ी संख्या है।

 

   किसी भी मुस्लिम देश ने हिंदुओं की हत्याओं के लिए किसी को उतनी सज़ा नहीं दी, जितनी मुस्लिम के मारे जाने पर देते। 

मनगढ़ंत कथा

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