chapter-6

अध्याय ६ मुस्लिमों पर हमले

यदि बाहर से नज़र डालें तो ऐसा लग सकता है कि यह पुस्तक हिंदुओं पर हुए हमलों को रेखांकित करने और राजनैतिक विरोधियों, अंग्रेज़ी मीडिया के पक्षपाती पत्रकार और तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं के झूठों का पर्दाफ़ाश करने के लिए लिखी गई है। परंतु इस तरीक़े से लेबल लगाना या इस प्रकार ऊपर-ऊपर से अवलोकन करना भी एक बड़ी ग़लती होगी। हमें यह सूचित नहीं करना है कि गुजरात दंगों में केवल हिंदू ही पीड़ित हुए। दंगों के पहले तीन दिनों में और बाद में भी हुए हिंसाचार में मुसलमान भी पीड़ित हुए। इस अध्याय में हम मुस्लिमों पर हुए हमलों को देखते हैं। प्रतिक्रियात्मक दंगों के कारणों की चर्चा हम दूसरे और तीसरे अध्याय में विस्तार से कर चुके हैं, जैसे कि (१३ दिसम्बर २००१ को हुआ) संसद पर हमला, मशरूम की तरह बढ़ने वाले मदरसे, इनके कारण गुस्सा, इत्यादि। परंतु कुछ अन्य कारण भी थे। एक मुख्य कारण था एक ख़बर, कि गोधरा में मुसलमानों ने तीन हिंदू युवतियों का अपहरण करने के बाद उनके साथ बलात्कार करके उनके स्तनों को काट डाला, और उन्हें मार डाला। न्या. तेवाटिया समिति ने अपने रिपोर्ट में कहा कि ‘यह ख़बर सच नहीं लगती’। परंतु २७ फरवरी को इसके सही या झूठ होने का पता लगाना संभव नहीं था, क्योंकि कोई भी हिंदू लड़की यह नहीं कहेगी की उसका बलात्कार हुआ है, और जले लोगों के शरीर का पोस्टमोर्टेम करके, मृतकों का मरने से पहले बलात्कार हुआ था या नहीं, यह समझने में कुछ समय लगता। नरेंद्र मोदी के कट्टर-विरोधी साप्ताहिक ‘आउटलुक’ ने भी अपने ११ मार्च २००२ के अंक में [२८ फरवरी २००२ तक का वार्तांकन करते समय] ख़बर दी थी कि: “हालाँकि (गुजरात) सरकार ने अफ़वाहों का खंडन किया, परंतु जो नुकसान होना था वह तो हो गया था।” इसका मतलब यह है कि गुजरात सरकार ने २८ फरवरी को ही इतनी शीघ्रता से इस अफ़वाह का खंडन किया कि ‘आउटलुक’ को इस ख़बर को ११ मार्च के अंक (२८ फरवरी तक की ख़बरों के लिए) में ही शामिल करने के लिए पर्याप्त समय मिल गया, हालाँकि इस बात की पुष्टि होने में कई दिन लगे। गोधरा हत्याकांड के कारण लोगों के मन में अकल्पनीय क्रोध भड़का हुआ था। दंगों के लिए केवल किसी संघ परिवार के संगठन को दोषी ठहराया नहीं जा सकता था। अगर इनमें से कोई शामिल था भी, तो यह संयोग था। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने ९ अगस्त २००३ को दी ख़बर में कहा कि २५ कांग्रेस नेताओं पर भी ‘गोधरा’ के बाद हुए दंगों में मुस्लिमों पर हुए हमलों में शामिल होने का आरोप है। गुजरात दंगों में घटनास्थल पर दौरा करके स्थिति का अध्ययन करने के लिए “द काउंसिल फॉर इंटरनेशनल अफ़ेयर्स एंड ह्यूमन राइट्स” संस्था ने एक समिति भेजी थी। इस काउंसिल के उपाध्यक्ष और कोलकाता तथा पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायमूर्ति डी.एस. तेवाटिया इस समिति के अध्यक्ष थे। इस समिति में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील डॉ. जे.सी. बत्रा, चंडीगढ़ के शिक्षाविद डॉ. कृष्णसिंह आर्य, ‘जनसत्ता’ (दिल्ली) इस अख़बार के भूतपूर्व सहायक संपादक श्री जवाहरलाल कौल, हिसार के जी.जे. विश्वविद्यालय के मीडिया स्टडीज़ के फैकल्टी प्रा. बी.के. कुथियाला का समावेश था। यह समिति १ अप्रैल २००२ को गुजरात के लिए रवाना हुई और ७ अप्रैल २००२ को दिल्ली वापिस लौट गई। समिति की ‘गोधरा एंड आफ़्टर’ रिपोर्ट ने कहा– “… ३.विशेष तौर पर मार्च के पहले सप्ताह में हिंदू समूहों में निम्न (ग़रीब) वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग और उच्च- मध्यम वर्ग के लोग शामिल थे। ४. देश में पहली बार आगजनी और लूटपाट में उच्च मध्यम वर्ग के हिन्दुओं का सहभाग देखा गया। ५. ऐसा लगा कि हिंदुओं के समूहों ने मुस्लिमों की कुछ चुनिंदा संस्थाओं की संपत्ति नष्ट करने में अधिक रुचि दिखाई। यह भी ख़बर थी कि मुस्लिमों के स्वामित्व परंतु हिंदू नामों वाले उपहारगृहों की शृंखला को निशाना बनाया गया, क्योंकि माना जा रहा था कि इन उपहारगृहों में खाड़ी (गल्फ़) देशों से बड़े पैमाने पर आर्थिक निवेश किया गया है, जिससे लोगों में यह भावना थी कि इस कारण प्रतिस्पर्धी हिंदू उपहारगृह मुश्किल में हैं। ६. अध्ययन-दल को इस दौरे में एक और नई घटना की जानकारी मिली, वह थी– संतप्त लोगों के समूहों में महिलाओं की बड़े पैमाने पर उपस्थिति और प्रत्यक्ष भागीदारी।” मुस्लिमों पर हमले २८ फरवरी को अहमदाबाद, वडोदरा, साबरकांठा ज़िलों में, और उसके इतिहास में पहली बार, गांधीनगर शहर में भारी मात्रा में लोगों के समूहों द्वारा हमले शुरू हुए। दूसरे दिन पंचमहल, मेहसाणा, खेड़ा, जूनागढ़, बनासकांठा, पाटण, आणंद और नर्मदा ज़िलों (जो उस समय अधिक ग्रामीण भाग थे) में भी हिंसाचार फैल गया। अगले दो दिनों में भरूच, राजकोट और सूरत शहर भी हिंसा से प्रभावित हुए। मुस्लिमों पर किए गए हमलों को समझने के लिए ‘इंडिया टुडे’ के १८ मार्च २००२ के अंक में प्रकाशित रिपोर्ट उपयुक्त है। यह रिपोर्ट इसप्रकार है: “…इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अपने ही क्षेत्र में अंधाधुंध हमले को अंजाम देने में लोग संकोच करेंगे, तय किए गए ठिकानों पर हमले करने के लिए बाहरी लोगों की सहायता ली गई। अधिकांश ठिकानों पर स्थानीय लोगों ने इन हमलों का विरोध तो नहीं ही किया, बल्कि ‘दूसरों’ के बारे इतनी नफ़रत थी कि उन्होंने दंगाइयों को हमलों के लिए प्रोत्साहित किया। जान-बूझकर मुस्लिम समुदाय के आर्थिक फ़ायदों को नष्ट करने का प्रयास किया गया। स्पष्ट मुस्लिम नामों वाली दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर तो हमले किए ही गए, लेकिन साथ-साथ हिंदू और मुस्लिम भागीदारी वाले और ‘आशीर्वाद’ या ‘सैफ़रन’ जैसे नामों वाले उद्योगों-व्यवसायों पर भी हमले किए गए, जिससे उनका सुनियोजित तरीक़ा दिखता है। उद्योग विशेष के भागीदार या भागधारकों की जानकारी लेकर हमलों को अंजाम दिया गया। इनमें एलिसब्रिज के पास एक मेडिकल स्टोर, गांधीनगर रोड पर एक होंडा फ्रेंचायजी और हलोल के ओपल कार का वहन करने वाले ट्रक चालक का समावेश था। हिंसाचार के पहले छह दिनों में उद्योग- धंधों को प्रतिदिन क़रीब ५०० करोड़ का नुकसान हुआ”। यह रिपोर्ट आगे कहता है, “२७ फरवरी के गोधरा कांड के बाद शुरू हुई प्रतिशोध की यात्रा में, पूरे राज्य में ६०० से अधिक लोग मारे गए हैं और अकेले अहमदाबाद में २० हज़ार लोग बेघर हो गए हैं। अनेक मस्जिदों और दरगाहों को या तो जला दिया गया या क्षतिग्रस्त कर दिया गया, जबकि इनमें से अनेक को हुल्लडिया हनुमान मंदिरों या गोधरा मृतकों के सम्मान में गोधड़िया मंदिरों में तब्दील कर दिया गया। आकाश में लहराने वाले भगवा ध्वज एक विकृत विजय का संकेत देते हैं। हालाँकि इससे पहले गुजरात का इतिहास सांप्रदायिक दंगों से भरा हुआ है, लेकिन इस बार हुए दंगों के कारण गुजरात के ‘सहनशील समुदाय’ की भावना पूरी तरह नष्ट हो गई है”। … (End of preview) The above is the beginning of the Chapter “Attacks on Muslims”. To read the full chapter, read the book “Gujarat Riots: The True Story”. http://www.amazon.in/Gujarat-Riots-True-Story- Truth/dp/1482841649/ref=sr_1_1?ie=UTF8&qid=1426094521&sr=8- 1&keywords=gujarat+riots+deshpande

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