एहसान जाफरी ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी को फोन किया था

तथ्य: यह पूरी तरह से असत्य है, और घटना होने के बाद काफी विलंब से गढ़ा गया झूठ है। दंगों के समय और कई महीनों के बाद तक ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया गया था। एस.आई.टी. रिपोर्ट के पृष्ठ २६१-२६२ पर कहा गया है कि एहसान जाफरी द्वारा नरेंद्र मोदी को किए किसी कॉल का कोई रिकार्ड नहीं है।

      अरुंधति रॉय ने ‘आउटलुक’ (६ मई २००२ का अंक) में लिखा:

   “…भूतपूर्व कांग्रेस संसद सदस्य इक़बाल एहसान जाफ़री के मकान को भीड़ ने घेर लिया था। उन्होंने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), पुलिस आयुक्त (पी.सी. पांडे), मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को फोन लगाया, लेकिन इन सभी कॉल्स को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।…”

  यह अरुंधति रॉय का अविश्वसनीयता पूर्ण लेख है, जिसमें झूठा दावा किया गया है कि जाफरी की बेटियों के साथ बलात्कार किया गया था। मिथक १० में हमने इसे देखा था। वास्तव में कम-से-कम पुलिस आयुक्त या मुख्य सचिव (जो उस दिन छुट्टी पर विदेश में थे) को तो कोई कॉल नहीं किए गए थे। लेकिन तथ्यात्मक त्रुटियों से भरे इस लेख में भी रॉय भी यह दावा नहीं करतीं कि जाफरी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को फोन किया था।

  

   दरअसल, कांग्रेस की सहयोगी जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जे.यू.एच.) ने अगस्त २००३ में आरोप लगाया था कि जाफरी ने वास्तव में सोनिया गांधी को मदद के लिए कॉल किया था! ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने ९ अगस्त २००३ को “गुजरात दंगों से जुड़े कार्यकर्ताओं पर कांग्रेस चुप” इस शीर्षक के रिपोर्ट में लिखा था कि जे.यू.एच. सचिव एन. ए. फारुकी कहते हैं: “कांग्रेस ने दंगों के दौरान गलती करने का पाप किया है। पूर्व सांसद एहसान जाफरी ने मदद के लिए सोनिया गांधी को कॉल किया था। उन्होंने बाद के उनके गुजरात दौरे में कडा रुख नहीं अपनाया। स्थानीय निकायों का नेतृत्व ज़्यादातर कांग्रेस के हाथों में था जो राहत और पुनर्वास के लिए बहुत कुछ कर सकती थी, लेकिन यह सब कार्य एन.जी.ओ. पर छोड़ दिया गया।” अगस्त २००३ इतने समय तक, जाफरी ने मोदी को फोन करने का कोई दावा नहीं किया गया हैं, वास्तव में जे.यू.एच. ने दावा किया कि जाफरी ने सोनिया गांधी को फोन किया था!

  

   और फिर भी कुछ ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ओंने एक गवाह इम्तियाज़ पठान को पढ़ाया, सिखाया लगता है यह झूठा दावा करने के लिए कि मोदी ने फोन पर जाफरी को गाली गलौच की और जाफरी ने मरने से पहले यह बात उसे (पठान को) बताई। इम्तियाज़ पठान ने एक अदालत में ५ नवम्बर २००९ को यह दावा किया था, उसी दिन ऑनलाइन ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ने इसे रिपोर्ट किया था। उसने यह भी झूठा दावा किया था कि इस घटना में महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। इम्तियाज़ पठान का दावा पढ़ने के लिए इन लिंकों को ओपन करें।

 https://timesofindia.indiatimes.com/india/Modi-abused-Jafri-when-he-called-for-help/articleshow/5198196.cms या https://web.archive.org/web/20151023054226/http://epaper.timesofindia.com/Repository/getFiles.asp?Style=OliveXLib:LowLevelEntityToPrint_MIRRORNEW&Type=text/html&Locale=english-skin-custom&Path=AMIR/2009/11/05&ID=Ar00201 

   तत्कालीन पुलिस कमिश्नर श्री पी.सी.पांडे को २८ फरवरी २००२ को ३०२ फोन कॉल आए थे या उन्होंने किए थे, लेकिन श्री जाफ़री द्वारा कोई भी कॉल उन्हें नहीं किया गया था, ऐसा एस. आई .टी. ने श्री पांडे के कॉल-रिकॉर्ड की जाँच करके कहा (एस.आई.टी. अंतिम रिपोर्ट, पृष्ठ २०३-२०४), जिससे अरुंधती रॉय और इम्तियाज़ पठान के झूठ पकडे जाते हैं।

    एहसान जाफरीने मोदी को फोन करने और मोदीने फोन पर उन्हें गाली देने का यह पूरा आरोप हास्यास्पद है। तर्क के लिए समझते है कि जाफरी ने मोदी को फोन किया था और मोदी उनकी मदद नहीं करना चाहते थे। क्या मोदी ने उन्हें फोन पर गाली दी होगी? मोदीने कहा होता “हम जल्द से जल्द मदद भेजेंगे” और ऐसी स्थिति में मदद नहीं भेजते अगर वे नहीं चाहते तो। क्या जाफरी को फोन पर गाली देने के लिए मोदी मूर्ख हैं जब उन्हें पता है कि फोन पर की जाने वाली कोई भी बातचीत रिकार्ड की जा सकती है? इस तरह के हास्यास्पद आरोप की कोई विश्वसनीयता नहीं है। 

    

   २००२ में दंगों के तुरंत बाद पुलिस के सामने दी हुई अपनी तत्काल गवाही में, और २००२ के बाद कई वर्षो तक, पठान ने न तो मोदी का नाम लिया और न ही यह आरोप लगाया (जाफरी ने मोदी को फोन करने का और मोदीने उन्हें फोन पर गाली देने का)। पठान ने यह आरोप पहली बार घटना के सालों बाद २००९ में लगाया। अगर यह सच होता तो वह २००२ में ही ऐसा आरोप लगाता, न कि २००९ में ‘आफ्टर-थॉट’ (‘after-thought’, बाद में सोच) के तौर पर।

   

  एस.आई.टी. ने अपनी रिपोर्ट में पृष्ठ २०४ पर कहा है कि जाफरी के आवास का लैंडलाइन फोन पूरे कॉम्प्लेक्स में का एकमात्र फोन था और जाफरी के पास मोबाइल नहीं था। अगर जाफरी ने मोदी को फोन किया होता तो वे यह बात अपनी विधवा ज़ाकिया या अन्य लोगों को बताते, न की इम्तियाज़ पठान को, जिसने २००२ के बाद ७-८ साल तक यह आरोप नहीं किया।

   

   इम्तियाज़ पठान ने इन बातों का भी गलत दावा किया है:

१- एहसान जाफरी ने खुद को भीड़ के हवाले कर दिया, और भीड़ से कहा “मुझे ले लो लेकिन महिलाओं और बच्चों को छोड़ दो”।

२- पुलिस कमिश्नर पी.सी.पांडे २८ फरवरी को सुबह १० बजे जाफरी के घर आए थे। (उपर्युक्त सभी दावे तथ्यों के आधार पर गलत हैं।)

 

   एहसान जाफरी की विधवा ज़ाकिया जाफरी ने ६ मार्च २००२ को सी.आर.पी.सी. की धारा १६१ के अंतर्गत दर्ज हुए बयान में पुलिस को खुद कहा कि पुलिस ने उन्हें और दर्जनों निवासियों को बचा लिया अन्यथा वे सभी भीड़ द्वारा मारे गए होते। एस.आई.टी. की रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख है, जिसे हम बाद में एक अन्य अध्याय में देखेंगे।

  1. एहसान जाफरी ने आत्मरक्षा में भीड़ पर गोलियां चलाई। उन्होंने ऐसा करना चाहिए था या नहीं यह बहस का विषय है, लेकिन उनके इस कृत्य ने भीड़ को पागल कर दिया और भीड़ ने उन्हें मारने का संकल्प कर डाला, और इसके लिए भीड़ अपने में से कुछ जाने गवाने के लिए तैयार थी। इम्तियाज़ पठान कहतें हैं: “जाफरी ने भीड़ से महिलाओं और बच्चों को बख्श देने की अपील की और कहा मुझे ले जाओ, मुझे मार दो, लेकिन इन निर्दोष लोगों को छोड़ दो और खुद को भीड़ के हवाले कर दिया”। यह दावा अविश्वसनीय है क्योंकि यह स्थापित तथ्य है कि जाफरी ने आत्मरक्षा में भीड़ पर अपनी रिवॉल्वर से गोलियां चलाई। एस.आई.टी. ने भी अपनी रिपोर्ट में पृष्ठ १ पर कहा है कि जाफरी ने वास्तव में भीड़ पर गोलियां चलाई, जिसमें १ की मौत हो गई और १५ घायल हो गए।
  2. पठान ने यह भी दावा किया कि अहमदाबाद के तत्कालीन पुलिस आयुक्त पी.सी.पांडे सुबह जाफरी के घर आए थे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एस.आई.टी. ने पी.सी. पांडे से बात करके और सभी सबूतों की जांच (पी.सी. पांडे के कॉल रिकार्ड समेत) करने के बाद इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि उनके बजाय कांग्रेस के महामंत्री अंबालाल नादिया थे जो सुबह १०:०० बजे गुलबर्ग सोसाइटी में जाफरी से मिलने आए थे और १०:३० बजे वापिस गए। एस.आई.टी. ने अपनी रिपोर्ट में पृष्ठ २०१ पर कहा है: “यह निर्णायक रूप से स्थापित है कि पी.सी. पांडे ने २८ फरवरी की पूर्वान्ह में गुलबर्ग सोसायटी का दौरा नहीं किया था”। 

   इससे पठान के झूठों का पर्दाफाश होता है। ध्यान देने वाली बात है कि वर्ष २००२ से २०१२ तक लगभग १० वर्षों तक मीडिया में एक मिथक था कि पी.सी. पांडे २८ फरवरी २००२ को पूर्वान्ह में जाफरी के घर उस पर हमला होने से पहले आए थे। वर्ष २०१२ में एस.आई.टी. की रिपोर्ट के साथ सच्चाई सामने आई कि पी.सी.पांडे जाफरी के घर नहीं गए थे। लेकिन वर्ष २००९ में न तो इम्तियाज़ पठान और न ही उनके ज़ाहिर पढ़ाने वाले शिक्षकों को यह पता था, और उन्होंने सोचा कि यह खुद पांडे थे जिन्होंने उस जगह का दौरा किया था [यहां तक कि इस लेखक ने भी उन दिनों में २०१० में एक बार इस झूठ पर विश्वास किया था]। इसीलिए पठान के शिक्षकोंने उसे यह दावा करने के लिए पढ़ाया कि पांडे ने उस जगह का दौरा किया था। इससे साफ पता चलता है कि इम्तियाज़ पठान को जाफरीने मोदी को फोन करने का झूठा दावा करने के लिए पढ़ाया गया था। अगर पठान सच्चे गवाह होते, तो वो ईमानदारी से कहते कि २८ फरवरी २००२ को पूर्वान्ह में उन्होंने पी.सी. पांडे को जाफरी के घर पर नहीं देखा था।

 

   एस.आई.टी. ने अपनी रिपोर्ट के पृष्ठ २६१-२६२ पर कहा है कि जाफरी द्वारा मोदी को कॉल किए जाने का कोई रिकार्ड उन्हें नहीं मिला। कॉल रिकार्ड उपलब्ध करने का काम करने की ज़िम्मेदारी होने वाला व्यक्ति मोदी का कट्टर विरोधी अधिकारी था और तीस्ता-एन.जी.ओ-मीडिया ब्रिगेड का पसंदीदा (और उनकी शिकायत में उनका गवाह) राहुल शर्मा था। कोई रास्ता नहीं है कि वह इस तरह के रिकार्ड से चूक जाते, अगर यह सच होता। राहुल शर्मा द्वारा जाफरी के कॉल विवरण उपलब्ध नहीं करने का कारण संभवतः यह हो सकता है कि उनमें सोनिया गांधी को किया गया कॉल हो और नरेंद्र मोदी को कोई कॉल न दर्शाया गया हो।

 

   अगर ऐसी किसी कॉल का रिकार्ड होता भी, तो भी किसी तीसरे व्यक्ति के बयान (पठान, जिसने कई झूठे दावे किए, जैसे जाफरी मामले में बलात्कार हुए, पी.सी.पांडे ने जाफरी के घर का दौरा किया, आदि) पर कैसे विश्वास किया जा सकता हैं, जो कथित टेलीफोन कॉल के दोनों में से किसी भी ओर नहीं था?

 

   जिन लोगों ने उन्हें सन २००२ के कई वर्षों बाद यह हास्यास्पद आरोप लगाने के लिए पढ़ाया, उन पर भी मुकदमा चलाया जाना चाहिए। जून २०१६ में इस मामले पर ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद इम्तियाज़ पठान के भाई फिरोज खान पठान ने तीस्ता सीतलवाड़ और अन्य गैर सरकारी संगठनों के विरुद्ध गुस्सा प्रकट किया, जिन्होंने अपने ‘व्यक्तिगत लाभ के लिए उनका इस्तेमाल किया’, जैसा कि ३ जून २०१६ को ‘अहमदाबाद मिरर’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था।

https://ahmedabadmirror.indiatimes.com/ahmedabad/others/helpless-then-helpless-now/articleshow/52561384.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst 

  यह इस बात की ओर इंगित करता है उसे किसने पढ़ाया होगा। और साथ ही ‘आउटलुक’, एन.डी.टी.वी. और राणा अयुब जैसों पर भी मुकदमा चलाया जाना चाहिए जिन्होंने ऐसे हास्यास्पद आरोपों को विश्वसनीयता देने का प्रयास किया या वहीं आरोप लगाए।

 यहाँ कुछ और सवाल खड़े होते हैं। श्री जाफ़री ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए ५०० कांग्रेस  कार्यकर्ताओं को भेजने के लिए किसी कांग्रेस नेता को फोन क्यों नहीं किया? इस संबंध में ख़बरें हैं कि श्री जाफ़री ने यह भी किया। कांग्रेस पार्टी ने अपने भूतपूर्व सांसद को बचाने के लिए कुछ क्यों नहीं किया? एस.आई.टी. ने कांग्रेस नेता मेघसिंह चौधरी को इस मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण आरोपी के रूप में गिरफ़्तार किया था। यह गिरफ़्तारी गुजरात पुलिस ने नहीं की थी। 

 झूठ और मनगढ़ंत कहानियों की यह कथा कभी ख़त्म न होने वाली है। लेकिन अब हमें यहाँ रुकना होगा।



मनगढ़ंत कथा

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