गुजरात के दंगे, भारत का ‘सबसे भीषण नरसंहार’ थे 

सच्चाई: वर्ष २००२ के गुजरात दंगे १९६९ के गुजरात दंगों की तुलना में या स्वतंत्रता से पहले वर्ष १९४० के दशक में अहमदाबाद के दंगों की तुलना में, जिनमें हिंदुओं ने बुरी तरह मार खाई थी, काफी कम गंभीर थे। गुजरात में १९८०, १९८२, १९८५ (लंबे व बड़े), १९९०, और १९९२ में भी बड़े दंगे हुए थे। 

 

   कांग्रेस के शासन में वर्ष १९८४ में नई दिल्ली में भीषण दंगे हुए। इन दंगों में अधिकारिक तौर पर तीन हज़ार लोग मारे गए। ये दंगे केवल नई दिल्ली तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि नई दिल्ली से दूर त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी दंगे हुए। भारत में १९९२-९३ के बाबरी विध्वंस के बाद हुए दंगों में २ से ३ हजार लोग मारे गए थे। जम्मू और कश्मीर में वर्ष १९८९ से ४० हज़ार भारतीय मारे गए हैं। 

 

   गोधरा के बाद हुए दंगों को ‘देश का सबसे भीषण नरसंहार’ कहना तो दूर, ‘नरसंहार’ (massacre) भी नहीं कहा जा सकता। 

   

   सबसे भीषण हत्याकांड मध्य-युग में हिंदुओं का हुआ था। वर्ष १३९९ में तैमूर ने दिल्ली में एक दिन में ही एक लाख हिंदुओं का नरसंहार किया था। एक और आक्रमणकारी नादिरशाह ने वर्ष १७३९ में दिल्ली में बड़े पैमाने पर क़त्लेआम किया था। मध्य-युग के हिंदुओं के इन हत्याकांडों को देखने के बाद हिटलर ने १९३० के दशक में गैस चेंबरों में किया यहूदी समुदाय का हत्याकांड भी फीका लगता है। मध्य-युग में हिंदुओं के नरसंहार अकबर (जिसका शासनकाल १५५६-१६०५ था) सहित सभी महत्त्वपूर्ण मुस्लिम शासकों ने किए थे। फरवरी १५६८ में अकबर ने ३० हज़ार हिंदुओं की हत्या करने का आदेश दिया था, हालाँकि १५७० के बाद अकबर बदला। 

 

   पाकिस्तान और बांग्लादेश, ये दोनों देश भारत का हिस्सा थे, और पश्चिम पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की संख्या १९४७ में २० प्रतिशत थी, जो अब घटकर १ प्रतिशत रह गई है; शायद आधुनिक युग  का, लेकिन कहीं भी दर्ज न किया गया या न बताया गया, यह सबसे बड़ा नरसंहार, हत्याकांड है। इसी प्रकार आज के बांगलादेश में वर्ष १९०१ में ३४ प्रतिशत हिंदू थे, जो १९४७ में घटकर २९ प्रतिशत रह गए और २०११ में वहाँ पर हिंदुओं का प्रतिशत मात्र ८.६ हो गया है। केवल यही नहीं, भारत में वर्ष १९५१ में हिंदुओं की संख्या ८४ प्रतिशत थी जो घटकर वर्ष २०११ में ७९.८ प्रतिशत हुई।

 

   पाकिस्तान के सबसे प्रमुख हिंदू नेता श्री सुदामचंद चावला की २९ जनवरी २००२ को अपने राइस मिल से लौटते समय जकोबाबाद में दिन दहाड़े हत्या कर दी गई। उनके हत्यारों को कोई सज़ा नहीं हुई। ‘मेरी जान को ख़तरा है’, इस बारे में श्री चावला ने अनेक वर्षों तक बार-बार पकिस्तान मानवाधिकार समिति और नागरिक संगठनों से शिकायत की थी। यदि हिंदुओं के सबसे प्रमुख नेता की यह कथा थी, तो सामान्य हिंदुओं की क्या हालत होगी? (लिंक: http://www.sudhamchandchawla.com)

 

   स्वतंत्र भारत में भी, हिंसाचार की तुलना यदि अन्य अनेक घटनाओं के साथ करें तो २००२ के दंगे इनके सामने कुछ भी नहीं थे। वर्ष १९८९ में बिहार में कांग्रेस के शासनकाल में भागलपुर में हुए दंगों में एक हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे, उनमें से अधिकांश मुस्लिम थे। इस मामले में पहले मुस्लिमों ने हिंदुओं की बस्तियों पर बम फेंकने का आरोप है, जिसके बाद प्रतिकार हुआ। वर्ष १९८३ में असम में (कांग्रेस शासन में) दंगे के केवल एक मामले में २१०० लोग मारे गए थे।   

मनगढ़ंत कथा

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