chapter-5

अध्याय ५ हिंदुओं पर हमले

गोधरा हत्याकांड के बाद के गुजरात दंगों को देश के अंग्रेज़ी मीडिया और टी.वी. चैनलों ने वर्ष १९८४ में नई दिल्ली और देश के अन्य स्थानों पर भड़के सिक्ख विरोधी दंगों की तरह ही मुस्लिम-विरोधी दंगों के रूप में प्रदर्शित किया। वार्तांकन ऐसा किया कि जैसे इन दंगों में सुनियोजित तरीक़े से मुस्लिमों को निशाना बनाया गया, केवल मुस्लिमों पर ही हमले हो कर केवल मुस्लिम ही मारे गए। यह मीडिया के कुछ पूर्वाग्रह दूषित मानसिकता वाले लोगों ने जान-बूझकर (‘जान-बूझकर’ पर ध्यान दीजिए) की शरारत थी। इस अध्याय में हम गुजरात दंगों के दूसरे पक्ष अर्थात् हिंदुओं पर हुए हमलों की घटनाओं को देखेंगे। पुलिस रिकॉर्ड्स के अनुसार ३ मार्च २००२ के बाद मुस्लिमों ने गुजरात में १५७ दंगे शुरू किए। (संदर्भ: रेडिफ डॉट कॉम पर दिनांक ११ मार्च २००३ को फ्रांसिस गौशियर का लेख http://www.rediff.com/news/2003/mar/11franc.htm) भाजपा और नरेंद्र मोदी की कट्टर विरोधी यू.पी.ए. सरकार ने ११ मई २००५ को संसद में एक लिखित जवाब में मृतकों के आँकड़े दिए थे, जिनके अनुसार २००२ के गुजरात दंगों में ७९० मुस्लिम और २५४ हिंदू मारे गए। इन २५४ हिंदुओं को किसने मारा? मुस्लिमों ने हिंदुओं पर किए हमलों के संबंध में इस लेखक ने कुछ स्वघोषित धर्मनिरपेक्षतावादियों से चर्चा करने पर उसे दिलचस्प जवाब मिले। अहमदाबाद तथा अन्य जगहों की मुस्लिम बहुसंख्यक बस्तियों में अल्पसंख्या में (कई बार बहुत ही छोटी संख्या में, यानी ‘microscopic minority’) रहने वाले हिंदू, जिनमें से अनेक दलित थे, पर मुस्लिमोंने हमले किए, उनकी हत्याएँ कीं और उन्हें बेघर कर दिया, इन हिंदुओं ने भीषण पीड़ा झेली। केवल यही नहीं, मुस्लिमों ने अन्य भागों में भी, जैसे अहमदाबाद के सिंधी मार्केट और भंडेरी पोल भागों में, हिंदुओं पर हमले किए। २८ फरवरी को अहमदाबाद के नरोड़ा पाटिया, गुलबर्ग सोसायटी और अन्य स्थानों पर मुस्लिमों पर हमले होने के दूसरे ही दिन, १ मार्च २००२ को मुस्लिमों के जवाबी हमले शुरू हुए। मुस्लिम आक्रमण की इन घटनाओं की जानकारी सुनने के बाद अपने आपको पंथनिरपेक्षतावादी कहने वाले इन लोगों ने इस लेखक से कहा: “यह तो स्वाभाविक और अपरिहार्य है। यदि हिंदू नरोड़ा पाटिया में उनपर हमला करके उन्हें मारेंगे, तो स्वाभाविक है कि मुस्लिम बहुसंख्य क्षेत्र में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर वो अगले दिनों में हमले करेंगे ही।” इस प्रतिक्रिया के दो महत्त्वपूर्ण अर्थ निकलते हैं: 1) मुस्लिमों ने हिंदुओं पर हमले करने पर वह ‘स्वाभाविक’ और ‘अपरिहार्य’ होता है, क्योंकि २८ फरवरी को नरोड़ा पाटिया में हिंदुओंने मुस्लिमों पर हमला किया था। परंतु गोधरा में हिंदुओं को जीवित जलाने के कारण नरोड़ा पाटिया का हमला ‘स्वाभाविक’ और ‘अपरिहार्य’ नहीं था, और न ही २८ फरवरी की सुबह पहले नरोड़ा पाटिया में हुई २ हिंदुओं की हत्याओं से! 2) जब वो कहते हैं कि मुस्लिमों ने किए हमले ‘स्वाभाविक’ और अपरिहार्य’ हैं, तब वे इस बात को जानते व मानते हैं कि गोधरा के बाद भी मुस्लिमों ने हिंदुओं पर हमले किए। अगर उन्हें पता है कि यदि दंगे कुछ हफ़्तों तक चलते रहे तो मुस्लिम ‘अपरिहार्य’ रूप से हिंदुओं पर हमले करेंगे उनके (मुस्लिम) क्षेत्रों में, और अन्य क्षेत्रों में भी, तो वे इस तरह का सरासर झूठ क्यों कहते हैं कि गुजरात दंगों में एकतरफ़ा मुस्लिमों की हत्याएँ हुईं, और हिंदुओं, ख़ासकर दलितों पर हुए हमलों की ओर वे पूरी तरह अनदेखी क्यों करते हैं? १ मार्च, अर्थात् दंगों के दूसरे दिन मुस्लिमों के जवाबी हमले शुरू हुए। जैसा कि हमने तीसरे अध्याय में देखा, ‘द हिंदू’ ने २ मार्च २००२ के अंक में कहा कि: “गुरुवार (२८ फरवरी) को एक समुदाय पूरी तरह से मार खा रहा था, परंतु आज (१ मार्च को) अल्पसंख्यक समुदाय ने जवाबी हमला करने के कारण स्थिति और बिगड़ गई। बापूनगर, गोमतीपुर, दरियापुर, शाहपुर, नरोड़ा (बड़ी मुस्लिम जनसंख्या वाले क्षेत्र) और अन्य भागों में एक दूसरों पर पत्थरबाज़ी करने वाले दोनों समुदायों पर पुलिस की मौजूदगी का कोई असर नहीं हुआ, न ही अन्य स्थानों पर जहां से गोलीबारी की ख़बरे आई हैं।… अधिकृत सूत्रों के अनुसार तटबंदी शहर के जमालपुर क्षेत्र में एक प्रसिद्ध मंदिर पर किए जाने वाले प्रतिशोधात्मक हमले को समय पर पुलिस के पहुँचने से नाकाम कर दिया गया।” ‘इंडियन एक्स्प्रेस’ के २ मार्च २००२ के अंक से भी सूचित होता हैं कि मुस्लिम आक्रामक थे। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने उसी दिन कहा: “(१ मार्च को) जुहापुरा, कालूपुर, दरियापुर, शाहपुर (सब अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले क्षेत्र) जैसे क्षेत्रों में (मुसलमानों के) जवाबी हमलों के स्पष्ट संकेत दिख रहे थे।” अहमदाबाद में दूसरे दिन हिंदू-मुस्लिम इनके बीच ‘घमासान संघर्ष’ हुए (pitched battles) और मुसलमान भी हिंदुओं पर पत्थर फेंक रहे थे। अहमदाबाद के जमालपुर क्षेत्र में मुस्लिमों ने एक प्रसिद्ध मंदिर पर हमला किया। एस.के. मोदी ने अपने पुस्तक “गोधरा—द मिसिंग रेज” (प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, २००४) में कहा है कि “हिंदू समुदाय ७२ घंटों तक बेक़ाबू था…(पृ ३५)… हालाँकि २८ फरवरी की तुलना में १ मार्च को हिंसाचार काफ़ी कम था (पृ ६२)”। लेकिन सच तो यह है कि हिंदू समुदाय केवल एक दिन, अर्थात् २८ फरवरी को अनियंत्रित हुआ था। अगले दो दिनों में भी हिंदुओं ने मुस्लिमों पर हमले किए, परंतु मुस्लिमों ने भी हिंदुओं पर हमले किए, कम-से-कम अहमदाबाद में तो। ‘इंडिया टुडे’ ने अपने १५ जुलाई १९८५ के अंक में १९८५ के गुजरात दंगों पर रिपोर्टिंग करते हुए लिखा था: “… अहमदाबाद का तटबंदी वाला शहर (‘walled city’), जहां कोई १० लाख हिंदु और मुसलमान लगभग समान अनुपात में रहतें हैं, एक टिंडर बॉक्स है जहां लगभग लगातार, अबाधित रूप से लगाए गए कर्फ़्यू ने भी जुनून को कम नहीं किया हैं”। वर्ष २००२ में यहाँ की जनसंख्या १५ लाख तक कमोबेश समान अनुपात में बढ़ी होगी। इसीलिए जाहिर सी बात है कि दंगों के दूसरे दिन मुसलमान इस इलाके में जवाबी प्रतिकार करेंगे और ठीक वैसा ही हुआ। तटबंदी शहर (‘walled city’) में दंगे २८ फरवरी २००२ को शुरू नहीं हुए, जिसकी पुलिस को अपेक्षा थी, लेकिन २८ फरवरी की हिंसा के बाद अगले दिन वहा दंगे हुए। ‘इंडिया टुडे’ ने ११ मार्च २००२ के अंक में लिखा: “अहमदाबाद में (२८ फरवरी) को महात्मा गांधी के नाम से नामकरण किए गए बापूनगर में दोनों समुदाय के २००० से भी अधिक लोग आपस में भिड़ गए थे। दोनों गुटों के पास तलवारें, लाठियाँ, और विस्फोटक थे; मृतकों की संख्या अज्ञात थी”। यह घटना २८ फरवरी, अर्थात् गोधरा हत्याकांड के दूसरे दिन की है। जब सारा मीडिया मुस्लिमों पर ही अत्याचार किए जाने की इकतरफ़ा ख़बरें दे रहा था, उस समय ‘इंडिया टुडे’ ने इस बात को दर्ज़ किया कि बापूनगर में दो हज़ार से अधिक मुस्लिम उतनी ही संख्या में हिंदुओं के विरोध में संघर्ष कर रहे थे। कुछ माह बाद रेडिफ डॉट कॉम ने (१६ सितंबर २००३) पी.टी.आई. का एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें कहा था— “गुजरात दंगों की जाँच: ‘मुस्लिमों ने हिंदुओं पर हमला किया’ एक महिला ने मंगलवार (१६ सितम्बर २००३) को द्विसदस्यीय नानावटी आयोग के समक्ष बयान देते समय आरोप लगाया कि गोधरा के बाद के दंगों में अहमदाबाद के बापूनगर क्षेत्र में एक कांग्रेस नगरसेवक के नेतृत्व में सशस्त्र मुस्लिमों ने हिंदुओं पर हमला किया। पटेल नगर निवासी सुधा पटेल ने आयोग के समक्ष बयान देते समय कहा कि: ‘विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित बंद (२८ फरवरी २००२) के दौरान सशस्त्र मुस्लिम समुदाय ने हमारी बस्ती पर हमला किया… उन्होंने तलवार से एक व्यक्ति की आँख फोड़ दी और उसे ट्रक के नीचे कुचल दिया’…। न्या. जी.टी. नानावटी (सेवानिवृत्त) और न्या. के.जी. शाह (सेवानिवृत्त) के समक्ष बयान देते समय श्रीमती पटेल ने बताया कि समूह में अधिकांश लोगों ने अपने चेहरे ढँके (masked their faces) होने के बाद भी उन्होंने नगरसेवक तौफ़ीक़ ख़ान पठान और उसके बेटे झुल्फी को १ मार्च को पहचान लिया। उन्होंने आगे बताया कि उनकी आँखों के सामने ही इस समूह को रोकने का प्रयत्न करने वाले एक व्यक्ति का सिर समूह ने धड़ से अलग कर दिया, और स्थानीय लोगों के सामने कटा हुआ सिर दिखाकर कहने लगे ‘हमने तुम्हारे व्यक्ति को मार डाला’। उन्होंने कहा कि पटेल नगर के बच्चे अभी भी आतंकित हैं, और उन्होंने समाज विरोधी गुंडों से बचाने के लिए सुरक्षा की माँग की…”। (संदर्भ: https://us.rediff.com/news/2003/sep/16godhra.htm) इन गवाहों के बयानों से, और ‘इंडिया टुडे’ के ११ मार्च २००२ के अंक की ख़बर से लगता है कि अहमदाबाद के बापूनगर में २८ फरवरी २००२ को ही मुस्लिमों ने दंगे शुरू करके हिंदुओं पर हमले किए। रेडिफ़ डॉट कॉम ने १९ सितंबर २००३ को “गुजरात दंगों की जाँच; ‘वतवा में मुस्लिमों ने दहशत फैलाई’” इस शीर्षक के साथ दी एक अन्य ख़बर में कहा: “एक व्यक्ति ने गुजरात दंगों की जाँच करने वाले आयोग के समक्ष शुक्रवार (१९ सितम्बर २००३) को बताया कि ‘अल्पसंख्यक समुदाय के सशस्त्र समूह ने उसके बेटे को भीड़ से खींचा और मार डाला’। न्या. जी.टी. नानावटी (सेवानिवृत्त) और न्या. के.जी. शाह (सेवानिवृत्त) के समक्ष बयान देते समय अहमदाबाद के वतवा के निवासी डाह्यालाल रावल ने बताया कि ‘मेरा बेटा मेहुल १ मार्च को धर्मभूमि सोसायटी में उसके घर गया था, परंतु तब से अब तक उसका कुछ अता-पता नहीं है। बुरहानी सोसायटी के पास से मेहुल को मुस्लिम समुदाय द्वारा अगवा कर लिया गया और मेरी जानकारी के अनुसार उसे मार दिया गया होगा।’ अन्य एक गवाह दशरथ पटेल ने आयोग के समक्ष बयान देते हुए कहा कि पिछले वर्ष २८ फरवरी को मुस्लिम समुदाय ने उनकी हाउसिंग सोसायटी पर हमला करके उनके २६ घरों को आग के हवाले कर दिया, और एक मस्जिद के ऊपर से उन्होंने की गोलीबारी में सतीश और अमित पटेल नाम के दो लोग मारे गए। उन्होंने कहा कि मेहुल को इसी समुदाय द्वारा अगवा किया गया था, उसके बच निकलने की संभावना कम है।’ किशन ठक्कर नामक एक और व्यक्ति ने आरोप लगाया कि मुस्लिम समुदाय ने पिस्तौल और अन्य हथियारों के ज़रिये हिंदू समुदाय में दहशत फैलाने का प्रयास किया था। इन गवाहों ने, जिनमें से अधिकांश हिंदू हैं, आरोप लगाया कि वतवा क्षेत्र में मुस्लिमों ने बड़े पैमाने पर हिंसाचार किया और उस समय पास की मस्जिद से ‘काफ़िरों को काट डालो’ जैसे नारे सुनाई दे रहे थे। (संदर्भ: https://www.rediff.com/news/2003/sep/19godhra1.htm) … (End of preview) The above is the beginning of the Chapter “Attacks on Hindus”. To read the full chapter, read the book “Gujarat Riots: The True Story”. http://www.amazon.in/Gujarat-Riots-True-Story- Truth/dp/1482841649/ref=sr_1_1?ie=UTF8&qid=1426094521&sr=8- 1&keywords=gujarat+riots+deshpande

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