सच्चाई: कांग्रेस पार्टी के नेता और तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार के केंद्रीय गृहराज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने ११ मई २००५ को संसद में दंगों के संबंध में लिखित उत्तर में दी जानकारी के अनुसार दंगों में ७९० मुस्लिम और २५४ हिंदू मारे गए, २५४८ लोग घायल हुए, और २२३ लोग लापता थे (उस समय)। इस उत्तर के अनुसार दंगों से प्रभावित विधवा महिलाओं की संख्या ९१९ है जबकि अनाथ हुए बच्चों की संख्या ६०६ है। नरेंद्र मोदी की कट्टर विरोधी यू.पी.ए. सरकार ने यह जानकारी दी है। यू.पी.ए. गठबंधन के अनेक नेताओं ने समय-समय पर दंगों में मृत लोगों के आँकड़ों को मनमाने ढंग से बढ़ा-चढ़ा कर बताया था (उदा. मार्च २००४ में सब टी.व्ही. के ‘खुला मंच’ कार्यक्रम में कांग्रेस नेता नरेंद्र नाथ ने भाजपा के साहिब सिंह वर्मा के साथ हुई चर्चा में कहा कि इन दंगों में ‘लाखों मुसलमान मारे गए’)। (संदर्भ: https://web.archive.org/web/20100406025921/http://www.expressindia.com/news/fullstory.php?newsid=46538)
भारतीय मुसलमानों के अंग्रेज़ी अख़बार ‘मिल्ली गेज़ेट’ ने भी यू.पी.ए. सरकार ने दिए इन आंकड़ो की यह ख़बर प्रकाशित की थी। (संदर्भ: http://www.milligazette.com/Archives/2005/01-15June05-Print-Edition/011506200511.htm)
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अंग्रेज़ी अख़बारों के संपादकीय, और संपादकीय पृष्ठ पर लेखकों द्वारा लिखे गए लेख, और अन्य प्रकाशित वार्तांकनों के ज़रिए कई वर्षों से केवल झूठ की नदियाँ बहाई गईं, और मृतकों की संख्या को अतिशयोक्तिपूर्ण ढंग से काफ़ी बढ़ाकर बताया गया, बोला ‘हज़ारों मुसलमान मारे गए’। एन.डी.टी.वी. ने भी अप्रैल-मई २००४ के लोकसभा चुनाव के दौरान बार-बार यह दोहराया कि “गुजरात में दो हज़ार मुस्लिम मारे गए”।
‘आज तक’ के श्री प्रभु चावला ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया था; यह इंटरव्यू ‘इंडिया टुडे’ के ४ नवंबर २००२ के अंक में प्रकाशित हुआ था, उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:
“ …प्रश्न– दंगों में ११०० निर्दोष लोगों की हत्या के लिए आपको ज़िम्मेदार माना जाता है।
उत्तर– हमारे पिछले साक्षात्कार (इंटरव्यू) में आपने ९०० कहा था। अब आप ११०० कह रहे हैं। क्या आप महाराष्ट्र और बंगाल जैसे अन्य राज्यों के मृतकों की संख्या को गुजरात की संख्या में मिला रहे हैं? (मोदी महाराष्ट्र के सोलापुर में १० और ११ अक्तूबर २००२ को हुए दंगे और अन्य दंगों के बारे में बात कर रहे थे, जिनका गोधरा से किसी प्रकार का संबंध नहीं था।)
प्रश्न– फिर मृतकों की वास्तविक संख्या कितनी है?
उत्तर- अगर ‘गोधरा’ घटित नहीं होता तो गुजरात में दंगे होते ही नहीं।
…
प्रश्न- राज्य में लोगों को सुरक्षा देने में आप असफल रहे, क्या इस बात को आप मानते हैं?
उत्तर– यदि हम अपने कर्त्तव्य करने में असफल रहते तो ९८ प्रतिशत गुजरात में शांति नहीं होती। मात्र ७२ घंटों में हमने दंगों पर नियंत्रण पा लिया।…”
जैसा कि हम देखते हैं, मात्र चार महीनों के अंदर मोदी के दो साक्षात्कारों के बीच में दंगों में मृतकों की संख्या ९०० से ११०० पर पहुँच गई! अब यह संख्या ९०० से २००० तक बढ़ाई गई है। किसी एक निर्दोष व्यक्ति की मौत, चाहे हिंदू हो या मुसलमान, या अन्य किसी धर्म का, भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं, और उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। १,००० से अधिक लोगों के जान गई यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण, और निंदनीय हैं। लेकिन इससे अतिशयोक्ति कर यह आकडा २,००० या कोई भी अधिक आकड़ा बताने का समर्थन नहीं किया जा सकता।
‘गोधरा’ के बाद के हुए दंगे एकतरफ़ा थे, यह विश्वास आम लोगों के साथ संघ परिवार में भी था।
भारतीय अंग्रेज़ी अख़बारों ने ‘गुजरात दंगों की घटना के कारण हुए’ यह बहाना बताकर देश के विभिन्न शहरों में हुए आतंकवादी हमले और बम विस्फोटों का युक्तिकरण किया (उदहारण- जुलाई २००८ में हुए अहमदाबाद बम विस्फोट)। अनेक आतंकियोंने यह दावा करना कि “हम गुजरात दंगों का प्रतिशोध ले रहे हैं”, यहीं मीडिया की झूठी ख़बरों के भयंकर परिणामों को दर्शाता है।
जिस यू.पी.ए. ने संसद में अधिकृत रूप से बताया कि गुजरात दंगों में मारे जाने वालों में ७९० मुस्लिम और २५४ हिंदू थे, उसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी थी, और उसे कम्युनिस्ट (वामपंथी) पार्टियों द्वारा बाहर से समर्थन प्राप्त था, और उसमें मुस्लिम लीग यह पार्टी भी शामील थी। यह उत्तर लिखित रूप में होने के कारण सरकार को निश्चित तौर पता था कि वह क्या कर रही है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और बाबरी मस्जिद कृति समिति के वकील श्री आर.के. आनंद ने पूछे सवाल के उत्तर में सरकार ने यह जानकारी दी थी। गुजरात सरकार ने ११६९ मृतकों के रिश्तेदारों को मुआवज़ा दिया (इनमें ८६३ मुस्लिम और ३०६ हिंदू होने की जानकारी थी, लेकिन मैं इसकी स्वतंत्र रूप से जाँच नहीं कर पाया)। मई २००८ में यू.पी.ए. सरकार ने भी गुजरात दंगों के पीड़ितों को अतिरिक्त ३.५० लाख दिए, वो भी ११६९ मृत लोगों के ही रिश्तेदारों को थे। http://archive.indianexpress.com/news/govt-enters-poll-year-with-relief-for-gujarat-riot-victims/313352
इससे साबित होता है कि दंगों में मृतकों की अधिकतम संख्या ११६९ ही है, क्योंकि यह पूरी तरह असंभव है कि कट्टर भाजपा विरोधी यू.पी.ए. सरकार किसी भी पीड़ित को मुआवज़ा न दे, जब दंगों का इतना राजनीतिकरण हुआ, जब यू.पी.ए.ने इस विषय पर नरेंद्र मोदी पर इतने हमले किए, और जब उनके नेताओं ने दंगों पर अतिशयोक्तिपूर्ण दावे किए। [और अगर यू.पी.ए., जो नरेंद्र मोदी की कट्टर विरोधी हैं, दावा करती हैं कि ११६९ से अधिक लोग दंगों में मारे गए, तो यह खुद ही मान्य करना होगा कि उसने कुछ मृत लोगों के परिवारों को मुआवज़ा नहीं दिया!] संसद में यू.पी.ए. ने दिए आकडे ११७१ मृत बताते हैं- ७९० मुस्लिम, २५४ हिंदू और १२७ लोग लापता (१०१ गायब लोग जीवित पाए जाने के बाद), ७९०+२५४+१२७=११७१। यह संख्या ११६९ के बहुत क़रीब है, जो ‘एक्स-ग्रेशिया’ गुजरात और यू.पी.ए. सरकार दोनों ने दिया।
गुजरात में तैनात की गई सेना की वापसी २१ मई २००२ से होने लगी। ‘द ट्रिब्यून’ ने ३० अप्रैल २००२ को खबर दी कि मृतकों की संख्या २९ अप्रैल को ९०० पार कर गई। तब तक दंगे लगभग समाप्त हुए थे और ज्यादा-से-ज्यादा ५० और लोग १० मई २००२ तक मारे गए होंगे। यह २८ फरवरी, १ मार्च और २ मार्च की मुख्य बड़ी हिंसा के दो महीनों के बाद था, और उन दिनों हुई हत्याओं की अधिकांश लाशें ३० अप्रैल तक मिल गई थी। लापता व्यक्तियों को मृत घोषित करने से पहले आधिकारिक मृत संख्या ९५२ थी, जिसे ‘टेलीग्राफ’ने ७ साल का काल समाप्त होने के बाद १ मार्च २००९ को बताया। (संदर्भ:https://web.archive.org/web/20120608125144/http://www.telegraphindia.com/109031/jsp/nation/story_10608005.jsp)
इस प्रकार सभी लापता लोगों को मृत समझ कर गुजरात में मारे गए लोगों की सबसे अधिक संख्या ११७१ होती हैं। ११७१ से अधिक एक भी व्यक्ति गुजरात दंगों में मारा गया, यह कहने की गुंजाइश किसी को भी, जैसे कोई मज़हबी स्वतंत्रता गुट, या एन.डी.टी.वी. जैसे टी.वी. चैनल, नहीं थी।
दो हज़ार, यह संख्या गुजरात के दंगों में मारे गए मुस्लिमों की नहीं है बल्कि गोधरा हत्याकांड में साबरमती एक्स्प्रेस पर हमला करने वाले मुस्लिमों की है। सही आँकड़ा बताना हर एक का कर्त्तव्य है।
जैसा कि हमने दूसरे अध्याय में देखा ही है कि तथाकथित पंथनिरपेक्षतावादी हमेशा मुस्लिमों की ज़्यादतियों को कम बताने और हिंदुओं को हुआ नुकसान कम-से-कम दिखाने की कोशिश करते हैं। उनकी इसी मानसिकता के कारण गुजरात दंगों में मुस्लिम मृतकों की संख्या अतिशयोक्तिपूर्ण रूप से आसमान छू रही थी।