chapter-9

अध्याय ११ ‘तहलका’ का झूठ

२००२ के गुजरात दंगों पर ‘तहलका’ ने २००७ में एक ‘स्टिंग’ ऑपरेशन का प्रसारण करने के बाद कई बार यह सवाल किया जाता है कि क्या यह ‘स्टिंग ऑपरेशन’ सच्चाई जानने का एक प्रामाणिक प्रयास था, या नरेंद्र मोदी और गुजरात सरकार को जबरन सूली पर लटकाने का प्रयत्न था? उस ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के कारण निर्दोष मुस्लिमों, देश और विदेश दोनों में, और अन्य सज्जन, सकारात्मक सोच वाले मासूम लोगों में भारी आक्रोश भड़क उठा था। २५ अक्तूबर २००७ को ‘रेडिफ़ डॉट कॉम’ की वेबसाइट ने दी रिपोर्ट थी: “गुजरात दंगे एक नरसंहार, मोदी की उसको अनुमति थी: तहलका ओंकार सिंह, नई दिल्ली खोजी पत्रकारिता साप्ताहिक ‘तहलका’ ने गुरुवार (२५ अक्तूबर २००७) को दावा किया कि उसने गुजरात दंगों की सच्चाई को उजागर कर दिया है। ‘तहलका’ ने दावा किया कि उसके पास इस बात का ‘अकाट्य सबूत’ (‘irrefutable evidence’) है कि गोधरा रेलवे अग्निकांड के बाद हुई मुस्लिमों की हत्याएँ ‘क्रोध की उत्स्फूर्त प्रतिक्रिया’ नहीं थी, बल्कि संघ परिवार और सरकार में बैठे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने किया सोचा समझा ‘नियोजित नरसंहार’ था, और इसे नरेंद्र मोदी की ‘मंजूरी’ प्राप्त थी। नई दिल्ली में एक पत्रकार परिषद में ‘तहलका’ के मुख्य संपादक श्री तरुण तेजपाल ने दावा किया कि इस साप्ताहिक ने पिछले छह माह तक स्टिंग ऑपरेशन किया है, और सच्चाई उगलवाने के लिए संघ परिवार के अनेक नेताओं से उन्होंने बात की है। इन नेताओं में भाजपा के गोधरा के विधायक श्री हरेश भट, शिवसेना नेता बाबू बजरंगी (पहले ये विहिंप में थे), विहिंप नेता श्री अनिल पटेल, और श्री धवल जयंती पटेल शामिल थे। संपादक (जांच) हरिंदर बावेजा ने ‘रेडिफ़ डॉट कॉम’ को बताया कि ‘हमारे पास इस बात का सबूत है कि विहिंप के कार्यालय परिसर में बम बनाए जा रहे थे’। बवेजा ने कहा ‘तहलका कि इस ज़मीन हिला देने वाली खोज में पहली बार, जिन्होंने यह नरसंहार किया उन्हीं की जुबान से सच्चाई सुनिए। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं आकर अपराधियों की पीठ थपथपाई और “अच्छा कार्य किया” कहते हुए उनकी सराहना की, ऐसी हैरान करने वाली जानकारी है’। पत्रिका की इस रिपोर्ट पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तीव्र प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तहलका सी.ए.आई. (कांग्रेस इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी) के रूप में कार्य कर रहा है। यह आपसी सहमति से किया गया स्टिंग है और इसे खोजी पत्रकारिता तो बिलकुल ही नहीं कहा जा सकता। पार्टी के प्रवक्ता श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि गुजरात विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कांग्रेस पार्टी के ‘गंदी चालाकी वाले विभाग’ (‘dirty tricks department’) ने फिर से अपना कामकाज शुरू कर दिया है। इस स्टिंग ऑपरेशन में कैमरे की ज़द में आया हुआ कोई भी नेता बात करने के लिए उपलब्ध नहीं था; केवल गुजरात विहिंप के नेता श्री धवल जयंती पटेल ने बताया कि इन दंगों के समय उन्होंने बाबू बजरंगी से कोई बात नहीं की और न ही उन्होंने यह स्टिंग ऑपरेशन देखा है।… …उन्होंने (तहलका ने) यह दावा भी किया कि वास्तव में गोधरा में २७ फरवरी २००२ को साबरमती एक्स्प्रेस की एस-६ बोगी में लगाई गई आग ‘भीड़ के उत्स्फूर्त आक्रोश’ के कारण लगाई गई थी, और गुजरात सरकार के कहे अनुसार यह ‘पूर्व नियोजित षड्यंत्र’ नहीं था; और यह षड्यंत्र है इसे साबित करने के लिए रची गईं ‘झूठी कहानियों’ को तहलका ने ‘बेनकाब’ करने का दावा किया।” (संदर्भ: https://www.rediff.com/news/2007/oct/25godhra.htm) तहलका के ४४वें अंक के चौथे भाग में दिनांक १७ नवंबर २००७ को तहलका के संपादक श्री तरुण तेजपाल ने लिखा: “…इस बार—गुजरात के २००२ के हत्याकांड की हमारी खोज में—लगता है षड्यंत्र का पता लगाने वालों ने तो नई ऊचाइयाँ प्राप्त कर ली। भाजपा ने हम पर आरोप लगाया कि हम कांग्रेस के लिए काम कर रहें हैं, जबकि कांग्रेस ने इस बात का प्रसार किया हम भाजपा के लिए काम कर रहे हैं! इससे तो स्पष्ट है कि हम जो कुछ कर रहे हैं वह सही था। इन सब आरोप-प्रत्यारोप के बीच ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’ की लड़ाई अब श्री लालू यादव, मायावती, और वामपंथियों को सौंप दी गई।… गुजरात हत्याकांड के रहस्योद्घाटन (तहलका स्टिंग ऑपरेशन के प्रसारण) के बाद एक हफ़्ते का समय बीत जाने के बाद भी [तत्कालीन] प्रधानमंत्री (डॉ. मनमोहन सिंह) और [तत्कालीन] गृहमंत्री (श्री शिवराज पाटिल) ने इस संबंध में एक वाक्य भी व्यक्त नहीं किया। पत्रकारिता के इतिहास में पहली बार हत्या करने वालों ने कैमरे के सामने आकर बताया था कि उन्होंने कैसे मारा, क्यों मारा, और किसकी अनुमति से मारा। और ये हत्यारे कोई क्षुद्र अपराधी भी नहीं थे। वे एक मतांध, विशिष्ट विचारधारा से ग्रस्त, इस उपमहाद्वीप की दुखती रगों से खेलने वाले, ख़तरनाक ढंग से आपस में फूट डालने के लिए ज़िम्मेदार होने के कारण देश को तहस-नहस करने की क्षमता वाली विचारधारा के साथ थे। (नोट करें: श्री तरुण तेजपाल अच्छी तरह से जानते हैं कि तथाकथित ‘अपराधी’ संभवतः डींग मार रहे हों, खाली-पीली गप्पें मारने वाली बाते कर रहें हों, इस बात को न जानते हुए कि गोपनीय तरीक़े से रिकॉर्डिंग हो रही है। उन्होंने जो कुछ कहा, उसमें से उन लोगों ने वास्तव में कुछ भी नहीं किया होगा, इसकी पूरी-पूरी संभावना है। लेकिन तरुण तेजपाल अनावश्यक रूप से इसमें मिर्च-मसाला भर रहे हैं। और अगर तेजपाल को यह नहीं सूझता कि ये लोग खोखली डींग मारकर झूठ बोल सकते हैं, तो तेजपाल पत्रकार होने के योग्य नहीं हैं।) … …इस तरह के अजीबोग़रीब गणित से निर्घ्रूण हत्या और बलात्कार में मोदी का हाथ दिखाने का मतलब है कि गुजराती हिंदुओं को समझाने का प्रयास करना कि उन लोगों को इसी तरह का नेतृत्व चाहिए था! (हमारी टिप्पणी: अब वे कह रहे हैं कि बलात्कार के मामलों में मोदी का सहभाग था। यह तो अत्यंत घटिया बयान है; कुछ आरोपियों ने छुपे हुए कैमरे के सामने झूठ बताया कि मोदी ने दंगाइयों की पीठ थपथपाई, लेकिन बलात्कार के बारे में तो किसी ने झूठ तक नहीं बोला!) यह बात उनके दिमाग़ में कभी नहीं आई कि हिंसा के सबूतों का उपयोग करके वे लोग हिंसा के ख़िलाफ़ बड़ा प्रचार अभियान चला सकते हैं। वास्तविक स्थिति तो यह है कि इस समय कांग्रेस पार्टी कुछ ऐसे अत्यंत क्षुद्र रणनीतिकारों के ज़रिए चलाई जाती है, जिन्हें यह पता ही नहीं कि क्या सही है और क्या गलत।…” श्री तरुण तेजपाल के इस बयान से यह सोचने की मूर्खता कोई भी न करे कि तहलका के स्टिंग ऑपरेशन के पीछे कांग्रेस पार्टी नहीं थी। स्टिंग ऑपरेशन के पीछे कांग्रेस के होने की संभावना है। लेकिन हो सकता है कि कांग्रेस का उससे किसी प्रकार का संबंध न भी हो। लेकिन यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण नहीं है क्योंकि स्टिंग ऑपरेशन का फ़ैसला उसकी गुणवत्ता पर किया जाना चाहिए। यदि कांग्रेस ने स्टिंग ऑपरेशन को प्रायोजित किया हो तो भी वह इस कारण अपने आप झूठा नहीं हो जाता; और यदि इससे कांग्रेस का किसी प्रकार का संबंध न भी हो तो वह सच नहीं बन जाता। अपने इसी लेख में श्री तरुण तेजपाल ने तत्कालीन एन.डी.ए. सरकार (१९९८–२००४) ने ‘तहलका’ के ख़िलाफ़ की क़ानूनी कार्यवाही के लिए दुःख व्यक्त किया था। यदि वे इस अध्याय को एक बार सही ढंग से पढ़ेंगे तो भाजपा या नरेंद्र मोदी, या कैमरे के सामने बात करने वाले किसी आरोपी ने उनपर और तहलका पर मुक़दमा दायर कर करोड़ों रूपयों का मुआवज़ा नहीं माँगा, इसके लिए वे अपने आप को भाग्यशाली समझेंगे। अब हम कैमरे के सामने लोगों ने दी तथाकथित स्वीकारोक्ति पर गौर करेंगे। सबसे पहले यह स्टिंग ऑपरेशन किस संदर्भ में किया गया इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। तहलका के संवाददाता श्री आशीष खेतान अपने छुपे कैमरे के साथ लोगों से मिले और ‘विहिंप के दृष्टिकोण से एक पुस्तक लिखने के इच्छुक एक लेखक’ के रूप में लोगों के समक्ष स्वयं को पेश किया। बातचीत रिकॉर्ड हो रहीं हैं, इस बात को लोगों को न बताते हुए उन्होंने अत्यंत सहजतापूर्वक लोगों से बातचीत की, बातों को निजी रखने के आश्वासन पर। इस पृष्ठभूमि से हमें समझने में मदद होगी कि ये तथाकथित स्वीकारोक्तियाँ वास्तव में केवल बड़ी-बड़ी डींगें हाँकने वाले झूठ थे। कई लोगों ने इस स्टिंग ऑपरेशन की नैतिकता पर सवाल उठाए हैं। वास्तव में जिन लोगों को कैमरे में रिकॉर्ड किया गया है वे निजी गोपनीयता को भंग करने के लिए ‘तहलका’ पर मुक़दमा दायर कर सकते हैं, क्योंकि जो बातचीत निजी समझ कर की गई थी उसे धोखे से सार्वजनिक किया गया। तथाकथित स्वीकारोक्तियों को विस्तार से देखते हैं। दंगों के एक आरोपी श्री बाबू बजरंगी ने नरेंद्र मोदी के बारे में कहा– “१० अगस्त २००७ तहलका– पाटिया की घटना वाले दिन (२८ फरवरी २००२) क्या मोदी ने आपको समर्थन नहीं दिया? बजरंगी– उन्होंने सब कुछ ठीक किया, अन्यथा किस के पास इतनी ताक़त थी? पूरी तरह उनका हाथ था। उन्होंने पुलिस को यदि अलग तरीक़े से बर्ताव करने के लिए कहा होता तो… तो वे हमें ख़त्म कर सकते थे… वे कर सकते थे… स्थिति पूरी तरह उनके नियंत्रण में थी… तहलका– क्या उनका नियंत्रण था? बजरंगी– पूरे शहर पर उनका संपूर्ण नियंत्रण था… पूरे गुजरात पर… (लेकिन) दो दिनों के लिए, श्री नरेंद्र भाई का नियंत्रण था… तीसरे दिन से… ऊपर से दबाव आना शुरू हो गया था…सोनिया-वोनिया और अन्य लोग यहाँ आ गए थे… … तहलका– क्या नरेंद्र भाई आपसे मिलने (जेल में) नहीं आए? बजरंगी– नरेंद्र भाई मुझ से मिलने आते, तो वे मुश्किल में पड़ सकते थे। उन्हें आना चाहिए ऐसी मेरी अपेक्षा भी नहीं थी, यहाँ तक कि आज भी मैं इसकी अपेक्षा नहीं रखता। तहलका– क्या कभी उन्होंने फोन पर बात की है? बजरंगी– उस तरह से तो उनसे मैंने बात की है… लेकिन आप जैसा कह रहे हैं वैसा नहीं है। सारी दुनिया एक सुर में गाने लगती है… तहलका– लेकिन आप जब गायब हो गए थे… तब वे… बजरंगी– हूँ……. मैंने दो या तीन बार उनसे बात की। तहलका– उन्होंने आपको प्रोत्साहित किया… बजरंगी– मर्द आदमी हैं नरेंद्र भाई… असली पुरुष हैं। यदि मुझसे कहते कि ख़ुद को बम से बाँध लो और कूद जाओ तो… मुझे एक सेकेंड भी नहीं लगता… मैं ख़ुद के शरीर से बम बाँध लेता और जहाँ मुझे कहते कूद जाता…. हिंदुओं के लिए… (हमारी प्रतिक्रिया- डींग मारकर झूठ बोलना!) तहलका– अगर वे न होते तो नरोड़ा पाटिया, गुलबर्ग (एहसान जाफ़री मामला, चमनपुरा), और अन्य… बजरंगी– यह घटनाएँ नहीं होती। यह काफ़ी मुश्किल होता……. १ सितंबर २००७ तहलका– क्या नरेंद्र भाई हत्याकांड के दिन पाटिया आए थे? बजरंगी– नरेंद्र भाई पाटिया आए थे। लेकिन घटनास्थल पर नहीं आ सके। क्योंकि उनके साथ में कमांडो-फमांडो थे! वे पाटिया आए, हमारा उत्साह देखा और चले गए। अपने पीछे एक सही माहौल बना गए। तहलका– उन्होंने कहा कि आप सभी लोगों को आशीर्वाद मिला हुआ है…… बजरंगी– नरेंद्र भाई यह देखने के लिए आए थे कि दूसरे दिन कुछ भी रुकेगा नहीं। उन्होंने पूरे अहमदाबाद का दौरा किया, सभी जगहों पर गए जहाँ मियाँ (मुस्लिम) थे, हिंदू थे… लोगों से कहा कि अपने अच्छा काम किया है, और भी किया जाना चाहिए। (हमारी प्रतिक्रिया– क्या इस पर विश्वास करना संभव है?) बजरंगी– (हत्याकांड के बाद) आयुक्त ने (मेरे ख़िलाफ़) आदेश जारी किए। मुझे मेरा मकान छोड़ने के लिए कहा गया। मैं भाग गया…नरेंद्र भाई ने मुझे रखा….. साढ़े-चार महीने के लिए माउंट आबू के गुजरात भवन में। उसके बाद नरेंद्र भाई ने जो बताया वह सब (मैंने किया)…. नरेंद्र भाई ने गुजरात में जो किया, उसे दूसरा कोई नहीं कर सकता… यदि मुझे नरेंद्र भाई का समर्थन नहीं होता, तो हमारे लिए (गोधरा का) प्रतिशोध लेना संभव नहीं था…… (सब कुछ ख़त्म होने के बाद) नरेंद्र भाई ख़ुश हो गए, लोग ख़ुश हो गए, हम भी ख़ुश हो गए…. मैं जेल गया और वापस आया….. और मैंने अपनी पहले की ज़िंदगी शुरू कर दी। बजरंगी– नरेंद्र भाई ने मुझे जेल से बाहर निकाला। वे लगातार न्यायाधीशों को बदलते रहे। मेरे जेल से छूटने के लिए उन्होंने सब कुछ किया, अन्यथा मैं अब भी बाहर नहीं आ सकता था। पहले न्यायाधीश श्री ढोलकिया थे, उन्होंने कहा ‘बजरंगी को फाँसी पर लटका देना चाहिये’, केवल एक बार ही नहीं ४–५ बार… उन्होंने मेरी फ़ाइल एक तरफ़ फेंक दी। इसके बाद दूसरे आए, वो केवल यह कहने से रुके की मुझे फाँसी पर चढ़ाना चाहिए। इसके बाद तीसरे आए। तब तक जेल में रहते हुए मुझे साढ़े-चार महीने हो चुके थे। बाद में मुझे नरेंद्र भाई ने संदेश भेजा कि वे कुछ रास्ता ज़रूर निकालेंगे। बाद में उन्होंने श्री अक्षय मेहता नामक न्यायाधीश की नियुक्ति की, उन्होंने मेरी फ़ाइल को देखा तक नहीं और केवल इतना कहा कि (जमानत) मंज़ूर, और हम सब लोग बाहर आ गए। इसके लिए मुझे ईश्वर पर भरोसा है। हिंदुत्व के लिए हम मरने को भी तैयार हैं।…” (हमारी प्रतिक्रिया– जिसे क़ानून की थोड़ी सी भी जानकारी है, उसे पता होगा कि एक मुख्यमंत्री न्यायाधीश को नहीं बदल सकते!) (संदर्भ: http://www.tehelka.com/story_main35.asp?filename=Ne031107To_Get.asp) उनका बयान “दो दिन तक वे नियंत्रण में थे” सरासर गलत है, डींगे हाँकने वाला झूठ हैं। हम देख चुके हैं कि ‘द हिंदू’ ने लिखा था: “२८ फरवरी को केवल एक समुदाय मार खा रहा था। लेकिन १ मार्च को अल्पसंख्यक समुदाय ने जवाबी हमले करने के कारण स्थिति और बिगड़ गई।” इससे स्पष्ट है कि दंगों के दूसरे दिन मुस्लिम आक्रामक थे, और हिंदू बिलकुल ही ‘पूरे नियंत्रण’ में नहीं थे। श्री बजरंगी का यह बयान कि पुलिस ने कुछ भी नहीं किया, एक और झूठ है। २८ फरवरी को पुलिस गोलीबारी में अहमदाबाद में १७ लोग मारे गए, पुलिस ने १४९६ राउंड फ़ायरिंग की, इनमें से कम-से-कम ६०० राउंड केवल अहमदाबाद में फ़ायर किए गए और पूरे राज्य में आँसू गैस के ४२९७ गोले फोड़े गए; पुलिस ने उस दिन ७०० लोगों को गिरफ़्तार भी किया। बाबू बजरंगी ने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी ने हत्याकांड के दिन अर्थात् २८ फरवरी २००२ को नरोड़ा पटिया का दौरा किया था। ‘इंडिया टुडे’ ने अपने १२ नवंबर २००७ के अंक में लिखा: “लेकिन, स्टिंग में जिन व्यक्तियों के इंटरव्यू लिए गए हैं, उनके बयानों में त्रुटियाँ होने के कारण इस स्टिंग का परिणाम कुछ हद तक कम हो गया है। कैमरे के सामने बात करने वाले १४ में से दो लोगों ने बताया कि अहमदाबाद के नरोड़ा पाटिया क्षेत्र में हुए (२८ फरवरी के) हत्याकांड (जिसमें एक हिंदू समुदाय द्वारा ८९ मुस्लिमों की हत्या की गई थी) के बाद दूसरे दिन धन्यवाद देने के लिए नरेंद्र मोदी वहाँ आए थे। लेकिन इस मामले के मुख्य आरोपी श्री बाबू बजरंगी और सुरेश रिचर्ड के बयान डींगें हाँकने वाले झूठ लगते है, क्योंकि आधिकारिक रिकॉर्ड दिखाते हैं कि मोदी उस दिन नरोड़ा पाटिया नहीं गए थे।” वस्तुतः, मोदी ने न तो २८ फरवरी को और न १ मार्च को नरोड़ा पाटिया का दौरा किया। हिंदुत्व के दृष्टिकोण से पुस्तक लिखने वाले व्यक्ति के साथ हम निजी तौर पर बात कर रहे हैं, यह सोचकर उन लोगों ने केवल डींगे हाँककर झूठ बोला या सत्य बताया, इसकी छानबीन, एक मुख्यमंत्री पर, और इन लोगों पर इतने गंभीर आरोप करने से पहले करना ‘तहलका’ की ज़िम्मेदारी थी। यहाँ ध्यान देना चाहिए कि बाबू बजरंगी ने जो दावा किया कि नरेंद्र मोदी ने उनकी मदद की थी; यह केवल तहलका के संवाददाता के सामने डींगे हाँक रहे थे कि उनकी (बजरंगी की) बिग बॉस से अर्थात् नरेंद्र मोदी से सीधी पहुँच हैं, और नरेंद्र मोदी से सीधे सहायता ले सकें इतने बड़े व्यक्ति वो (बजरंगी) थे। इससे अधिक इस मामले में कुछ भी नहीं है। ‘तहलका’ को भी यह अच्छे से पता हैं। वास्तव में, नरेंद्र मोदी ने एस.आई.टी. को मार्च २०१० में दिए जवाबों में से पता चलता हैं कि मोदी बाबू बजरंगी को बिलकुल ही नहीं जानते थे, और कई महीनों के बाद उन्होंने श्री बजरंगी का नाम मीडिया से सुना था। एस.आय.टी. के साथ मोदी के वो लीक हुए सवाल-जवाब यहाँ से डाऊनलोड किए जा सकते हैं https://www.mediafire.com/file/wrnz2vj8go65tls/Questions_and_Answers_of_Narendra_Modi_questi oning_by_SIT_in_March_2010.pdf/file । ‘तहलका’ को भी पता था कि वह झूठी डींगे हाँकेगा, और इसीलिए उसने उससे ऐसे सवाल किए। वास्तव में इन १४ आरोपियों में से किसी भी व्यक्ति के बयान का एक वाक्य भी भारत की किसी भी अदालत में सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं है। पुलिस के समक्ष कैमरे के सामने जान-बूझकर की गई स्वीकारोक्ति को भी सबूत नहीं माना जाता—केवल न्यायालय में न्यायाधीश के समक्ष दिए गए बयान को सबूत माना जाता है। इन जवाबों की त्रुटियों से हमने देखा है ये सब डींग हाँकने वाले झूठे जवाब हैं। अगर इनमें त्रुटियाँ नहीं भी होतीं, तो भी इन ‘क़बूलनामों’ का सबूत के रूप में कोई मूल्य नहीं है। यहाँ इस बात पर ध्यान दिया जाए कि तहलका का पत्रकार ऐसे सवाल कर रहा था जो उन्हें बोलने के लिए प्रेरित करते। तहलका के पत्रकार ने “क्या नरेंद्र मोदी नरोड़ा पाटिया नहीं आए थे”? जैसे सवाल किए और इसके जवाब में श्री बजरंगी और अन्य आरोपियों ने सिर्फ ‘हाँ’ उत्तर दिया और उसमें अपना मिर्च-मसाला भी मिला दिया। सवाल जानबूझकर ऐसे किए गए थे कि जिस विषय पर तहलका चाहे, उसपर लोग झूठ बोलें। न्यायाधीशों के संबंध में तो सारे बयान झूठे हैं। एक मुख्यमंत्री न्यायाधीश को नहीं बदल सकते। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एस.आई.टी. ने इस सबकी जाँच की है और ऐसे ही निष्कर्ष निकाले हैं। इसे हम अगले अध्याय में देखेंगे। अब विहिंप कार्यकर्ता श्री रमेश दवे के बयानों को देखते हैं: “१२ जून २००७ रमेश दवे– उस रात हम (विश्व हिंदू परिषद्) कार्यालय में गए थे, माहौल काफ़ी परेशान करने वाला था। हर एक को लग रहा था, हमने काफ़ी कुछ झेला है….. कई सालों तक…… नरेंद्रभाई ने हमें काफ़ी समर्थन दिया….. तहलका– वे जब गोधरा पहुँचे तब उनकी प्रतिक्रिया क्या थी? दवे- गोधरा में उन्होंने काफ़ी कड़ा बयान दिया। वे अत्यधिक गुस्से में थे। वे बचपन से संघ के साथ रहे हैं। उनका गुस्सा इस तरह का था……. उस समय तो बाहर नहीं निकला, लेकिन पुलिस प्रणाली पूरी तरह से प्रभावहीन हो गई थी……” (संदर्भ: तहलका की अधिकृत वेबसाइट) ये बयान कि ‘पुलिस प्रणाली पूरी तरह प्रभावहीन हो गई थी’, एक और झूठ है। पुलिस ने २८ फरवरी, १ और २ मार्च को क्या किया इसे हमने विस्तार से देखा है। अब हम गोधरा के भूतपूर्व भाजपा विधायक श्री हरेश भट ने क्या कहा, देखते हैं: “१ जून २००७ तहलका– गोधरा की घटना के बाद श्री नरेंद्र मोदी की क्या प्रतिक्रिया थी? भट- यह मैं आपको नहीं बता सकता….. लेकिन इतना बता सकता हूँ कि वह अनुकूल थी….. उस समय हमारे बीच आपसी तालमेल के कारण……. तहलका– मुझे कुछ तो बताइए……. उन्होंने? भट- मैं किसी प्रकार का बयान नहीं दे सकता। लेकिन उन्होंने जो किया, वह आज तक किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया। तहलका– मैं इसे कहीं भी किसी से नहीं कहूँगा…… और तो और आप जो कह रहें हैं उसका भी कहीं भी उल्लेख नहीं करूंगा। भट- उन्होंने हमें तीन दिनों का समय दिया था…… हमें जो करना है उसके लिए। उन्होंने कहा कि इसके बाद वे समय नहीं दे पाएँगे, यह बात उन्होंने खुलकर कही थी। तीन दिनों के बाद उन्होंने हमें रुकने के लिए कहा, और सबकुछ थम गया। तहलका- यह सब तीन दिनों में रुक गया। यहाँ तक कि सेना को भी बुला लिया गया था। भट- सभी (सैन्य व पुलिस) बल आ चुके थे… हमारे पास तीन दिन थे… और उन तीन दिनों में हमें जो करना था, हमने किया। तहलका– उन्होंने ऐसा कहा? भट- हाँ; इसीलिए तो मैं कह रहा हूँ कि उन्होंने जो किया वह अन्य कोई मुख्यमंत्री नहीं कर सकते थे। तहलका- उन्होंने आपसे बात की? भट- मैंने आपको बताया, मैं उस बैठक में उपस्थित था। भट- उन्हें सरकार चलानी थी… अब वे परेशानियों का सामना कर रहे हैं… कई मुक़दमे फिर से खोल दिए गए हैं… लोग उनके ख़िलाफ़ विद्रोह कर रहे हैं। तहलका- भाजपा के लोग उनके ख़िलाफ़ विद्रोह कर रहे हैं। भट- भाजपा के लोग… उन्होंने जो कुछ किया उसके कारण उनकी छवि उनके प्राणों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है, और दूसरे राजनेता इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं….” (सौजन्य: तहलका कि अधिकृत वेबसाइट) अब फिर से उनका बयान देखिए “उन्होंने हमें तीन दिनों का समय दिया था”। यह बयान पूरी तरह झूठा है; मार्च २००२ से मीडिया के कुछ लोग इसका प्रसार कर रहे हैं। इससे पहले भी हमने विस्तार से देखा है कि सेना ‘तत्काल’ पहुँच चुकी थी, तत्कालीन रक्षामंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडिस पहुँचे, पहले तीन दिनों में पुलिस ने ९८ दंगाइयों को मार गिराया, ५४५० राउंड फ़ायरिंग की, आँसू गैस के ६५०० गोले फोड़े। इसके अलावा श्री भट दावा करते हैं कि वे उस बैठक में उपस्थित थे। सच तो यह है कि २७ फरवरी को नरेंद्र मोदी की गोधरा में हरेश भट से मुलाक़ात हुई ही नहीं थी। ‘इंडिया टुडे’ ने १२ नवंबर २००७ के अंक में इस बात का उल्लेख किया है कि आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि उस दिन गोधरा में नरेंद्र मोदी भट से नहीं मिले थे। फिर से हरेश भट डींग हाँक रहे थे कि गोधरा में २७ फरवरी को नरेंद्र मोदी की बैठक में उपस्थित होने इतने महत्त्वपूर्ण व्यक्ति वो थे। अब दंगों के एक और आरोपी श्री सुरेश रिचर्ड के बयानों को देखते हैं: “१२ अगस्त २००७ सुरेश रिचर्ड– (हत्याकांड के दिन) शाम तक हमने जो चाहा वह किया……. शाम को लगभग ७:३० बजे …… ७:१५ बजे हमारे मोदी भाई आए; बिलकुल यहाँ पर, मकान के बाहर, मेरी बहनों ने गुलाब की माला पहनाकर उनका स्वागत किया।… तहलका– नरेंद्र भाई मोदी…… रिचर्ड- नरेंद्र मोदी। वे ब्लैक कमांडो के साथ थे….. उनकी एम्बेसेडर गाड़ी से वे उतरे और यहाँ तक चलकर आए। मेरी सभी बहनों ने उनका स्वागत किया……. बड़ा आदमी तो बड़ा ही होता है न…… तहलका- वे रास्ते पर उतरे थे? रिचर्ड- यहाँ, इस मकान के पास। बाद में वे उस ओर चले गए। नरोड़ा में हालात कैसे हैं यह देखा……. तहलका- पाटिया की घटना हुई, उसी दिन? रिचर्ड- हाँ, उसी शाम को। तहलका- २८ फरवरी……. रिचर्ड- २८ तहलका- २००२ रिचर्ड- उन्होंने चारों ओर चक्कर लगाया और बोले, ‘हमारी जाति को आशीर्वाद है, हमारी माताओं को भी आशीर्वाद है हमें जन्म देने के लिए’। तहलका- वे ५ बजे आए थे या ७ बजे? रिचर्ड- ७ से ७:३० के बीच; उस समय बिजली नहीं थी…… दंगों में सबकुछ जलकर भस्म हो चुका था…… तहलका- उस दिन के बाद, जब नरेंद्र भाई आपके घर आए थे; क्या नरोड़ा पाटिया के हत्याकांड के बाद वे फिर कभी यहाँ आए? रिचर्ड- कभी भी नहीं”। ( http://www.tehelka.com /story_main35.asp?filename=Ne031107We_Were.asp) एस.आई.टी. ने २७ मार्च २०१० को पूछे सवालों के लीक हुए जवाबों से समझता हैं कि नरेंद्र मोदी २८ फरवरी की शाम को अहमदाबाद के सर्किट हाउस में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस बात को समझने के लिए अल्प-सा व्यावहारिक ज्ञान पर्याप्त है कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने २८ फरवरी २००२ को शाम को ७-७:३० बजे नरोड़ा पाटिया का दौरा करना और दंगाइयों की पीठ थपथपाना सर्वथा असंभव है। यहाँ ध्यान दें कि लगभग छह सालों तक यह आरोप किसी ने नहीं किया—फरवरी २००२ से नवंबर २००७ तक—और नवंबर २००७ के बाद भी ‘तहलका’ समेत कोई भी इस पर विश्वास नहीं करेगा, लेकिन वह केवल आरोप करेगा। और ‘तहलका’ ने दावा किया कि उसके पास मोदी के सहभाग के ‘अकाट्य प्रमाण’ हैं! इसके विपरीत यह तथाकथित स्वीकारोक्तियाँ ही निरर्थक होने के और मोदी ने दंगों को अत्यंत कुशलतापूर्वक संभालने के ‘अकाट्य प्रमाण’ उपलब्ध हैं। ‘इंडिया टुडे’ ने अपने १२ नवंबर २००७ के अंक में लिखा था: “तहलका का स्टिंग ऑपरेशन प्रसारित होने के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा मोदी के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर करने की माँग की जा रही है। लेकिन जैसे गुजरात के प्रसिद्ध आपराधिक वकील (क्रिमिनल लॉयर) और कांग्रेस (मोदी की कट्टर विरोधी पार्टी) नेता श्री निरुपम नानावटी कहते हैं, ‘सह-अभियुक्तों की स्वीकारोक्ति को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की दृष्टि से सबूत के रूप में ग्राह्य नहीं माना जा सकता। अगर जाँचकर्ता इस अधिनियम की धारा १० के तहत नए सिरे से जाँच करता है, तो इस जाँच के माध्यम से प्राप्त नए सबूतों के आधार पर मोदी पर मुकदमा चलना संभव हो सकता है…’।” (संदर्भ: https://www.indiatoday.in/magazine/states/story/20071112-gujarat-the-noose-tightens- 734431-2007-11-01) ‘तहलका’ ने उनकी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित सभी बातचीतों के मूल पाठ को हम देख रहें हैं। यह हैं गुजरात सरकार के पूर्व अधिवक्ता श्री अरविंद पंड्या का साक्षात्कार: “६ जून २००७ श्री अरविंद पंड्या– (गोधरा के मुसलमानों को) लगा कि गुजराती आदमी स्वभाव से सौम्य होने के कारण वे इससे आसानी बचकर निकल जाएँगे। भूतकाल में उन्होंने गुजरातियों को मारा, यहाँ तक कि उन्होंने सारी दुनिया को मारा है, लेकिन किसी ने भी हिम्मत नहीं दिखाई। किसी ने उनका मुकाबला नहीं किया। हमेशा की तरह उन्होंने सोचा कि इस बार भी वे छूट जाएँगे। लेकिन इससे पहले ऐसा संभव हुआ था क्योंकि यहाँ कांग्रेस की सरकार थी। उनके वोट पाने के लिए कांग्रेस पार्टी गुजरातियों और हिंदुओं को दबा कर रखती थी। परंतु इस बार उन्होंने मार खाई। अब यहाँ हिंदुओं का राज है। पूरे गुजरात पर हिंदुओं का शासन है, और वह भी विहिंप और भाजपा का…… तहलका– उनका अनुमान ग़लत निकला। पंड्या- नहीं। क्या हुआ होता….. अगर कांग्रेस की सरकार होती, तो वे हिंदुओं को मुस्लिमों पर हमला नहीं करने देते। और वे अपनी प्रशासनिक ताक़त का इस्तेमाल केवल हिंदुओं को दबाने के लिए करते। वे कभी भी मुस्लिमों को हिंसाचार करने से नहीं रोकते। वे हिंदुओं से शांति बनाए रखने की अपील करते, लेकिन उन्हें (मुस्लिमों) हात लगाने के लिए वे कुछ भी नहीं करते। यहाँ तक कि इस मामले में (गोधरा) भी उन्होंने कुछ भी नहीं किया होता। लेकिन इस मामले में हिंदू जनाधार वाली सरकार थी और….. जनता तैयार थी, तथा राज्य सरकार भी। यह एक अच्छी मिलीभगत थी… तहलका– यह तो हिंदू समुदाय का सौभाग्य था… पूरे हिंदू समाज का। पंड्या- और बता दें कि शासनकर्ता भी स्वभाव से साहसी था, क्योंकि उन्होंने कहा ‘प्रतिशोध लो और मैं तैयार हूँ’। सबसे पहले तो कल्याण सिंह को सलाम करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सभी प्रकार की ज़िम्मेदारियों को स्वीकार किया… ‘मैंने यह किया, मैं सहभागी था’, यह कहते हुए। तहलका- बाद में उन्होंने पार्टी बदल दी तब। पंड्या- उन्होंने पार्टी बदल दी लेकिन वे उसके संस्थापक थे……. वे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मज़बूती से खड़े रहे और कहा: हाँ ‘मैं ही हूँ’। तहलका- पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। पंड्या- उनके बाद दूसरा हीरो आया….. नरेंद्र मोदी…… और उन्होंने पुलिस को मौखिक रूप से हिंदुओं का पक्ष लेने के निर्देश दिए। क्योंकि सम्पूर्ण राज्य हिंदुओं का था। ८ जून २००७ तहलका- मोदी जब २७ फरवरी को गोधरा दौरे पर आए तो विहिंप कार्यकर्ताओं ने उनपर हमला किया, क्या यह सच है? पंड्या- नहीं, उन्होंने हमला नहीं किया। हुआ यह कि वहाँ पर ५८ शव रखे हुए हैं और शाम हो चुकी है…… लोग तो यह यह सवाल पूछेंगे ही कि आपने क्या किया….. तहलका- सुबह ८ बजे से शाम तक वे वहाँ पर नहीं पहुँचे…. जब गुस्सा बढ़ा, तब श्री मोदी क्रोधित हो गए और उन्होंने… पंड्या- नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ। मोदी लंबे समय से हमारे संपर्क में हैं। इस मामले को भूल जाइए। वे एक बड़े पद पर थे और पद की अपनी सीमाएँ होती हैं… उनके लिए तो अनेक सीमाएँ थी… लेकिन उन्होंने सारे संकेत हिंदुओं के पक्ष में दिए; अगर शासनकर्ता मजबूत हो तो सब कुछ आसान हो जाता है… तहलका- २७ तारीख़ को मोदी के गोधरा लौटने पर क्या आप उनसे मिले थे? पंड्या- नहीं…. मैं इस विषय पर किसी सवाल का उत्तर नहीं दूँगा… और मुझे देना भी नहीं चाहिए। तहलका- सर, बताइए उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी। पंड्या- नरेंद्र मोदी ने पहली बार फोन पर सुना तो उनका ख़ून खौलने लगा। मुझे बताओ, मैं और क्या कह सकता हूँ….. मैंने आपको अप्रत्यक्ष रूप से कुछ संकेत दिए हैं, मैं इससे अधिक ख़ुलासा नहीं कर सकता….. और मुझे करना भी नहीं चाहिए….. तहलका- मैं जानना चाहता हूँ, उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी? पंड्या- नहीं। उनकी पहली प्रतिक्रिया यह थी कि अगर वे मंत्री नहीं होते तो उन्होंने बम विस्फोट किये होते। यदि वे सक्षम होते और मंत्री नहीं होते, तो जुहापुरा (अहमदाबाद का मुस्लिम बहुल क्षेत्र) में निश्चित रूप से उन्होंने कुछ बम फोड़े होते।” अब श्री पंड्या ने दिए दो महत्त्वपूर्ण बयानों को देखिए। पहला, ‘मोदी ने पुलिस को हिंदुओं के पक्ष में खड़े होने के मौखिक निर्देश दिए थे’ यह बिलकुल ग़लत है, क्योंकि हमने देखा है कि मात्र पहले तीन दिनों में ही ९८ लोग पुलिस गोलीबारी में मारे गए थे और इसमें अधिकांश हिंदू थे, और दंगों पर नियंत्रण के लिए और दंगे न होने की दृष्टि से उपाय भी किए गए, उन्हें हमने पहले देखा है। दूसरा बयान कि ‘अगर वे मंत्री न होते और उनमें क्षमता होती तो जुहापुरा में उन्होंने बम विस्फोट किए होते’, यह हास्यास्पद है। जुहापुरा में किसी ने बम विस्फोट नहीं किए। लेकिन पंड्या ने तहलका पर सनसनीखेज़ आरोप किया। उन्होंने दावा किया कि ‘आजतक’ के पत्रकार श्री धीमंत पुरोहित, जो उनके दोस्त हैं, ने उन्हें यह सब बोलने के लिए दिया, यह बताकर कि यह एक आडिशन टेस्ट के लिए हैं। उन्होंने मानहानी का मुक़दमा दायर करने के बाद परिणाम यह हुआ कि श्री पुरोहित को अग्रिम जमानत के लिए अर्ज़ी देनी पड़ी। पंड्या का यह बयान भी ग़लत है कि जब मोदी २७ फरवरी की शाम को गोधरा दौरे पर गए तब उनपर विहिंप कार्यकर्ताओं ने हमला नहीं किया। २७ फरवरी को ही ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के वेबसाइट ने ख़बर दी थी कि विहिंप के संतप्त समर्थकों ने मोदी के साथ उस शाम गोधरा में धक्का-मुक्की की थी। http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2002-02-28/ahmedabad/271119372_1_zadaphia-judicial- probe-modi अब हम अहमदाबाद विहिंप के प्रमुख श्री राजेंद्र व्यास के इंटरव्यू को देखते हैं: “८ जून २००७ तहलका- मुझे नरेंद्र मोदी के बारे में जानकारी चाहिए… उनके पहले शब्द क्या थे? (गोधरा अग्निकांड के बाद)… आप सबको उन्होंने क्या बताया?……. राजेंद्र व्यास- सबसे पहले तो उन्होंने कहा हमें बदला लेना चाहिए…… इसी बात को मैंने खुले तौर पर बताया था…… तब तक तो मैंने कुछ खाया भी नहीं था…… मैंने पानी तक नहीं लिया था….. मैं बहुत गुस्से में था, इतने लोग मारे गए। मेरे आँखों से आँसू बह रह थे….. लेकिन जब मैंने अपनी ताक़त का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया…… मैंने कोसना शुरू कर दिया…… तब उन्होंने (मोदी ने) कहा, ‘राजेंद्र भाई! शांत रहिए, हर चीज़ का ध्यान रखा जाएगा’। उनका यह कहना कि ‘हर चीज़ का ध्यान रखा जाएगा’, उन्हें वास्तव में क्या कहना था?…… सभी लोगों ने उसे समझ लिया था ….” मोदी ने ऐसा कुछ कहा यह साबित करने के लिए कोई भी प्रमाण नहीं हैं; और इसमें से उन्होंने कुछ भी नहीं किया इसे साबित करने के प्रमाण उपलब्ध हैं। उस दिन मोदी श्री व्यास से सचमुच मिले थे या नहीं, इसे देखने के लिए रिकॉर्ड की जाँच करनी चाहिए, क्योंकि मोदी उस दिन इतने व्यस्त थे कि व्यास से उनकी भेंट होने की संभावना नगण्य है। साथ ही, इस बात की संभावना अधिक है कि श्री व्यास ने भी ऐसा कुछ भी नहीं किया होगा और केवल डींगें हाँकने वाले झूठ बोले होंगे। अब हम लोगों ने कैमरे के सामने पुलिस के बारे में क्या बयान दिए उसे देखते हैं। सबसे पहले बाबू बजरंगी: “१ सितंबर २००७ नरेंद्र भाई ने गुजरात में जो कुछ किया, वैसा और कोई नहीं कर सकता। अगर मुझे नरेंद्र भाई का समर्थन नहीं मिला होता तो गोधरा का बदला लेना हमारे लिए संभव नहीं होता… क्योंकि पुलिस हमारे सामने खड़ी थी, और जो हो रहा था उसे देख रही थी, लेकिन पुलिस ने अपनी आँखें और मुँह बंद कर लिए थे। यदि उस समय पुलिस चाहती तो हमे अंदर नहीं जाने देती। वहाँ मात्र एक दरवाज़ा था जैसे आमतौर पर सोसायटी में होता है। उसके बाद ‘पाटिया’ शुरू होता हैं। अगर वे हमें रोकना चाहते तो रोक सकते थे, उनकी संख्या ५० थी। हमें पुलिस से अच्छा समर्थन मिला….. नरेंद्र भाई की वजह से……. क्योंकि गुजरात में जो कुछ हुआ, अच्छे के लिए हुआ। इन लोगों (मुस्लिमों) से हमें थोड़ी राहत मिली… वे चढ़ गए थे और ज्यादा हिम्मत दिखा रहें थे… मुस्लिम लोग सहायता के लिए पुलिस को फोन कर रहे थे, वे उनकी तरफ़ भागे। उनमें से एक व्यक्ति सालेम था…. नरोड़ा पाटिया का दादा…… पुलिस जीप में चढ़कर… अंदर घुस गया, मैंने ख़ुद उसे पकड़ कर बाहर खींचा। पुलिस ने कहा, ‘मारो उसको, उसे ज़िंदा छोड़ोगे तो वह हमारे ख़िलाफ़ गवाही देगा’… उसे एकतरफ़ ले गए और वहीं उसे ख़त्म कर दिया…… अगर वह हरामख़ोर ज़िंदा रहता तो वह बताता कि मैं जीप में चढ़ा था लेकिन उन्होंने मुझे बाहर फेंक दिया… तो इसप्रकार सब कुछ हुआ।… (अंत में वहाँ पर ७००–८०० शव पाए गए) वहाँ से इन शवों को हटाया गया। उस रात को वहाँ पर पुलिस आयुक्त आए थे; उन्होंने कहा कि एक ही स्थान पर इतने शव रहने पर उन्हें परेशानी हो सकती है, इसलिए सारे शवों को उठाकर पूरे अहमदाबाद में अलग-अलग जगहों पर रख दिया गया। इन शवों को पोस्टमॉर्टेम के लिए सिविल अस्पताल में लाया गया तो बताया जाने वाला था कि शव इस या उस जगह के हैं….. १० अगस्त २००७ उस रात २:३० बजे मैंने पुलिस निरीक्षक (श्री मैसोरवाला) को कॉल किया…. उन्होंने कहा ‘इधर मत आना’ (पुलिस थाने में)। मेरे ख़िलाफ़ ‘देखते ही गोली मारने’ का आदेश था। जहा कही बाबू बजरंगी मिले उसे गोली मार देनी थी। हमारे मैसूरवाला ने मुझे भाग जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा ‘मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता’। उन्होंने मुझे कॉल किया, यह बात मुझे किसी को बतानी नहीं थी। इसके बावजूद मेरे घर पर बाइक सवार को भेज दिया, कल्पना कीजिए कि उस समय मेरे बच्चों ने क्या महसूस किया होगा…… (चार महीनों के बाद) नरेंद्र भाई ने मुझसे कहा……. उनके ऊपर काफ़ी दबाव है। मीडिया, टी. वी. और ख़बरें…… बाबू बजरंगी गुंडा है। मुझे गिरफ़्तार नहीं करने पर लालू यादव ने संसद में शिकायत की….. इसलिए नरेंद्र भाई ने मुझसे आत्मसमर्पण करने के लिए कहा….. मैंने कहा ‘ठीक है साहब, आप कह रह हैं तो मैं वैसा ही करता हूँ’। (हमारी प्रतिक्रिया– लेकिन नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि वे बाबू बजरंगी को बिलकुल ही नहीं जानते, और कई सालों बाद मीडिया के ज़रिए ही उसका नाम सुना है। इसीलिए यह सब झूठ है।) गांधीनगर के पास मैंने आत्मसमर्पण किया……. यह भी एक बड़ी ड्रामेबाज़ी थी……पूरी ड्रामेबाज़ी……. पुलिस की अपराध- शाखा को सूचना दी गई कि मैं उस क्षेत्र से जाने वाला हूँ……. उस समय अपराध-शाखा के सहायक आयुक्त श्री पी.पी. पांडे वहाँ थे और १२–१३ कारें वहाँ पहुँची थीं। ये सब लोग बिलोड़ा–गांधीनगर मार्ग पर इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने कुछ गाड़ियों की जाँच की… मुझे वहाँ उतरना पड़ा…. यह भी ड्रामेबाज़ी का एक हिस्सा था। अगर मैं सीधे अपराध-शाखा में गया होता तो मीडिया और स्वयंसेवी संस्थाओं ने मेरे टुकड़े कर दिए होते…… यह एक ड्रामा था…… उन्होंने मुझे पकड़ा और रस्सी से बाँध दिया…. सब केवल ड्रामेबाज़ी थी। उन्होंने मुझे बताया कि केवल दिखावे के लिए मुझे बाँधा गया है…” (संदर्भ: http://www.tehelka.com/story_main35.asp?filename=Ne03110TheirEyes.asp) अब, फिर से, इन सब बातों का कोई मूल्य नहीं है। हमने देखा है कि उनका पहले का बयान ‘२८ फरवरी को नरेंद्र मोदी नरोड़ा पाटिया आए थे’ ग़लत है। नरोड़ा में ७००–८०० शव पड़े थे, यह दूसरा झूठ है, क्योंकि सभी लापता लोगों को मृत घोषित किए जाने के बाद भी नरोड़ा पाटिया के दंगों में ९५ लोग मारे गए थे। हमने यह भी देखा है कि मुस्लिमों की हत्या की अनुमति देने के बजाय पुलिस ने ९०० मुस्लिमों की रक्षा की थी, और भीड़ को तितर-बितर करने के बाद ४०० मुस्लिमों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया था। बजरंगी द्वारा सलीम नामक व्यक्ति के बारे में दिया गया विवरण भी संदेहास्पद लगता है। स्टिंग के बाद बाबू बजरंगी ने नरोड़ा पाटिया में किसी भीड़ के नेतृत्व करने की बात से इनकार कर दिया। एक कहावत है ‘जो भौंकते हैं वे काटते नहीं’। जो डींगे मारते हैं और बाहर से बडबड करते हैं, वो अंदर से बहुत डरपोंक होते हैं, ऐसा कहा जाता है। किसी भी समय पर श्री बजरंगी के ख़िलाफ़ ‘देखते ही गोली मारने’ का आदेश जारी होने के बात संभव नहीं लगती। श्री बजरंगी ने कहाँ पर और किन परिस्थितियों में आत्मसमर्पण किया इसकी बारीकी से जाँच आवश्यक है। उसका यह बयान कि “वहाँ ५० पुलिसकर्मी थे, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं किया” पूरी तरह झूठा है। इस बारे में ‘इंडिया टुडे’ ने लिखा था: “नरोड़ा पाटिया में सबसे भीषण नरसंहार हुआ। सुबह से इकट्ठा होने से और हंगामा करने से भीड़ को रोकने के लिए ज़रूरी पुलिस बल वहाँ नहीं था। वहाँ कम-से-कम ४ से ५ हज़ार के कम-से-कम तीन समूह थे और मुस्लिमों पर हमले कर रहे थे।” हमने देखा ही है कि (नरोड़ा के भूतपूर्व पुलिस निरीक्षक) श्री मैसोरवाला के अनुसार ‘सामान्य स्थिति में नरोड़ा पुलिस थाने में ८० पुलिस कर्मचारियों की संख्या पर्याप्त रहती है, लेकिन २८ फरवरी की स्थिति अभूतपूर्व थी, काफ़ी तेज़ी से परिस्थिति नियंत्रण से परे हो रही थी’। उन्होंने बताया कि उन्होंने अतिरिक्त पुलिस को बुलवाया और अतिरिक्त २४ एस.आर.पी. उन्हें दिए गए। फिर भी १७ हज़ार की भीड़ के सामने यह संख्या अपर्याप्त थी। इसके अलावा क्या लालू यादव, बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और भूतपूर्व केंद्रीय रेल मंत्री, ने संसद में बाबू बजरंगी को गिरफ़्तार करने की माँग वास्तव में की थी, इसके बारे में जानकारी नहीं है, और यह भी झूठ लगता है। अब हम सुरेश रिचर्ड ने पुलिस की भूमिका के संबंध में क्या बताया, देखते हैं: “१२ अगस्त २००७ पुलिस हमारे साथ थी…… यहाँ तक कि अब भी मैं आपको यह बता सकता हूँ….. पुलिस। वह एक महान् दिन था। वे बिलकुल हमारे सामने फ़ायरिंग कर रहे थे। पुलिस ने ७० या ८० लोगों को मार गिराया होगा….. यहाँ तक कि उन्होंने महिलाओं को भी नहीं छोड़ा…… हमने सबकुछ जलाकर राख कर दिया और वापिस आ गए। बाद में पुलिस ने हमें बुलाया और पुलिस ने हमें बताया कि…… मुस्लिम गटर में छुपे हुए हैं। हम वहाँ गए और देखा कि उनके मकान जल चुके थे, उनमें से ७ से ८ लोग गटर में छुपे बैठे थे। हमने गटर के ढक्कन को बंद कर दिया और उसपर बड़े-बड़े पत्थर रख दिए। बाद में वहाँ पर ८-१० शव मिले थे। ख़ुद की जान बचाने के लिए वे लोग वहाँ छुप कर बैठे थे, लेकिन हमने उनको बंद कर दिया था और गटर के अंदर की गैस के कारण उनकी मौत हो गई…… यह सब शाम को हुआ…… देर रात तक हंगामा चलता रहा…… क़रीब ८:३० बजे तक।” यह और झूठ है। पुलिस ‘७० या ८० या इससे अधिक’ मुस्लिमों को मारा नहीं, बल्कि ९०० मुस्लिमों की जान बचाई। अब तक किसी ने भी, यहाँ तक कि नरोड़ा पाटिया के सुरक्षित बचे मुस्लिमों ने भी या अन्य किसी ने, यह आरोप नहीं लगाया कि नरोड़ा पाटिया में पुलिस ने ७० या ८० या इससे अधिक मुस्लिमों को मारा। उसके वाक्यों में इतनी ग़लतियों को देखकर लगता है यह व्यक्ति उस दिन नरोड़ा पाटिया में मौजूद ही नहीं था। अहमदाबाद विहिंप के प्रमुख श्री राजेंद्र व्यास ने पुलिस की भूमिका के बारे में कहा: “राजेंद्र व्यास– नरेंद्र भाई मुख्यमंत्री होने के कारण ‘सभी मुस्लिमों को मारो’ नहीं कह सकते थे। मैं इसे खुले तौर पर कह सकता हूँ क्योंकि मैं विहिंप से हूँ। प्रवीणभाई तोगड़िया ऐसे कह सकते हैं। लेकिन वे (मोदी) ऐसे नहीं कह सकते। जैसा कि हम गुजराती में कहते हैं ‘आँखड़ा कान खड़ा’ (नज़रअंदाज करना)…… अर्थात् उन्होंने हमें जो करना है उसके लिए हमें पूरी छूट दी थी, क्योंकि हम पहले से ही मुस्लिमों से परेशान थे। पुलिस हमारे साथ थी। कृपा करके मैं जो बताने का प्रयास कर रहा हूँ उसे समझने की कोशिश कीजिए। पुलिस हमारे पक्ष में थी, साथ ही पूरा हिंदू समुदाय भी। भाई (मोदी) इस ओर बहुत ध्यान दे रहे थे, अन्यथा पुलिस दूसरी ओर जा सकती थी….. तहलका– हाँ, अगर कांग्रेस की सरकार होती तो। व्यास- यदि वैसा होता तो तस्वीर बिलकुल अलग होती। तहलका– लेकिन पुलिस भी तो आख़िर हिंदू ही है। मैं जानना चाहता हूँ उन्होंने क्या भूमिका निभाई। व्यास- वे मुस्लिमों के पास गए ही नहीं; लोगों ने भले ही उन्हें बुलाया, फिर भी वे ‘हम आ रहे हैं’ केवल इतना ही कह रहे थे। उस समय उन्होंने यहीं किया। दूसरी बात जो उन्होंने की, लोगों से कहा कि ‘आप जो चाहते हैं करें’…….उन्होंने स्वयं कुछ नहीं किया।” यह भी सब झूठ है। पुलिस ने की वास्तविक कार्यवाही का विवरण हम पहले देख चुके हैं। एम.एस. विश्वविद्यालय के लेखापाल श्री धीमंत भट ने कहा: “९ मई २००७ मेरे जैसे ५० लोगों को पुलिस आयुक्त द्वारा विशेष अनुमति दी गई थी… सहायता के लिए कर्फ़्यू वाले क्षेत्रों में जाने की… शांति और क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए… यह तो केवल बहाना था… मैं खुला हूँ…. (उस मामले में) स्पष्ट वक्ता हूँ। लेकिन हमने हिंदुओं को कैसे मदद की? उस समय हिंदुओं के घरों में लकड़ी की काठियाँ भी नहीं थीं, फिर हमने क्या किया? हम लोहे के पाइप ले आए…… तीन फुट वाले…… लोहे की छड़ें……और बजरंग दल के लोग थे तो त्रिशूल। सारे सामान (हथियार) को इकट्ठा रखने के लिए बजरंग दल के लोगों की एक योजना थी। हम गए और अलग-अलग बस्तियों में प्रमुख व्यक्तियों को इन हथियारों की आपूर्ति की। ऐसा करना बहुत ज़रूरी था……” इन सब तथ्यों की तलाश करना ज़रूरी है। तार्किक दृष्टि के लिए वे जो कह रहे हैं उसे अगर सच मान भी लें, तो क्या पुलिस ने उन्हें जान-बूझकर ऐसा करने की अनुमति दी थी? परंतु वास्तव में यदि वह अपराधी है तो उसे दंडित किया जाना चाहिए। श्री धवल जयंती पटेल ने कहा: “तहलका– गोधरा के बाद जब आपने बम बनाकर अहमदाबाद में भेजा तब आपको रास्ते में पुलिस ने नहीं रोका? पटेल- हमने इसे पुलिस से छिपाया….. पुलिस ने हमें जाने दिया। केवल जय श्रीराम कहने से फ़र्क़ पड़ता है। आख़िर पुलिस भी तो हिंदू ही है, वे भी समझते हैं…..” यह बयान भी संदिग्ध है—वास्तव में उन्होंने बम बनाए थे या नहीं। अब अहमदाबाद के कालूपुर क्षेत्र के विहिंप ज़िला मंत्री श्री रमेश दवे का बयान देखिए: “१२ जून २००७ पुलिस बहुत मदद कर रही थी….. बहुत मदद। और जब मानवाधिकार के लोग आए… उन्होंने सब कुछ देखा… तब उन्होंने कहा इसमें राजनेताओं की भूमिका थी…… पुलिस भी, सच कहा जाए तो हिंदू समुदाय का हर एक व्यक्ति, क्योंकि पुलिस भी आख़िर कौन थी?…… पुलिस भी हिंदू ही थी… लेकिन स्थिति ऐसी थी कि वे सरकार के दबाव में थे …. चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते थे… श्री (एस.के.) गड़वी साहब यहाँ के नए डी.सी.पी. थे। कर्फ़्यू जारी था और वे गश्त लगा रहे थे… मैं उनके पास साइकल से गया और उनको ‘नमस्कार’ कहा…… उन्होंने पूछा ‘कर्फ़्यू के घंटो में आप बाहर कैसे?’ मैंने कहा ‘मैं महाराज हूँ, मुझे जहाँ जाना है मैं जा सकता हूँ’……. तब तक उन्हें पता नहीं था कि मैं विश्व हिंदू परिषद् से हूँ। बाद में उन्होंने कहा कि उन्हें पास के मंदिर के ऊपरी हिस्से पर जाना है। उन्हें वहाँ क्या करना है, मैंने पूछा। उन्होंने कहा बाहर के बहुत सारे मुस्लिम वहाँ बैठे हैं। उन्हें सीधा करना है…….. मैंने कहा, ‘अगर आपको सबक सिखाना है तो मैं आपको एक ऐसी सही जगह पर ले जा सकता हूँ। लेकिन आपको वादा करना होगा कि उनमें से कम-से-कम चार या पाँच लोगों को मार गिराना होगा’……. उन्होंने वादा किया…….. फिर हम उस स्थान पर गए। उन्होंने कहा, ‘मैं इससे पहले यहाँ आ चुका हूँ’…… मैंने उनसे कहा, ‘यहाँ पहले आए थे या नहीं, इसे भूल जाइए’। वहाँ ताला लगा हुआ एक मकान था। मैंने चाभी मँगवाई और और हम छत पर चले गए। वहाँ से ‘वह जगह’ आगे थी। उन्होंने छत से फ़ायरिंग की शुरूआत कर दी, और कुछ समझ में आता इससे पहले उन्होंने पाँच लोगों को मार गिराया……. श्री गड़वी साहब ने हमसे कहा ‘मेरा नाम कहीं भी मत लेना’, लेकिन सभी पुलिस कर्मियों ने हमारी सहायता की… सभी ने। ऐसी बात बतानी नहीं चाहिए, लेकिन उन्होंने हमें कार्टरिज भी दी थी।” (संदर्भ: http://www.tehelka.com/story_main35.asp?filename=Ne031107All_The_Cops.asp) ‘इंडिया टुडे’ के १२ नवंबर २००७ के अंक के अनुसार: “विहिंप कार्यकर्ता रमेश दवे ने तहलका के पत्रकार आशीष खेतान को कैमरे के सामने बताया कि विभागीय पुलिस आयुक्त श्री एस.के. गड़वी ने उससे वादा किया था कि वे कम-से-कम पाँच मुस्लिमों को इन दंगों में मारेंगे, और दरियापुर क्षेत्र में पाँच मुस्लिमों को मारकर उन्होंने अपना वादा पूरा किया। लेकिन आधिकारिक रिकॉर्ड दिखाते हैं कि अहमदाबाद के दरियापुर क्षेत्र में श्री गड़वी की नियुक्ति दंगों के एक माह बाद हुई थी, और उनके कार्यकाल में इस तरह की कोई घटना नहीं हुई थी।” इससे तहलका और रमेश दवे का झूठ फिर से पकड़ा जाता है। अब हम गुलबर्ग मामले के एक आरोपी श्री प्रल्हाद राजू के बयानों को देखते हैं: “८ सितंबर २००७ तहलका- गुलबर्ग की घटना के समय पुलिस ने आपके साथ कैसा बर्ताव किया? राजू- सिवाय हमें देखने के पुलिस ने कुछ भी नहीं किया। तहलका- आपको जो करना था, उन्होंने करने दिया? राजू- उस दिन उन्होंने किसी को भी गिरफ़्तार नहीं किया। यहाँ तक कि स्पर्श भी नहीं किया। (हमारी प्रतिक्रिया– यह बिलकुल ग़लत है। उस दिन पुलिस ने ७०० लोगों को गिरफ़्तार किया था!) तहलका- उन्होंने किसी को भी रोका नहीं? राजू- ४:३० बजे उन्होंने हमें खदेड़ दिया। तहलका- तब तक किसी को भी रोका नहीं? राजू- ऊपर से आदेश आए तब……. उन्होंने हमें जाने के लिए कहा। तहलका- ४:३० बजे तक अपने जो चाहा, आपको करने दिया गया? राजू- हाँ; क्राइम ब्रांच के लोगों ने हमसे अच्छा बर्ताव किया….. हमें बिलकुल अपने घर की तरह महसूस हो रहा था…….. हमारे घर के लोग हमसे मिलने आ रहे थे, उन्हें मिलने दिया जा रहा था……. लगभग एक हफ़्ते तक हमें क्राइम ब्रांच में रखा गया था…..” फिर से एक बार यह डींग मारने वाला झूठ है, और इस बयान से तो ऐसा लगता है कि २८ फरवरी को यह व्यक्ति गुलबर्ग सोसायटी में मौजूद ही नहीं था। क्योंकि यहाँ पुलिस की गोलीबारी में पाँच दंगाई मारे गए (और हमलावर भीड़ बड़े पैमाने पर होने के बावजूद १८० मुस्लिमों के प्राणों की रक्षा की गई)। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की २८ फरवरी की ऑनलाइन ख़बरों में पुलिस पर किसी भी प्रकार की निष्क्रियता का आरोप नहीं लगाया गया है। अब विहिंप के राज्य विभाग प्रमुख श्री अनिल पटेल का इंटरव्यू देखिए: “१३ जून २००७ अनिल पटेल– देखिए, कुछ क्षेत्र ऐसे थे जहाँ हमारी सुरक्षा के लिए हम बहुत चिंतित थे। तहलका- जैसे? पटेल- कालूपुर, दरियापुर…….. इस क्षेत्र के ठीक बगल में हिंदू रहते हैं…… उनकी सुरक्षा के लिए हमने यहाँ से कुछ सामान (हथियार) भिजवाया। तहलका- यहाँ से भिजवाया? पटेल- समय-समय पर…… वहाँ कुछ पुलिसकर्मी थे, हम उनके संपर्क में थे। वे आकर सामान लेते थे, और जहाँ पहुँचाना है वहाँ सुरक्षित रूप से पहुँचा देते थे। यहाँ पुलिस ने हमें काफ़ी समर्थन दिया… यहाँ तक कि कुछ लोगों ने कहा कि कुछ भी कीजिए… उनको मारो, लूटो, ख़त्म कर दो उनको… मेरा तो एक बार एक डी.एस.पी. से झगड़ा हो गया। हमारे एक भाई ने तलवार से एक मुस्लिम का कान काट डाला, और डी.एस.पी. ने उसे गिरफ़्तार कर लिया। मैंने डी.एस.पी. से कहा, हमारे लोग मरते दम तक ज़िंदा जलाए गए। तुम तो भ्रष्ट हो, और वडोदरा में तो तुम मुस्लिमों के साथ भोजन में शामिल थे। बाद में उन्होंने उस भाई को छोड़दिया। डी.एस.पी. एन.डी.सोलंकी बहुत अच्छे इंसान थे। उन्होंने कहा ‘उसे छोड़ दो’…… तहलका- अर्थात् श्री सोलंकी ने समर्थन दिया? पटेल- पूरा-पूरा। उन्होंने मुझे पूर्ण समर्थन दिया। देखिए, जब दंगे ख़त्म हो रहे थे, माहौल शांत होने लगा, तब बिलोड़ा गाँव के किसी व्यक्ति ने कहा यहाँ तो कुछ भी नहीं हुआ। कुछ तो करना होगा। वहाँ एक मंसूरी नामक एक व्यक्ति था……. वह ‘सिमी’ से सहानुभूति रखता था….. उसकी सब्ज़ी की दुकान थी…… उसकी मौत होने तक उसपर हथियारों से वार किए गए….. बाद में हमारे इलाक़े के एक सहमंत्री (विहिंप नेता) अरविंद भाई सोनी को गिरफ़्तार कर लिया गया। मैं बिलोड़ गया, डी.एस.पी. को बुलवाया और उनसे बातचीत की। जयंतीभाई और मैं दोनों गए, उनसे मिले और उन्होंने कहा कि वे श्री अरविंद भाई को रिहा कर देंगे। वहाँ गिरफ़्तारी रिपोर्ट में सब कुछ लिखित में था। लेकिन श्री अरविंद भाई को न्यायालयी हिरासत में भेजना था, तब उन्हें (विहिंप) कार्यालय में वापिस जाने के लिए कहा गया……. तहलका- कार्यालय में जाने के लिए…… पटेल- वहाँ पर वे लगभग डेढ़ माह तक रहे थे। तहलका- यह डी.एस.पी. ने बताया? डी.एस.पी. कौन थे? पटेल- एन.डी. सोलंकी। पटेल- वहाँ पर श्रीकुमार आई.बी. अधिकारी थे। उन्होंने अहमदाबाद पुलिस आयुक्त को फ़ैक्स भेजा कि साबरकांठा विहिंप ने अहमदाबाद के लिए हथियार भेजे हैं। इस मामले की जाँच की गई…… हमारा ब्लॉक मंत्री गिरफ़्तार हो गया। इस जाँच के लिए जो पुलिस निरीक्षक आए वे संघ से संबंधित थे…….. तहलका- उनका नाम क्या था? पटेल- मुझे पता नहीं है। लेकिन….. जाँच पूरी होने के बाद उन्होंने हमें बताया कि वे हमारे विभाग प्रचारक, श्री जीवन दल भोले के साथ हैं…….” इस व्यक्ति द्वारा दिए गए बयान सही हैं या ग़लत, यह अन्वेषकों ने देखना है। परंतु उनका यह बयान कि अहमदाबाद के कालूपुर और दरियापुर क्षेत्र के हिंदुओं की सुरक्षा यह अत्यंत चिंता का विषय था, यह बिलकुल सही था। अब हम एहसान जाफ़री मामले के आरोपी श्री माँगीलाल जैन के बयानों को देखते हैं: “८ सितंबर २००७ तहलका- उस इंस्पेक्टर का नाम क्या है, जिसके बारें में आप बात कर रहे थे? जैन- श्री (के.जी.) एरडा (मेघनीनगर के पुलिस निरीक्षक) तहलका- एरडा….. उन्होंने क्या किया? जैन- उन्होंने हमारा समर्थन किया। उस दिन वो लोग जनता से दूर रहें। तहलका- मुस्लिमों से दूर रखा? जैन- लोगों से…….. हिंदुओं से…… उन्होंने हमसे कहा कि सबकुछ दो से तीन घंटों में ख़त्म हो जाना चाहिए। तहलका- इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने आपको २–३ घंटे दिए। जैन- ख़त्म करने के लिए। तहलका- सब कुछ ख़त्म करने के लिए? जैन- यह पूरे अहमदाबाद में हो रहा था। (यह समझा गया था) बाहर का कोई भी व्यक्ति नहीं आ सकता था। यहाँ तक कि अतिरिक्त बल भी नहीं आने वाला था। शाम तक वहाँ कोई नहीं आने वाला था। इसीलिए हमें पूरा काम करना था। तहलका- उसने आपको सब २–३ घंटों में करने के लिए कहा। जैन- उन्होंने कहा, और भीड़ बेक़ाबू हो गई। कुछ लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी, और दूसरे लोगों ने हत्याएँ करना शुरू कर दिया। किसी ने एक व्यक्ति को बाहर खींचकर ज़मीन पर गिराया, उसके टुकड़े कर दिए और जला दिया। इसी तरह की कई घटनाएँ हुई। तहलका- आपको दो माह बाद गिरफ़्तार किया गया? जैन- मैंने दो माह बाद आत्मसमर्पण कर दिया। तहलका- क्या आप न्यायालय में उपस्थित हुए थे? जैन- न्यायालय में नहीं…… मैं क्राइम ब्रांच में उपस्थित हुआ था। वहाँ श्री सदाव्रती साहब थे…… मैंने उनको घर में बुलाया। हमने रात को भोजन किया……. उन्होंने मुझे आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, और मैंने वैसा ही किया। तहलका- श्री सदाव्रती ने सहयोग दिया? जैन- सहयोग दिया…. वे मुझे शाम को मिले थे। तहलका- क्या उनसे कोई मदद मिली? जैन- उन्होंने बताया कि माँगीलाल का नाम वहाँ है। मुझे आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। तहलका- आपके घर पर? जैन- हमारे घर पर। (उन्होंने कहा) चिंता मत करो और डरने की भी कोई बात नहीं है। कल १० बजे उपस्थित हो जाओ। सब कुछ ठीक हो जाएगा। आपका बेटा एक-दो माह में बाहर आ जाएगा। उसका नाम अब रिकॉर्ड पर होने के कारण, दूसरा कोई विकल्प नहीं है। उसका नाम है इसका मतलब उसे उपस्थित होना ही है। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री भी कुछ नहीं कर सकते….. और तब मैं क्राइम ब्रांच को सरेंडर किया… उन्होंने मेरी अच्छी देखभाल की। तहलका- उन्होंने आपकी अच्छी देखभाल की? जैन- हाँ, साहब। उस लॉकअप में काफ़ी सारे मच्छर थे और वहाँ बहुत गंदगी थी। हमें उसमें नहीं रखा…… उनके कार्यालय के ऊपर एक कमरा था। हमको कार्यालय में रखा गया। वहाँ गद्दे थे… दिन में दो बार मेरे घर से भोजन आता था। हम वहाँ तीन दिन तक थे…… तहलका- तीन दिन? जैन- पहले दिन हमें अदालत में पेश किया गया। तहलका- आपको कहाँसे उठाने का उन्होंने दर्ज किया? जैन- उन्होंने कहा हमें हमारे घर से हिरासत में लिया गया। तहलका- उन्होंने ऐसा कहा? जैन- हाँ, उन्होंने यही कहा। पुलिस ऐसे ही होती है, कहती कुछ है और करती कुछ है। उन्हें केवल यही चाहिए कि उनका नाम बेदाग रहे। तहलका- लेकिन उन्होंने आपकी अच्छी देखभाल की? जैन- देखभाल अच्छी थी। हम शाम को वहाँ गए….. हमें दिन में दो बार चाय मिलती थी और हम फोन भी कर सकते थे। मुझे घर से फोन आते थे……. हम भी करते थे…….. हमें फोन की पूरी सुविधा थी। तीन दिन तक हम क्राइम ब्रांच में थे…… उन्होंने हमें हाथ तक नहीं लगाया…… यह बात मुझे बतानी चाहिए…… किसी ने मेरी तरफ़ उँगली भी नहीं उठाई…… उसी दिन उन्होंने मेरा बयान दर्ज किया…….. ‘क्या हुआ था?’ ……. ‘उस दिन आप कहाँ थे?’ (यहीं उन्होंने पूछा) तहलका- आपने क्या बताया? जैन- मैंने बताया कि दुकान बंद थी… मैं वहाँ देखने के लिए गया था…… मैं गुट का एक भाग था…… उस स्थान से मेरा घर दूर था और वहाँ पर बड़ी मात्रा में भीड़ थी, जिन्होंने हत्याएँ की थीं उनमें से मैं किसी को भी नहीं जानता था। मैंने यहीं बताया……. ‘हत्याएँ किसने कीं, मुझे पता नहीं। सभी लोग नारेबाज़ी कर रहे थे, मैंने भी नारेबाज़ी शुरू कर दी’…… यही मैंने उन्हें बताया, और बाद में बताया कि दो बजे सब कुछ होने के बाद मैं घर चला गया। यही मैंने बताया। तहलका- आपने यही बताया। जैन- यही बताया। तहलका- क्या आपको सच बताने के लिए उन्होंने मजबूर नहीं किया? जैन- नहीं साहब…… उन्होंने मुझे हाथ तक नहीं लगाया….. मैंने जो कुछ बताया उसे उन्होंने दर्ज कर लिया। तहलका- आपने जो बताया, उसे ही उन्होंने दर्ज किया? जैन- उन्होंने मुझ से कुछ नहीं कहा…… दो दिन मैं रिमांड पर था….. पहले ही दिन रिमांड ख़त्म हो गई। रिमांड तो केवल नाम के लिए थी। दो दिन मुझे घर से भोजन मिला….. मेरा परिवार मुझसे मिलने आ रहा था। मुझे सब प्रकार की सुविधाएँ दी गई थीं। तहलका- इसका मतलब यह हुआ कि रिमांड केवल एक औपचारिकता थी……. क़ानूनी प्रक्रिया। जैन- उन्होंने पूरी क़ानूनी प्रक्रिया का ठीक ढंग से पालन किया।” उनका यह बयान, “यहाँ तक कि अतिरिक्त बल भी नहीं आने वाला था। शाम तक वहाँ कोई नहीं आने वाला था। इसीलिए हमें पूरा काम करना था” पूरी तरह ग़लत है। क्योंकि ‘इंडिया टुडे’ के अनुसार अतिरिक्त बल पहुँच गया था, लेकिन तब तक भीड़ की संख्या दस हज़ार तक चली गई थी। इस व्यक्ति के ये बयान यदि वास्तव में सत्य हैं तो निश्चित रूप से उसपर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए। एक और इंटरव्यू हैं गुलबर्ग मामले के एक आरोपी श्री मदन चावल का: “१२ जून २००७ चावल- मैं उस दिन वहाँ था…… पूरे दिन… मैं उनके साथ भागा। वे जब जाफ़री साहब को लाए, तब मैं वहीं खड़ा था…… उन्होंने उनको नीचे गिराया और लातों से पीठ पर मारा। वे लोग उनके टुकड़े करने चाहते थे। तहलका- इन सब के बारे में विस्तार से बताइए। यह सब कहाँ शुरू हुआ? चावल- मैं अपनी दुकान में था, तब ८:३० से ९ बजे के बीच विहिंप के लोग दुकान बंद करवाने के लिए आए। ९–९:३० बजे मेरी दुकान के सामने की एक दुकान को जलाया गया। तब मुझे पता चला कि सब शुरू हो गया है। तहलका- वह दुकान मुसलमान की थी? चावल- हाँ, उनकी ही थी। यह सब कुछ शुरू होने के बाद भगदड़ मच गई। पापा ने मुझे अपनी दुकान बंद करने के लिए कहा…… भले ही वह मेरा इलाका था, अगर मेरी दुकान खुली रहती, तो भी कोई कुछ बोल नहीं सकता था। दुकान बंद करने के लिए कहने के बाद किसी ने कुछ नहीं कहा। फिर मैंने इशारों से कहा कि यह ठीक नहीं लगेगा, धर्म का मामला है और इसलिए दुकान बंद करना और भी ज़रूरी है। पिताजी ने कहा ‘आज के लिए दुकान बंद करों, हम घर जाएँगे’। मेरे पिताजी, अन्य कुछ लोग, हम सब घर चले गए। बाद में १०:३०–११ बजे मैं घर से बाहर गया… और कुछ देर बाद मैं भीड़ में शामिल हो गया…. मैं भीड़ के साथ था, हंगामा शुरू हो गया…. कम-से-कम ढाई घंटे तक यह सब चलता रहा। तहलका- भीड़ का नेतृत्व कौन कर रहा था? चावल- काफ़ी लोग भीड़ में शामिल हो गए थे। जैसे ही वो दुकान जलाई गई, उसी समय लोग इकट्ठा होने लगे। तहलका- क्या इस भीड़ में विहिंप के लोग थे? चावल- सब थे। तहलका- विहिंप से कौन-कौन थे? चावल- उस समय सभी नेताओं के बारे में मुझे जानकारी नहीं थी। मेरा उनसे कोई संबंध नहीं था, व्यवसायिक पृष्ठभूमि होने के कारण उसी क्षेत्र के लोगों को मैं जानता था। बाद मैं अतुल भाई से मिला, तब मुझे याद आया कि वे भी वहीं थे। तहलका- वहाँ अतुल वैद थे? चावल- श्री अतुल वैद और भरत भाई तेली दोनों वहीं थे। ये लड़के…… बड़े आदमी….. मुझे जेल से छुड़ाने के लिए आए तब उनसे मिला था……वे पुलिस थाने में आए थे। हालाँकि वे सेंट्रल जेल कभी नहीं आए……… वे जब पुलिस थाने में आते थे तब मुझे देखते थे। बाद में मेरे ध्यान में आने लगा कि वे भी वहीं पर थे। मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ कि उनके नामों को छोड़कर मुझे क्यों गिरफ़्तार किया गया? मेरा नाम आया उस समय अतुल वैद और भरत तेली के नाम क्यों नहीं लिए गए?… मैंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। क्योंकि मुझे जेल से बाहर निकालने या अन्य बातों के लिए यही लोग मेरी सहायता कर सकते थे….. और इसीलिए मैने अपना मुँह कभी नहीं खोला। ये सब लोग घटनास्थल पर थे, इस बारे में मैंने एक शब्द भी नहीं बोला। किसी ने भी कुछ नहीं कहा….. यहाँ तक कि जेल के अंदर के उन ४० युवकों ने भी कुछ नहीं कहा। तहलका- हर किसी को यह पता था। चावल- उन्हें पता था। वास्तव में क्या हुआ था, इस बारे में हम लोग कभी कुछ नहीं कहते….. हम जेल में केवल यही कहते कि इसके बारे में हमें कुछ पता नहीं है……. कि हमें फसाया गया था……. आग लगाने लिए केरोसीन का उपयोग करने का आरोप मुझ पर पहले आरोप-पत्र में लगाया गया। इस आरोप-पत्र में जब एरडा साहब के कहा तब ५:३० से ६ बजे के बीच मुझ पर गोली चलाई गई थी। तहलका- आपको किसने गोली मारी? चावल- जैसा कि एरडा साहब ने कहा….. सम्पूर्ण विभाग ने। क्या मैंने आपको वह जगह नहीं दिखाई? तहलका- हाँ। चावल- मैं यूँ ही वहाँ खड़ा था…. उनके आसपास ८ से १५ लोग खड़े थे। हमने उनसे पूछा, ‘साहब ये आप क्या कर रहे हैं, उन्हें क्यों बचा रहे हैं?’ तहलका- आपने एरडा साहब को यह कहा। चावल- लोगों ने…… हम ८ से १५ लोग थे……. हर एक ने पूछा ‘ये आप क्या कर रहे हैं?’ तहलका- आपने पूछा, मुस्लिमों को वे कहाँ ले जा रहे हैं? चावल- हमने उनसे पूछा, ‘उन्हें (मुस्लिमों को) कहाँ ले जा रहे हैं’, तब उन्होंने बताया वे क्या कर रहे हैं। तहलका- उन्होंने क्या कहा? चावल- उन्होंने कहा, ऐसा करो……. जब यह गाड़ी (जिसमें मुस्लिम थे) इस ओर आएगी, तब हमारे पुलिस हवालदार (गाड़ी के साथ वाले) भाग जाएंगे….. तब उसमें आग लगा देना। सब कुछ यहाँ ख़त्म हो जाएगा, और किसी के ख़िलाफ़ मुक़दमा दयार करने का सवाल ही नहीं रहेगा। ‘पूरी पिक्चर यहीं ख़त्म हो जाएगी’। जन उन्होंने ऐसा कहा तब बागड़ी समुदाय को लगा कि जो गवाह हो सकते हैं केवल उन्हें पुलिस पकड़ कर ले जा रही है……. (वे घबरा गए) कि वो उन्हें परेशान कर सकते है…… और तब उन्होंने एरडा साहब पर पथराव शुरू कर दिया ……और जब उन्हें एक पत्थर लगा तब मैं वहाँ से भाग गया। उन्होंने उनकी पिस्तौल बाहर निकाली….. वे मेरे पीछे ही थे….. चिल्लाकर मुझे रुकने के लिए कहा। जब मैंने भागते समय अपने साथ भतीजे को खींच कर ले जाने का प्रयास किया, तो उन्होंने मुझ पर गोली चलाई। तहलका- एरडा साहब ने आपके ऊपर गोली चलाई? ग़लती से? चावल- ग़लती से….. गोली मेरे हाथ पर लगी। मेरे हाथ पर घाव हो गया था, लेकिन कोई भी क्लीनिक खुला नहीं था, सब बंद थे। यहाँ तक कि हॉस्पिटल भी। तब मैं सिविल हॉस्पिटल गया…. इस तरह की घटनाओं में मैंने कभी भाग नहीं लिया था इसलिए मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उस दिन हॉस्पिटल के रिकॉर्ड में मैं अपना असली नाम दर्ज करवा बैठा। तहलका- फिर उस सुबह आपने जाफ़री को कैसे मारा? चावल- जाफ़री। ऐसा हुआ कि जिस समय लोगों ने उनको पकड़ा लिया; मैंने उनकी पीठ पर लात मारी और उन्होंने उनको एक तरफ़ खींच लिया। जिस क्षण उनको खींचा उसी समय। तहलका- आपने जाफ़री को लात मारी? चावल- लात मारी। तहलका- वे नीचे गिर गए? चावल- गिरा….. वो नहीं….. खैच उनके हाथ में था ना…… पाँच-छह जन पकड़ लिए थे, फिर उसको जैसे पकड़ के रखा, फिर लोगों में से किसीने तलवार मारी….. हाथ काटे…. हाथ काट के फिर पैर काटे…… फिर ना, सब काट डाला….. फिर टुकड़े कर के… फिर जो लकड़ा जो लगाए थे… लकड़े उसपे रखके फिर जला डाला…… ज़िंदा जला डाला। तहलका- जब आप जाफ़री के शरीर के टुकड़े कर रहे थे, उस समय एरडा उन्हें बचाने के लिए नहीं आए? चावल- किसी ने कुछ भी नहीं किया। उस समय तो एरडा साहब वहाँ पर थे ही नहीं। अपनी गाड़ी के साथ वे मेघनीनगर चले गए थे। लोग उनके शरीर के टुकड़े कर रहे हैं, उन्हें पता ही नहीं था। यह घटना १ या १:३० बजे हुई। तहलका- लेकिन क्या जाफ़री के परिवार के बाकी लोग बच निकले? चावल- नहीं। केवल उनकी पत्नी बच गई। उसने हिंदू का भेष धारण करके स्वयं को हिंदू के रूप में पेश किया। तहलका- लेकिन उनकी कुछ बेटियों को बचा लिया गया? चावल- वहाँ पर कोई भी बचा नहीं… उनके परिवार का कोई जीवित बचा नहीं। उस समय जो वहाँ पर नहीं थे केवल वे ही बच गए। उनकी पत्नी ने बताया, वह नौकरानी है….. एक हिंदू जो पीछे की ओर पत्रेवाली चाल में रहती है, (उसने कहा) मुझे क्यों मारते हो, मैं तो साधारण नौकरानी हूँ। उसने हिंदू जैसे कपड़े पहने थे…… अच्छे कपड़े। तहलका- आप उसे पहचान नहीं पाए, और इसलिए वह बच गई? चावल- मैं पहले उससे कभी मिला नहीं था क्योंकि उनसे मिलने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। उनके साथ मेरा कोई संबंध नहीं था। तहलका- गुलबर्ग सोसायटी कितनी बड़ी है? यहाँ काफ़ी लोग रहते हैं? चावल- काफ़ी लोग रहते हैं। तहलका- तो क्या अब वहाँ पर रहने के लिए लोग वापिस आए हैं? चावल- कोई भी वापिस नहीं आया….. वह अब बंद है….. अब तो जैसे जेल है…. कोई भी वापिस नहीं लौटा है। तहलका- लेकिन उस शाम कुछ लोगों को वहाँ बचा लिया गया था। चावल- ४० लोग भाग गए…… कुछ पहले ही निकल गए थे। तहलका- तो आप गुलबर्ग में कैसे गए? चावल- लोग अपने घरों से गैस सिलेंडर लेकर आए थे। उसे सोसायटी की बाहरी दीवार पर रखा…. फिर लोग ब्रेड बनाने वाली बेकरी से पाइप लेकर आए, और उसकी सहायता से गैस सिलेंडर को खोला। फिर वे वहाँ से दूर चले गए, और कपड़े की मशाल बनाकर उसे दीवार पर रखे हुए सिलेंडर पर फेंका। सिलेंडरों का विस्फोट हुआ और दीवार गिर गई, फिर हम अंदर चले गए। तहलका- क्या दीवार काफ़ी ऊँची थी? चावल- बहुत ज्यादा। वह दो फुट की दीवार नहीं थी। दीवार लगभग १५–२० फुट ऊँची होगी। उस दीवार पर काँटों की बाड़ भी लगी थी । तहलका- तो, एक या दो सिलेंडरों से वह दीवार गिर गई? चावल- दो सिलेंडर….. एक वहाँ फेंका था और दूसरा सामने ही था। उन सिलेंडरों के कारण ही दीवार गिर गई होती। सिलेंडर काफ़ी भारी होते हैं। तहलका- और इस कारण अंदर के घरों में आग लग गई? चावल- घरों को जलाने के लिए, लोगों ने निवासियों के ही वस्तुओं का उपयोग किया….. बाहर से कोई वस्तु लाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी…..जलाने के लिए उनके ही वस्तुओं का उपयोग किया गया। तहलका- पाटिया में भी ऐसा ही हुआ। चावल- पाटिया में भी यही हुआ।…” (संदर्भ: http://www.tehelka.com/story_main35.asp?filename=Ne031107They_hacked.asp) ‘उनके परिवार में से कोई नहीं बचा, केवल उनकी पत्नी बच गई’ यह पूरी तरह झूठ है। सच तो यह है कि इस घटना में १८० से अधिक मुसलमानों को बचाया गया, और उनकी पत्नी के साथ वहाँ मौजूद अन्य रिश्तेदारों को भी बचाया गया। इसके अलावा ख़ुद को बचाने के लिए उनकी पत्नी ने स्वयं को बचाने के लिए हिंदू का भेष पहनने का कोई संकेत नहीं हैं। ये सारे बयान झूठे हैं। उस समय ‘द पायनियर’ के एम.डी. और संपादक श्री चंदन मित्रा (१९५५-२०२१) ने ‘आउटलुक’ के १२ नवंबर २००७ के अंक में लिखे लेख ‘ए स्टिंग विदाउट वेनम’ के अनुसार श्री जाफ़री के शरीर के टुकड़े नहीं किए गए बल्कि पोस्टमॉर्टेम की रिपोर्ट के अनुसार गोली लगने से उनकी मृत्यु हुई थी। यह तो स्पष्ट लगता है कि ‘श्री जाफ़री के पैर काट दिए गए थे’ जैसे श्री चावल के बयान फिर से एक बार डींगे हाँकने वाले झूठे बयान हैं। विहिंप नेता श्री अनिल पटेल ने तहलका के स्टिंग ऑपरेशन में अपने इंटरव्यू में कहा कि दंगों में मुस्लिमों पर हमलावरों में कांग्रेस पार्टी के नेता भी शामिल थे। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के ९ अगस्त २००३ के अंक में, दंगों में मुस्लिमों पर हमला करने वाले २५ कांग्रेस नेताओं पर लगाए गए आरोपों के बारे में हम पहले ही देख चुके हैं। लेकिन गुजरात के तत्कालीन कांग्रेस नेता और गुजरात के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री शंकर सिंह वाघेला (जन्म १९४०) ने तहलका ऑपरेशन के संबंध में कुछ अलग ही कहा। रेडिफ.कॉम ने कहा: “श्री शंकर सिंह वाघेला, केंद्रीय कपड़ा मंत्री, ने शनिवार (२७ अक्तूबर २००७) को आरोप लगाया कि गुजरात नरसंहार पर तहलका का स्टिंग ऑपरेशन जल्द ही होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर मतदाताओं में अपनी गिरती हुई छवि को फिर से बहाल करने का नरेंद्र मोदी सरकार का ‘विलंब से किया हुआ प्रयत्न है’।…उन्होंने कहा, ‘भारतीय जनता पार्टी की गुजरात इकाई में चल रहे अंतर्गत संघर्ष से लोगों का ध्यान हटाने के लिए किया गया यह एक प्रयत्न है’। श्री वाघेला ने यह भी आरोप लगाया कि ‘हम कट्टर हिंदू हैं, और हिंदुत्व को पुनः बहाल कर रहे हैं’, ऐसी स्वयं की छवि तैयार करने के लिए किसी ‘झूठे एनकाउंटर’ के जैसा है।” (संदर्भ: https://ia.rediff.com/news/2007/oct/27modi.htm) ‘तहलका’ के संकर्षण ठाकुर ने दावा किया कि, ‘बजरंगी ने कबूल किया कि उसने एक गर्भवती महिला का पेट फाड़कर उसका गर्भ बाहर निकाला’ (लिखित उत्तर में गर्भ का उल्लेख नहीं है)। वस्तुतः बजरंगी ने कहा कि ‘उसके उपर एफ़.आई.आर. में लगाया गया आरोप कहता हैं’ कि उसने एक गर्भवती महिला का पेट फाड़ा, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। संकर्षण ठाकुर ने बड़ा झूठ बोला। २७ अक्तूबर २००७ को इंटरनेट के एक लेख के अनुसार: “…(तहलका के) संपादकों में से एक शोमा चौधरी ने मृतकों की संख्या २५०० बताई। ध्यान दें कि मीडिया ने बजरंगी के बारे में यह लिख कर, कि अपहरण की गईं हिंदू दुल्हनों का बजरंगी ने फिर से अपहरण किया, उसे प्रसिद्ध कर दिया; इससे पहले बजरंगी एकदम अंजान व्यक्ति था। यह कुछ समय तक चल रहा था, ‘तहलका’ ने भी उसपर लंबे लेख लिखे। इन सब बातों से यही साबित होता है कि वो क्या कर रहे हैं, उन्हें अच्छी तरह से पता था। वास्तव में वे दंगों को पार्टी के जितने ऊँचे हो सके उतने वरिष्ठ नेताओं से जोड़ना चाहते हैं, अंत में सीधे मोदी तक पहुँच कर। ऐसा बिलकुल नहीं है कि सबूत उन्हें कैसे-भी मिले, और जल्दबाज़ी में उन्होंने इसकी घोषणा की। इन सब बातों की योजना अत्यंत बारीकी से और सावधानीपूर्वक बनाई गई थी। सवालों को काफ़ी ध्यानपूर्वक और बहुत पहले तैयार कर लिया गया था, ऐसा नहीं था कि किसी साहसी पत्रकार ने अचानक मिले मौक़े का इस्तमाल कर उत्स्फूर्त सवाल पूछे। … …यह स्टिंग राजनैतिक न होकर पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए की गई खोजी पत्रकारिता है, यह दावा मज़बूती से करते समय वो अंत में मोदी को वोट न देने की अपील हिंदुओं से करती हैं। ‘आज भारत में असली समस्या हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच नहीं है, बल्कि हिंदुओं और हिंदुओं के बीच है। आज मोदी किन चीजों के लिए खडे हैं इसके प्रकट प्रमाणों का सामना करते हुए भी यदि गुजरात के हिंदू फिर से मोदी का चुनाव करने जा रहे हैं, तो हमें इस बात पर ज़ोर देना होगा कि हिंदू होने का मतलब क्या हैं’। इसप्रकार मोदी को फँसाने के लिए ‘अकाट्य सबूतों’ से जो कुछ शुरू हुआ, वो एक नैतिक प्रार्थना के रूप में अंत हुआ। …अगर आप स्टिंग पर भरोसा नहीं करते हैं, तो हमारा लोकतंत्र दोषी है या आप कट्टर मतांध हिंदू हैं। इस बीच जिहादी दंतकथाओं में इस स्टिंग ने धीरे-धीरे अपना रास्ता बनाना प्रारम्भ कर दिया है, वैसी दंतकथाए जो चरमपंथी विचारधाराओं से आसानी से प्रभावित होने वाले युवाओं को आतंकवादी हमले करने के लिए तैयार करती है। और अगर कुछ नहीं तो भी स्टिंग ने कम-से-कम यह साबित किया कि गोधरा रेलगाड़ी का अग्निकांड यह कोई दुर्घटना नहीं थी। हालाँकि मध्य-पूर्व और पाकिस्तान के अख़बार अब भी पुराना राग अलाप रहे हैं…….. …उदाहरण के लिए, श्री आशीष खेतान (तहलका) के अनुसार प्रा. बंदूकवाला की क्रूरतम तरीक़े से हत्या की गई थी। लेकिन अभी हाल ही में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकात्मता पुरस्कार ग्रहण करने के लिए प्रा. बंदूकवाला रहस्यमय तरीक़े से उपस्थित हुए!…” (संदर्भ: http://barbarindians.blogspot.com/2007_10_01_ archive.html) स्टिंग ऑपरेशन के बाद बजरंगी ने कहा: “मेरा नाम कौन और क्यों ले रहा है, मुझे पता नहीं है। मैंने नरोड़ा पाटिया में किसी भीड़ का नेतृत्व नहीं किया था। स्टिंग ऑपरेशन में मुझे यह कहते हुए बताया गया है कि मैंने तलवार से महिला का पेट फाड़ दिया। लेकिन मैं यह बताने का प्रयास कर रहा था कि मेरे खिलाफ की दर्ज एफ़.आई.आर. ऐसा कहती हैं, और मैं ऐसा करने से इनकार करता हूँ।” (‘इंडियन एक्सप्रेस’, २६ अक्तूबर २००७) ‘तहलका’ और ‘आज तक’ अपने स्टिंग ऑपरेशन में इतने बहक गए कि फरवरी माह की तारीख़ों ने उन्हें परेशान कर दिया। श्री बी.पी. सिंघल ने ‘पायनियर’ के २९ अक्तूबर २००७ के अंक में ‘गुजरात का सच’ लेख में लिखा: “‘आजतक’ ने ‘मोदी ने तीन दिनों तक सेना को नहीं बुलाया’ इस राग को पुनः अलापा। टी.वी. चैनल ने प्रतिक्रिया के लिए मुझसे फोन पर संपर्क किया, तब मैंने सूत्र-संचालक को बताया कि गोधरा हत्याकांड २७ फरवरी को हुआ, हिंदुओं की प्रतिक्रिया २८ फरवरी को शुरू हुई, और १ मार्च को सुबह सेना ध्वज-संचलन कर रही थी…. उसने मुझे बीच में ही रोका और कहा, ‘बिलकुल; हमने भी यही कहा है कि २९, ३०, और ३१ तारीख़ को मोदीने कोई भी कार्यवाही नहीं की और हत्यारों को स्पष्ट तौर पर तीन दिन दिए…….’ तब मुझे उसे बीच में रोककर बताना पड़ा कि वह तारीख़ २८ फरवरी थी, और उस माह में २९, ३०, और ३१ तारीख़ें नहीं थी। फोन बेशक तुरंत काट दिया गया।” स्टिंग ऑपरेशन का प्रसारण होने के बाद, एक ब्लॉग लेखक ने ‘व्हाय मोदी शुड गो?’ (मोदी को क्यों जाना चाहिए?) शीर्षक से एक ब्लॉग लिखा था। उसमें उसने लिखा, “यह सच है कि अधिकांश आरोपियों ने सीधे मोदी का नाम नहीं लिया—वास्तव में उन्होंने इसमें खुद का नाम लिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘अकाट्य प्रमाण’ के तहलका के दावे को नमक-मिर्च लगा हुआ समझा जाना चाहिए; और इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि इनमें से एक भी सबूत न्यायालय में टिक नहीं पाएगा।” (संदर्भ: http://retributions.nationalinterest.in/why-modi-should-go/) और इसी लेखक ने मोदी के इस्तीफ़े की माँग की। मोदी के ख़िलाफ़ एक अत्यंत कठोर लेख में उसने इस बात को कबूला कि तहलका का ‘अकाट्य प्रमाण’ का दावा नमक-मिर्च लगाया हुआ है। इंटरनेट पर प्रकाशित एक लेख में यह भी लिखा गया था: “उस तथाकथित रहस्योद्घाटन, जिसे तहलका दावा करता है कि गुप्त कैमरे से क़ैद किया गया, के पात्रों को देखते हैं। बाबू बजरंगी– स्टिंग के पूरे मूलपाठ में इसने ख़ुद के अलावा दंगों के बारे में अन्य किसी को नहीं फँसाया। स्टिंग में सबसे महत्त्वपूर्ण गवाह के रूप में इसे माना गया है। जब एफ़.आई.आर. पहले ही दर्ज हैं, और बजरंगी एक महत्त्वपूर्ण आरोपी के रूप में पहचाने जा चुके हैं, तो इसमें आश्चर्य क्या है? राजेंद्र व्यास– गोधरा में उसने क्या किया इस पर इन्होंने विस्तार से बात की, और ख़ुद के अलावा अन्य किसी के सीधे सहभाग के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। रमेश दवे- गोधरा घटना के बारे में उसी सुर में बात करते हैं। ख़ुद का और राजेंद्र व्यास का ही नाम लेते हैं। तहलका के पत्रकार द्वारा बार-बार प्रेरित करने के बाद भी नरेंद्र मोदी के प्रत्यक्ष सहभाग के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। मदन चावल- पहले कहा कि उसने विहिंप नेताओं को देखा है। बाद में कहा कि नेताओं के नाम मालूम नहीं हैं, और फिर दावा किया कि श्री अतुल वैद, श्री भरत तेली को देखा था। गुलबर्ग घटना में ख़ुद का ही नाम लिया। अन्य किसी को फँसाया नहीं। प्रल्हाद राजू- गुलबर्ग घटना में ख़ुदका ही नाम लिया। तहलका द्वारा विहिंप और रा.स्व. संघ का नाम लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया, लेकिन इतना ही जवाब दिया कि ‘अतुल वैद ने मुझे सबके साथ जाने के लिए कहा’। अन्य किसी के बारे में और कुछ नहीं बताया। माँगीलाल जैन– गुलबर्ग घटना में ख़ुद को ही नाम लिया। श्री अतुल वैद और श्री भरत तेली के नाम लेने के लिए पत्रकार द्वारा बार-बार उकसाने के बाद केवल इतना कि कहा कि इंस्पेक्टर एरडा ने ‘तेरे पास २-३ घंटे हैं’ बताया। प्रकाश राठोड, सुरेश रिचर्ड– नरोड़ा पाटिया की घटना में ख़ुद का नाम लेते हैं। किसी दूसरे का नाम नहीं लिया। घटनास्थल पर मोदी के दौरे का अत्यंत संक्षिप्त उल्लेख। धीमंत भट– शीर्षकों के अनुसार यह विचार मोदी का था। जबकि विस्तारपूर्वक लिखित उत्तर के अनुसार यह स्थानीय नेताओं की बैठक थी और किसी का भी नाम नहीं है। उस व्यक्ति ने न सीधा संदर्भ, और न सीधा बयान दिया- मोदी या अन्य किसी के बारे में। स्वयं का नाम लिया है। दीपक शाह– ख़ुद का और धीमंत का नाम लिया। कोई ठोस जानकारी नहीं दी। केवल स्थानीय विधि समूह गुट के वकीलों के नाम लिए। अनिल पटेल– दूसरों की तुलना में बेहतर करते हैं। उन्होंने ख़ुद का नाम तो लिया ही, साथ ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भी नाम लिया। उनके पाँच पृष्ठों के लिखित स्टिंग विवरण में पहले के आरोपी और जमानत पर रिहा हुए लोगों के नाम हैं। उनके कानों पर पड़ी बातचीत से श्री प्रवीण तोगड़िया के साथ कुछ कहने की वे बात करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकलता है कि दंगों का कोई षड्यंत्र था। आरोपियों को जमानत पर कैसे रिहा किया जाए, इसके सुझावों पर चर्चा चल रही थी। ये सब लोग आरोपी हैं, और इन सभी ने किसी दूसरे का नाम न लेते हुए केवल ख़ुद के नाम लिए है। यह हमारे लिए ‘तहलका’ है! और अब कुछ अविश्वसनीय दावे—बम और रॉकेट लॉञ्चर—जिनका कभी भी उपयोग नहीं किया गया। हरेश भट– गोधरा के विधायक, दंगों के एक आरोपी। बंदूकें और अन्य हथियार बाहर के राज्यों से मँगवाने का अविश्वसनीय दावा करते हैं। इस दावे पर विश्वास करना मुश्किल है, क्योंकि दूर पंजाब या उत्तर प्रदेश से किसी ट्रक को गुजरात पहुँचने के लिए कई दिन लगते हैं। अपने सूची में वे सिर्फ राज्य जोड़ते रहें- बिहार, मध्यप्रदेश। धवल जयंती पटेल– ‘डायनामाइट फ़ैक्ट्री’ के बारे में कहा, बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन किसी एक भी विशेष घटना के बारे में, जिसमें बम का उपयोग किया गया हो, कुछ नहीं बता सके। अनिल पटेल– इनका लिखित विवरण तो अत्यंत हास्यास्पद है। पत्रकार ने केवल एक ही सवाल पूछकर इसके मुँह में शब्द डालने का प्रयास किया और इसने ‘हाँ’ में जवाब दिया: डाइनामाइट के कारख़ाने थे, और वहाँ से विस्फोटक अहमदाबाद भेजे जा रहे थे। पूरी तरह सनसनीख़ेज, लेकिन जहाँ बम का उपयोग किया गया हो ऐसी एक भी विशिष्ट घटना का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। केवल खोखली गप्पें। क्या ‘तहलका’ से इससे अधिक और उम्मीद की जा सकती है?…..” (संदर्भ: http://offstumped.wordpress.com/2007/10/26/tehelka-expose-on-gujarat-riots-offstumped- reaction/) यह मालूम होने के बावजूद कि बाबू बजरंगी ने कहा कि “एफ़.आई.आर. आरोप लगाती हैं कि मैंने गर्भवती महिला का पेट फाड़ा, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया” तहलका ने यह कहा कि “मैंने उसका पेट फाड़ा, इस बात को बजरंगी ने माना”। इससे स्पष्ट है कि येन-केन-प्रकारेण याने किसी भी तरह से उन लोगों को जबरदस्ती दोषी ठहराना तहलका का उद्देश्य था, और सच्चाई को दिखाना नहीं। अब हमारे पास डॉ. जे.एस. कनोरिया की रिपोर्ट है, जिसमें कहा गया है कि उस महिला के गर्भाशय को निकाला ही नहीं गया था। इससे यह साबित होता है कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं थी। अतः बजरंगी यदि बढ़ाई मारते हुए भी कहता कि ‘मैंने ऐसा किया’, तो भी ‘तहलका’ ने इसकी जाँच करके सच्चाई का पता लगाना चाहिए था कि क्या वह सच है या वो सिर्फ़ डींग मार रहा है; और डॉ. कनोरिया की रिपोर्ट से यह बात तो स्पष्ट हो जाती कि श्री बजरंगी शेख़ी बघारते हुए झूठ बोल रहा था। लेकिन यहा तो वह डींग भी नहीं मार रहा था, बल्कि पूरी तरह उस अपराध को सिरे से नकार रहा था। यह ‘तहलका’ का एक बहुत बड़ा अपराध है। वर्ष २००८ से तहलका के दावे के बारे में हम जो कुछ कह रहे हैं, एस.आई.टी. की अंतिम रिपोर्ट से उसकी पुष्टि हुई है। एस.आई.टी. रिपोर्ट पृष्ठ २७३–२७४ पर कहती है: “इस संदर्भ में, यहाँ इस बात को भी जोड़ा जाना चाहिए कि भूतपूर्व विधायक श्री हरेश भट और श्री बाबू बजरंगी (नरोड़ा पाटिया की घटना के आरोपी) दोनों ने इस बात को माना है कि सीडी परके बयान और आवाज़ उन्हीं के है। श्री हरेश भट ने बताया कि आशीष नामक एक व्यक्ति ने आकर उनसे कहा कि हिंदुत्व विषय पर उसे एक पुस्तक लिखनी है, और इसके लिए उसे वो (भट) कुछ मसालेदार जानकारी दे, जिससे वह अपने मिशन में सफल हो सके। उन्होंने आगे कहा कि आशीष उन्हें अहमदाबाद और गोधरा के उनके घर में एक महीने में कम-से-कम ७–८ बार मिला और जब गुजरात के दंगों की बात चली तो उन्होंने (भट ने) उसे (आशीष को) एक काल्पनिक कहानी सौंपी, क्योंकि आशीष को अपनी पुस्तक के लिए कुछ मसालेदार जानकारी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि ‘मेरी ख़ुद की गन फ़ैक्ट्री थी, जहाँ डीज़ल बम और पाइप बम बनाए जा रहे थे, जिन्हें हिंदुओं के बीच वितरित किया गया; पंजाब से दो ट्रक तलवारें मँगवाई गईं और हिंदुओं को दी गईं; उनकी फ़ैक्ट्री में एक रॉकेट लॉञ्चर भी बनाया गया था, उसमें गन पाउडर भरा गया था; और एक ५९५ स्थानिक बम का विस्फोट किया गया, और सीबीआई जाँच की गई’, यह सब जानकारी पूरी तरह से ग़लत और बेबुनियाद है। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि उनका कहना कि नरेंद्र मोदी ने खुलेआम कहा कि ‘आपके पास कुछ करने के लिए तीन दिन हैं, उसके बाद समय देना संभव नहीं होगा’, यह एक मनगढ़ंत कहानी है और वास्तव में मोदी ने उनसे ऐसा कुछ कहा ही नहीं था। श्री बाबू बजरंगी ने कहा कि श्री आशीष खेतान ने उन्हें एक लिखित विवरण दिया और उन्होंने इसे केवल पढ़कर सुनाया, और इसमें कोई भी बात सही नहीं थी। इसके अलावा मोदी ने उन्हें तीन दिनों का समय कब और कैसे दिया, इस बारे में श्री आशीष खेतान ने कोई सवाल नहीं किए थे। श्री हरेश भट की गन फ़ैक्ट्री और नरेंद्र मोदी ने तीन बार न्यायाधीश बदलने की बात कल्पनाशक्ति कितनी भी खींची जाए तो भी बिलकुल मान्य नहीं की जा सकती, क्योंकि ऐसी कोई गन फ़ैक्ट्री पुलिस को नहीं मिली; और न्यायाधीशों का स्थानांतरण करना नरेंद्र मोदी के लिए संभव नहीं है, क्योंकि यह मामला गुजरात उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में है। श्री बाबू बजरंगी के रिकॉर्डेड बयान में कई तथ्यात्मक त्रुटियाँ हैं। जैसे, श्री बजरंगी ने कहा कि नरोड़ा पाटिया में ७००- ८०० शव पड़े थे, और पुलिस आयुक्त ने पुलिसकर्मियों को इन शवों को अहमदाबाद के अलग-अलग ठिकानों पर फेंकने के निर्देश दिए थे दो ताकि बाद में इन शवों के बारे ख़ुलासा करने में कोई समस्या न हो। यह पूरी तरह ग़लत है, क्योंकि नरोड़ा पाटिया में केवल ८४ शव मिले थे और ११ लोग लापता थे।” एस.आई.टी. ने पृष्ठ सं. २८७ पर कहा है: “तहलका ने किए श्री बाबू बजरंगी के स्टिंग ऑपरेशन के संदर्भ में जयपुर स्थित एफ़.एस.एल. (फोरेंसिक लैब) ने यह पुष्टी की है कि तहलका कि सीडी में आवाज़ नरोड़ा पाटिया के आरोपी श्री बाबू बजरंगी की ही है….. श्री बाबू बजरंगी ने इस स्टिंग ऑपरेशन में जिन बातों का ख़ुलासा किया है, उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा न्यायालय से बाहर की स्वीकारोक्तियाँ कहा जा सकता है। लेकिन श्री बाबू बजरंगी द्वारा दिए गए बयानों के समर्थन में कोई सबूत (‘corroborative evidence’) नहीं हैं। इसके विपरीत श्री बाबू बजरंगी द्वारा किए गए दावे झूठे पाए गए हैं।” इतना ही नहीं। गोधरा हत्याकांड के लिए भी ‘तहलका’ ने काल्पनिक ‘उकसावों’ की कहानियाँ गढ़ने का प्रयास किया, और कहा कि वह ‘उत्स्फूर्त’ था, और मृत रामसेवकों का अपमान किया यह कह कर की उन्होंने एक मुस्लिम लड़की को अगवा करने के कोशिश की (गंदे झूठे आरोप)। उन्होंने गुजरात सरकार की कड़ी आलोचना की यह कहने के लिए कि गोधरा की घटना पूर्वनियोजित थी। दो हज़ार मुस्लिम इतनी शीघ्रता से, सुबह आठ बजे सिग्नल फालिया के पास कैसे पहुँचे; उनके पास पेट्रोल बम, एसिड बम और तलवारें कैसे पहुँचीं; गाड़ी को दोनों तरफ़ से कैसे घेरा गया जिससे रामसेवक जलते हुए डिब्बे से ख़ुद को बचा नहीं पाए, इतना पेट्रोल कहा से आया जो गाडी जलाने के लिए लगा, जबकि गोधरा स्टेशन पर गाड़ी केवल पाँच मिनट रुकती है; इन सब तथ्यों का ख़ुलासा तहलका नहीं कर सका। फिर भी, केवल चर्चा करने के लिए, अगर हम यह मान भी ले कि तहलका को बयान देने वालों में से कई लोगों की स्वीकारोक्तियाँ वाक़ई में सच हैं, तो गुजरात दंगे ‘नरसंहार’ कैसे होते हैं, जैसा तहलका ने दावा किया है? गुजरात दंगों में २५४ हिंदुओं को किसने मारा (जो संख्या यू.पी.ए. ने संसद में दी थी)? यह स्पष्ट है कि केवल भाजपा और नरेंद्र मोदी को बदनाम करने में तहलका को रुचि है, सच बताने में नहीं। यू.पी.ए. सरकार ने दिए आकड़े हैं जिनके अनुसार सभी लापता लोगों को मृत मानते हुए मृतकों की संख्या ११७१ है। इसके बावजूद तहलकाने दावा किया कि दंगों के पहले तीन दिन में २५०० मुस्लिमों की हत्याएँ हुईं, जैसे की इन तीन दिनों के बाद और अधिक मुस्लिम मारे गए, और जैसे एक भी हिंदू नहीं मारा गया! ‘गोधरा’ के बाद के दंगों में दंगे करने, और हिंदुओं की हत्या करने के लिए ८० मुस्लिमों को दोषी ठहराया गया हैं। मुस्लिमों को दोषी पाया जाना साबित करता है कि मुस्लिम भी आक्रामक थे। मुस्लिम दोषी पाए जाने के बाद ‘तहलका’ इन दंगों को ‘नरसंहार’ कैसे कह सकता हैं? पूरे स्टिंग ऑपरेशन में केवल दो मामलों की चर्चा की गई है: एहसान जाफ़री मामला और नरोड़ा पाटिया मामला। दंगों के अनेक मामले हैं: अहमदाबाद के पास हिम्मतनगर, अहमदाबाद में दानिलीमड़ा, सिंधी मार्केट, भांडेरी पोल, और गुजरात के अन्य दंगे जिनमें मुस्लिमोंने हिंदुओं पर हमले किए। तहलकाने उनको सुविधापूर्वक नज़रअंदाज़ किया। गुजरात दंगों के संबंध में तहल्का ने जो झूठ बोला है, उसके लिए शायद उन लोगों को जेल की सज़ा मिलना उचित हैं; और नरेंद्र मोदी, संघ परिवार, और भारतीय सुरक्षा बलों को काफ़ी बड़ा मुआवज़ा देना उचित होगा, क्योंकि इन झूठों के कारण निर्दोष मुस्लिम कट्टरपंथी बने और बन रहें हैं और भारत के साथ-साथ नरेंद्र मोदी और संघ परिवार की छवि भी धूमिल हुई है।

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